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समाज

टाटा, इंफोसिस की आलोचना के बाद चुप हैं कंपनियां

९ सितम्बर २०२१

ऐसी खबरें हैं भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार दो कंपनियों पर हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री और उनके वैचारिक सहयोगियों द्वारा हमले किए जाने के कारण देश के पूरे उद्योग जगत में चिंता और डर का माहौल है.

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तस्वीर: Qamar Sibtain/IANS

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों द्वारा चलाई जा रही पत्रिका पाञ्चजन्य ने एक लेख में तकनीकी कंपनी इंफोसिस को देशद्रोही करार दिया. ऐसा एक इनकम टैक्स वेबसाइट में आ रही खामियों को दूर न कर पाने के कारण कहा गया.

हालांकि आरएसएस ने पाञ्चजन्य में छपे लेख से खुद को अलग कर लिया है. लेकिन पाञ्चजन्य हमेशा से संघ का मुखपत्र कहा जाता रहा है. देश की कर व्यवस्था को निराश करने के कारण इंफोसिस को देशद्रोही कहे जाने की इस घटना ने उद्योग जगत में बहुत से लोगों को परेशान कर दिया है.

मंत्रियों ने की सार्वजनिक आलोचना

एक महीना पहले ही वित्त मंत्री ने इस बारे में इंफोसिस के सईओ को सार्वजनिक तौर पर शर्मिंदा किया था जब उन्होंने सीईओ को समन किया और इसका ऐलान ट्विटर पर कर दिया. भारत में आईटी का चेहरा मानी जाने वाली कंपनी के साथ इस तरह के बर्ताव ने दुनियाभर को हैरान किया था.

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उससे पहले अगस्त में वाणिज्य मंत्री ने 106 अरब डॉलर की कीमत वाली कंपनी टाटा ग्रुप को सरेआम लताड़ा था. टाटा ग्रुप ने ई-कॉमर्स नियमों में सख्ती की आलोचना की थी जिसके बाद वाणिज्य मंत्री ने कहा था कि देसी कंपनियों को सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए.

घरेलू उद्योगों की सुरक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता रही है. वैसे सरकार और आरएसएस जैसी उसकी समर्थक संस्थाएं एमेजॉन और मोनसैंटो जैसी विदेशी कंपनियों की आलोचना करती रही हैं, घरेलू कंपनियां सरकार के निशाने पर शायद ही कभी इस तरह रही हों.

लेकिन हालिया घटनाएं अलग हैं इसलिए उद्योगपतियों के लिए परेशानी पैदा कर रही हैं कि अब सरकार घरेलू कंपनियों पर भी सख्त हो रही है. उद्योग जगत से जुड़े कम से कम पांच लोगों ने इस बात की पुष्टि की है.

‘हर कोई डरा हुआ है'

वेंचर कैपिटल से जुड़े एक एग्जेक्यूटिव ने बताया कि सरकार द्वारा इस तरह की आलोचना उद्योगपतियों के लिए ‘हैरेसमेंट' से कम नहीं है. अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी में काम करने वाले एक अन्य एग्जेक्यूटिव ने कहा कि कि "हर कोई डरा हुआ है” क्योंकि उद्योगपति सरकार के निशाने पर नहीं आना चाहते.

एक पीआर कंपनी ‘परफेक्ट रिलेशंस' चलाने वाले दिलीप चेरियन कहते हैं, "भारत के लिए प्रतीक माने जाने वाले बड़े उद्योगों पर सीधा सीधा हमला साफ करता है कि कंपनियों को सरकार की नीतियों को मानना ही होगा. यह सिर्फ टैक्स से जुड़े मुद्दे नहीं हैं बल्कि सरकार के अन्य कदमों से भी संबंधित है.”

 

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मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने इंफोसिस का बचाव करते हुए कहा कि कंपनी ने सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाने में अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा, "खामियों पर उसे स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे देश को नुकसान पहुंचाने की कोई साजिश रच रहे हैं.”

आरएसएस ने भले ही पाञ्चजन्य में छपे लेख से किनारा कर लिया हो लेकिन संगठन में कुछ लोग मानते हैं कि इस तरह कंपनियों की आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है. एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "सवाल क्यों नहीं उठाए जाने चाहिए? कॉरपोरेट क्या होली काउ बन गई हैं?”

चुप हैं कंपनियां

इस बारे में इंफोसिस और टाटा से भी सवाल पूछे गए लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

सोशल मीडिया और राजनेताओं की तरफ से कंपनियों के खिलाफ हो रही टिप्पणियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अब तक कुछ नहीं कहा है. उद्योग जगत में से भी किसी ने सामने आकर कोई टिप्पणी नहीं की है.

लेकिन समाज के कई तबकों से उद्योगों के खिलाफ टिप्पणियों पर सवाल उठ रहे हैं. भारतीय अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने एक संपादकीय में कहा कि यह "इंडिया इंक के लिए खड़े होने का वक्त है.” अखबार लिखता है कि उद्योग जगत के नेताओं ने "सोची-समझी और शायद रणनीतिक चुप्पी साध रखी है.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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