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समलैंगिक को जज नहीं बनाना चाहती सरकार, कोर्ट ने किया विरोध

स्वाति मिश्रा
२० जनवरी २०२३

सौरभ कृपाल को जज बनाने पर सरकार की आपत्ति समलैंगिकता के अलावा उनके विदेशी पार्टनर को लेकर भी है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह सरकार की आपत्तियों को सार्वजनिक किया, उसे काफी अहम और अप्रत्याशित कदम माना जा रहा है.

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भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल की जज के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी है. आपत्ति के दो आधार बताए गए हैं. पहला, सौरभ समलैंगिक हैं. दूसरा, उनका पार्टनर स्विट्जरलैंड का नागरिक है.
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल की जज के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी है. आपत्ति के दो आधार बताए गए हैं. पहला, सौरभ समलैंगिक हैं. दूसरा, उनका पार्टनर स्विट्जरलैंड का नागरिक है. तस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल की जज के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी है. आपत्ति के दो आधार बताए गए हैं. पहला, सौरभ समलैंगिक हैं. दूसरा, उनका पार्टनर स्विट्जरलैंड का नागरिक है. यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट ने दी है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की आपत्तियों का जवाब देते हुए सौरभ कृपाल की नियुक्ति को भी मजबूत समर्थन दिया है. सुप्रीम कोर्ट का इस तरह कोलेजियम और सरकार के बीच हुए संवाद को सार्वजनिक करना काफी अहम और अप्रत्याशित कदम माना जा रहा है.

सौरभ की नियुक्ति से जुड़ी पहली बड़ी पहल 2017 में हुई थी. दिल्ली हाई कोर्ट कोलेजियम ने 13 अक्टूबर, 2017 को उन्हें उच्च न्यायालय में जज बनाने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी. 11 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने भी इसे मंजूरी दी. उन्होंने इस अनुशंसा को केंद्र सरकार के पास भेजा. 25 नवंबर, 2022 को केंद्रीय कानून मंत्रालय ने फाइल लौटाते हुए कोलेजियम से सौरभ की नियुक्ति पर पुनर्विचार करने को कहा. इस संबंध में फाइल में कुछ खास टिप्पणियां भी की गई थीं.  

18 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ के पैनल ने इस संबंध में तीन पन्नों का एक ब्योरा सार्वजनिक किया. इसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन-सदस्यीय पैनल ने सौरभ कृपाल की नियुक्ति के लिए अपना समर्थन दोहराया. साथ ही, कानून मंत्रालय की ओर से उठाई गई आपत्तियां, और उनपर अपनी प्रतिक्रिया भी पब्लिक कर दी. 

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क्या आपत्तियां जताई गई हैं

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई फाइल के मुताबिक, सौरभ की नियुक्ति के मामले पर भारतीय गुप्तचर संस्था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने 11 अप्रैल, 2019 और 18 मार्च, 2021 को दो चिट्ठियां भेजीं. इसमें दो मुख्य आपत्तियां उठाई गई थीं. एक तो यह कि सौरभ के पार्टनर स्विस नागरिक हैं. दूसरा यह कि सौरभ का उनसे करीबी रिश्ता है और वह अपने यौन रुझान के बारे में स्पष्ट और खुले हुए हैं. यानी, अपने समलैंगिक होने की बात छिपाते नहीं हैं.

इनके अलावा 1 अप्रैल, 2021 को कानून मंत्री ने भी कोलेजियम को एक चिट्ठी भेजी थी. इसमें कहा गया था कि हालांकि भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन समलैंगिक शादियों को अभी मान्यता नहीं मिली है. साथ ही, यह भी राय जताई गई कि समलैंगिक अधिकारों के प्रति सौरभ के जुड़ाव और आग्रह के मद्देनजर पक्षपात और पूर्वाग्रह की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

इन आपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना जवाब दिया है. सौरभ के स्विस पार्टनर के संदर्भ में की गई आपत्ति पर पैनल ने कहा है कि रॉ की भेजी गई चिट्ठियों में यह संकेत नहीं मिलता कि सौरभ के पार्टनर का निजी आचरण या बर्ताव राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो. साथ ही, पैनल ने यह भी कहा कि सौरभ के पार्टनर से देश को कोई नुकसान पहुंच सकता है, ऐसा पहले से मान लेने का कोई कारण नहीं दिखता क्योंकि स्विटजरलैंड के साथ भारत के दोस्ताना ताल्लुकात हैं. पैनल ने कहा है, "अतीत और वर्तमान में बड़े संवैधानिक पदों पर रह चुके कई लोगों के पति/पत्नी विदेशी नागरिक रहे हैं. ऐसे में सैद्धांतिक तौर पर सौरभ कृपाल की उम्मीदवारी से इस आधार पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती कि उनके पार्टनर विदेशी नागरिक हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने अपने जिस ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को डिक्रिमिनलाइज किया था, उस केस में सौरभ ने बतौर वकील दो याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने जिस ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को डिक्रिमिनलाइज किया था, उस केस में सौरभ ने बतौर वकील दो याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था. तस्वीर: Ayush Chopra/SOPA Images via ZUMA Press Wire/picture alliance

समलैंगिक होना अपराध नहीं है

सौरभ के समलैंगिक होने पर उठाई गई आपत्ति के जवाब में पैनल का कहना है कि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा लिए गए फैसलों को मद्देनजर रखा जाना चाहिए. इन फैसलों में यह स्थापित किया जा चुका है कि हर व्यक्ति को यौन रुझान के आधार पर अपनी इंडिविजुएलिटी और सम्मान का अधिकार है. बल्कि सौरभ का अपने यौन रुझान के बारे में स्पष्ट होना उनके पक्ष में जाता है. पैनल ने स्पष्ट राय रखी कि समलैंगिक होने की वजह से सौरभ की उम्मीदवारी को नामंजूर करना संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ होगा.

आपत्तियों का जवाब देने के अलावा सुप्रीम कोर्ट पैनल ने यह भी कहा कि सौरभ कृपाल में योग्यता, ईमानदारी और मेधा है. उनकी नियुक्ति दिल्ली हाई कोर्ट बेंच को समृद्ध करने के साथ-साथ समावेश और विविधता भी लाएगी. इन तर्कों के आधार पर पैनल ने कहा कि कोलेजियम ने सौरभ कृपाल की नियुक्ति से जुड़ी अपनी 11 नवंबर, 2021 की अनुशंसा के साथ बने रहने का फैसला किया है. साथ ही, यह भी कहा कि इस प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जाना चाहिए.

सौरभ कृपाल, भारत के 31वें मुख्य न्यायाधीश भूपिंदर नाथ कृपाल के बेटे हैं. वह मई 2002 से नवंबर 2002 तक पद पर रहे थे. सौरभ ने भारत में एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए भी काफी काम किया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जिस ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को डिक्रिमिनलाइज किया था, उस केस में सौरभ ने बतौर वकील दो याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था.

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दो और जजों की नियुक्ति पर आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की अनुशंसा में सौरभ के अलावा दो और भी जजों के नामों पर मंत्रालय ने आपत्ति जताई है. इनके नाम हैं, सोमशेखर सुंदरेशन जिन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में जज बनाने का प्रस्ताव है. दूसरे, आर जॉन सत्यन जिन्हें मद्रास हाई कोर्ट में जज बनाने की अनुशंसा की गई है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमशेखर सुंदरेशन के नाम पर सरकार ने इसलिए मंजूरी नहीं दी कि उन्होंने लंबित मुकदमों पर अपनी राय सोशल मीडिया पर साझा की थी.

इस आपत्ति के जवाब में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का कहना है कि अपने विचार अभिव्यक्त करना किसी उम्मीदवार को खारिज किए जाने का आधार नहीं हो सकता है. तीसरे उम्मीदवार आर जॉन सत्यन के नाम पर सरकार ने यह आपत्ति बताई कि उन्होंने एक ऐसा आर्टिकल साझा किया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई थी. इस आपत्ति पर कोलेजियम ने कहा है कि आर्टिकल शेयर करना उम्मीदवार की योग्यता, चरित्र और ईमानदारी को खारिज नहीं कर सकता.