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समाज

खेत मजदूरों को लॉकडाउन में ढील की जानकारी कम

२२ अप्रैल २०२०

भारत ने 20 अप्रैल से कृषि क्षेत्र में काम करने की इजाजत दी है लेकिन खेत में काम करने वाले ज्यादातर मजदूरों को पता ही नहीं है कि वे काम कर सकते हैं. भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू किया गया था.

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Indien Landwirtschaft | Andhra Pradesh
तस्वीर: Krishna Gaddam

भारत में कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए बेहद सख्ती के साथ लॉकडाउन लागू है. तीन मई तक चलने वाले तालाबंदी के दूसरे चरण में सोमवार 20 अप्रैल से कई तरह की रियायतें शुरू हो गई. हालांकि इस बीच अधिकतर लोग अपने घरों में ही रहेंगे. सरकार ने कहा है कि कृषि उत्पाद की खरीद और बिक्री, मछलीपालन, दूध, दुग्ध-उत्पाद, पोल्ट्री और पशु-पालन, चाय, कॉफी और रबड़ के बागानों में काम, फूड-प्रोसेसिंग जैसे उद्योगों को अनुमति है. उत्तर प्रदेश में खेत में मजदूरी का काम करने वाले मुकेश सहनी फोन पर थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से कहते हैं, "हमें नहीं पता कि पाबंदियां हटा ली गई हैं." सहनी बताते हैं कि हफ्तों बिना काम किए उनके परिवार के पास बस इतना है कि किसी तरह से "खाना और जिंदगी चल जाए." सहानी आगे कहते हैं, "हमने इस साल का सबसे बड़ा नुकसान उठाया है. मैंने और मेरे माता-पिता ने सिर्फ दो दिन का काम किया और 400 रुपये कमाए. जबकि हम पहले अलग-अलग खेतों में 15-20 दिन काम किया करते थे."

अप्रैल के महीने में आमतौर पर खेत मजदूरों की बहुत मांग होती है लेकिन लॉकडाउन की वजह से गांवों और खेतों में अजीब सी सुस्ती है. फसलों के त्योहार इस साल शांत हो गए. यह साफ नहीं हो पाया है कि देश के कितने लाख खेत मजदूरों को इस बात की जानकारी ही नहीं कि कृषि क्षेत्र में पाबंदियों में ढील दे दी गई है. किसान संगठन अब इस बात को किसान और मजदूरों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. महिला किसान अधिकार मंच की सीमा कुलकर्णी संगठन के सदस्यों को मेसेज भेज इस बात की सूचना दे रही हैं. उनका कहना है कि खेती में काम करने वाले मजदूरों में काम पर वापस लौटने की "उत्सुकता" है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की करीब 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जहां आधे से अधिक पुरुष और 70 फीसदी महिलाएं कृषि कार्य करती हैं.

पिछले दिनों सोशल मीडिया में बहुत सारे वीडियो साझा किए गए जिनमें दिखाया गया कि खेत में फसल तो तैयार दिख रही है लेकिन कटाई का इंतजार है. इसी तरह से कई वीडियो में किसान फसल को फेंकते नजर आ रहे हैं क्योंकि खरीदार नहीं है. किसान कन्नयम सुब्रमण्यम का पत्ता गोभी से भरे खेत का वीडियो ट्विटर पर पिछले दिनों खूब वायरल हुआ. वह कहते हैं, "जो लोग मेरे खेत का इस्तेमाल फसल उगाने के लिए करते हैं वो इस साल उपज को बेच नहीं पाए. कई किसानों को फसलों को काटने के लिए मजदूर नहीं मिले हैं. सब्जियां लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार नहीं करेंगी उससे पहले ही वह खराब हो जाएंगी." कुछ खेत मजदूरों के लिए रियायतें थोड़ी राहत लेकर आई हैं. 20 साल के पवन लालूराम अपना बकाया वेतन लेने किसान के पास गया तो उसे दो बोरे गेहूं के मिले.

पवन कहता है, "मैं पिछली बार लॉकडाउन की वजह से गेहूं के बोरे नहीं ला पाया क्योंकि मुझे उन्हें लाने के लिए 65 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता. फिलहाल गांव में काम नहीं है और घर पर खाना नहीं है. इस गेहूं से हमारा कुछ महीनों के लिए काम चल जाएगा."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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