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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिकी राजनीति में भारतीयों के उभार का ऐतिहासिक क्षण

१६ जनवरी २०२४

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में विवेक रामास्वामी और निकी हेली भारतीय-अमेरिकी समाज के दो अलग-अलग हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं. आप्रवासी समुदाय के राजनीतिक उभार की यात्रा में यह एक ऐतिहासिक क्षण है.

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निकी हेली, रॉन डेसांतिस और विवेक रामास्वामी
अमेरिकी चुनाव में भारतीयों की दमदार मौजूदगीतस्वीर: Mark J. Terrill/AP/picture alliance

भारतीय मूल के अमेरिकी विवेक रामास्वामी ने डॉनल्ड ट्रंप के समर्थन में चुनावी मुकाबले से हटने का फैसला किया है. भले ही रामास्वामी अब दौड़ में नहीं हैं लेकिन निकी हेली के साथ मिलकर वह भारतीयों के अमेरिकी राजनीतिक में उभार का प्रतीक साबित हुए.

इस बार अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सबसे तीखी आलोचनाएं और हमले जिन उम्मीदवारों ने झेले हैं, उनमें विवेक रामास्वामीऔर निकी हेली हैं जो रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं. इनमें दोनों द्वारा एक दूसरे पर किए गए जबानी हमले भी शामिल हैं. रामास्वामी तो यहां तक चले गए कि उन्होंने एक आम बहस के दौरान एक पोस्टर हाथ में उठा लिया जिस पर लिखा था कि निकी हेली भ्रष्ट हैं. जवाब में साउथ कैरोलाइना की पूर्व गवर्नर और यूएन में राजदूत हेली ने रामास्वामी को कहा कि वह भरोसे के लायक नहीं हैं. अपने बच्चों पर टिप्पणी को लेकर तो वह रामास्वामी पर आग-बबूला हो गई थीं.

विवेक रामास्वामी
विवेक रामास्वामी ने चुनावी दौड़ से हटने का फैसला कियातस्वीर: Brian Cahn/ZUMA Wire/IMAGO

अमेरिकी राजनीति में निजी हमले कोई नई बात नहीं हैं. हेली और रामास्वामी दोनों में बड़ा फर्क ये है कि हेली राजनीति में लंबे समय से हैं जबकि 38 साल के रामास्वामी एक उद्योगपति हैं जिन्होंने अब तक कभी चुनावी राजनीति में कोई पद नहीं संभाला है. लेकिन दोनों के ही सामने राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवारी पाने की चुनौती बहुत बड़ी है क्योंकि एक-दूसरे से पार पाने के बाद उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंपका सामना करना है.

भारतीय मूल के उम्मीदवार

इन दोनों नेताओं में एक समानता और है. दोनों ही भारत से आकर अमेरिका में बसे माता-पिता की संतान हैं. अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के बीच हेली और रामास्वामी को लेकर राय बहुत अधिक बंटी हुई है. हालांकि बहुत से मुद्दों और राजनीतिक विचारधारा को लेकर बंटा भारतीय-अमेरिकी समाज पहले से ही अंदरूनी तनाव से ग्रस्त है.

इसके बावजूद एक बात पर राय बिल्कुल बंटी हुई नहीं है कि इस बार के चुनाव में जिस तरह भारतीय मूल के उम्मीदवारों की ताकत दिखी है, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. अमेरिका के सबसे धनी आप्रवासी समुदाय के रूप में जाने जाने वाले भारतीय-अमेरीकियों की सफलता का यह एक और प्रतीक बन गया है.

इंडियन-अमेरिकन इंपैक्ट नामक संगठन के संस्थापक और कैन्सस में पूर्व विधायक राज गोयल कहते हैं कि अन्य आप्रवासी समुदायों को अमेरिकी राजनीति में इस तरह सक्रिय होने से पहले कहीं ज्यादा मजबूत होना पड़ा है.

वह कहते हैं, "जहां तक राजनीतिक सफलता की बात है तो अन्य आप्रवासीय समुदायों की तुलना में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की यात्रा ज्यादा तेज रही है.”

गोयल कहते हैं कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय कई मायनों में दूसरों से अलग है क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित और पेशेवर भारतीय अमेरिका रहने आए हैं और अन्य अमेरिकी समुदायों में उनका बड़ा सम्मान है.

गोयल बताते हैं, "जब समुदाय के लोग पहली बार चुने गए थे तो हमें सोचना पड़ता था कि हमारे मूल को लेकर लोग क्या सोचेंगे. हालांकि अब भी नस्लवाद मौजूद है लेकिन अब यह आगे बढ़ने के लिए एक बड़ा तर्क बन गया है.”

धार्मिक पहचान का सवाल

वैसे बहुत कम लोग ही ऐसा मानते थे कि विवेक रामास्वामी के राष्ट्रपति बनने की कोई संभावना है. लेकिन अपने धर्म को लेकर जिस तरह से रामास्वामी मुखर रहे, उसे अमेरिकी राजनीति में एक ऐतिहासिक पल माना जा रहा है. आयोवा में एक बहस के दौरान जब उनसे उनके धर्म के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैं हिंदू हूं. मैं अपनी पहचान छिपाऊंगा नहीं.”

अपने हिंदू धर्म को रामास्वामी ने ईसाइयत के मूल्यों से जोड़ते हुए कंजर्वेटिव विचारधारा में जगह बनाने की कोशिश की है. डॉनल्ड ट्रंप की तरह उन्होंने भी कथित ‘वोक पॉलिटिक्स' की आलोचना की है और समलैंगिक शादियों जैसे मुद्दों पर वही रुख अपनाया है जो रूढ़िवादी ईसाई समाज का है.

हालांकि किसान-बहुल रूढ़िवादी राज्य आयोवा में वह लोगों के सामने यह कहने से भी नहीं झिझके कि वह ‘अपने धर्म के कारण शाकाहारी हैं.' ऐसा तब हुआ जब ट्रंप के प्रचार-सहयोगी क्रिस ला सीविटा ने रामास्वामी को "फ्रॉड” कहते हुए मतदाताओं से उनके "खान-पान को लेकर सचेत” रहने की बात कही.

विवेक रामास्वामी ने अपने अलग होने को लेकर जिस तरह की मुखरता दिखाई है, वैसा पहले नहीं हुआ था. अब तक अधिकतर लोग अमेरिकी मूल्यों को अपना लेने की बात पर जोर देते रहे हैं. जैसे कि निकी हेली ईसाइयत अपना लेने को अपना मूल तर्क बनाती हैं. निमरता निकी रंधावा के नाम से साउथ कैरोलाइना में जन्मीं हेली ने अपने पति का उपनाम अपनाया है.

इससे पहले लुइजियाना के पूर्व गवर्नर और कभी राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर चुके बॉबी जिंदल ने भी ईसाई धर्म अपनाने की बात पर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की थी. अमेरिकी राजनीति में एक और बड़ा भारतीय-अमेरिकी नाम मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने अपनी अश्वेत पहचान को तर्क बनाया था. हालांकि उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को भी ना छोड़ने की बात कही थी. 2020 के चुनाव में उनका एक वीडियो जारी किया गया था जिसमें वह अपने घर में मसाला डोसा बनाती नजर आई थीं.

अमेरिकन यूनिवर्सिटी में स्कॉलर और भारतीय-अमेरीकियों की राजनीति पर शोध करने वालीं मैना चावला सिंह कहती हैं कि अपनी पहचान को लेकर भारतीय मूल के उम्मीदवार कई तरह के प्रयोग करते रहे हैं. सिंह के मुताबिक भारतीय-अमेरिकी समुदाय के राजनीतिक उभार में बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने का बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिन्होंने अपने चुनाव प्रचार के लिए टीम में बहुत से भारतीयों को शामिल किया था.

सिंह कहती हैं, "भारतीय-अमेरीकियों ने बहुत से क्षेत्रों में अपने आपको स्थापित किया है और शायद यह आखिरी क्षेत्र है जिसे उन्हें जीतना है.”

एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि भारतीय मूल के लोगों को आमतौर पर डेमोक्रैटिक पार्टी का पक्षधर माना जाता है. ऐसा तब है जबकि बॉबी जिंदल, निकी हेली और विवेक रामास्वामी जैसे कई बड़े नेता रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े रहे हैं.

बंटे हुए अमेरिकी-भारतीय

भारतीय मूल के अमेरिकी लेखिका दीपिका भंभानी कहती हैं कि रामास्वामी और हेली के बीच जो विवाद है, वह भारतीय समुदाय के बीच बंटवारे का ही प्रतीक है. निकी हेली अपने माता-पिता की कपड़े की दुकान में मदद करते हुए बड़ी हुई हैं जबकि रामास्वामी एक इंजीनियर पिता और मनोवैज्ञानिक मां के बेटे हैं, जिन्होंने आईवी लीग से शिक्षा हासिल की.

निकी हेली
भारतीय माता-पिता की संतान निकी हेलीतस्वीर: Carolyn Kaster/AP Photo/picture alliance

वॉशिंगटन में रहने वालीं भंभानी कहती हैं, "जब मैंने हेली के लिए रामास्वामी की चिढ़ देखी तो मैं समझ गई कि यह कहां से आई है. वे धनी भारतीय हैं जो अमेरिकी मूल्यों को अपनाने वाले, अमेरीकियों से शादी करने वाले, दूसरी पद्धतियों से पूजा करने वाले अन्य भारतीयों से चिढ़ते हैं. रामास्वामी जिस तरह हेली की आलोचना करते हैं वह हम बहुत से भारतीयों को क्रोधित करता है. इस देश में दूसरे रंग के लोगों को और बहुत कुछ झेलना पड़ता है. क्या एक भारतीय बहन पर छींटाकशी करने के लिए एक भारतीय की ही कमी रह गई है?”

वैसे, भंभानी कहती हैं कि भारतीय मूल के अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार भी आखिर अमेरिकी ही हैं, चाहे वे परिवार के लिए प्रतिबद्धता जैसे भारतीय मूल्यों पर कायम हैं. वह कहती हैं, "एक ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर देखना सुखदायक होगा जो उन मूल्यों में विश्वास करता है.”

वीके/एए (एएफपी)