1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत के लिए दोधारी तलवार है यूक्रेन-रूस युद्ध

१५ मार्च २०२२

पश्चिमी देश भारत पर रूस की निंदा करने का दबाव बना रहे हैं. भारत के लिए यह नाजुक स्थिति है क्योंकि रूस पर उसकी निर्भरता बहुत ज्यादा और बहुत विविध है.

https://p.dw.com/p/48Ty1
भारत की सैन्य निर्भरता रूस पर सर्वाधिक है
भारत की सैन्य निर्भरता रूस पर सर्वाधिक हैतस्वीर: Indian Navy/dpa/picture alliance

यूक्रेन युद्ध के चलते भारत के सामने यह दुविधा खड़ी हो गई है कि वह रूस से हथियार कैसे खरीदे. अमेरिका और दूसरे कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए हैं और अन्य देशों को भी रूस के साथ व्यापार ना करने की नसीहत दी है. इस माहौल में दुनिया के सबसे बड़े हथियार खरीददार भारत के सामने कई दुविधाएं पैदा हो गई हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की कुल हथियार खरीद का 60 प्रतिशत से ज्यादा रूस से आता है. अब जबकि भारत चीन के साथ संबंधों में ऐतिहासिक तनाव झेल रहा है तो उसकी हथियारों की जरूरत और बढ़ गई है और ऐसे में रूस के साथ संबंध बनाए रखना उसकी सामरिक शक्ति के लिए जरूरी माना जा रहा है.

भारत की नजर सस्ते रूसी तेल पर

भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने हाल ही में एक लेख में लिखा, "भारत के लिए दुस्वपन जैसी स्थिति तब बनेगी यदि अमेरिका रूस को अपने लिए ज्यादा बड़ा खतरा मानेगा और चीन के साथ रणनीतिक समझौता कर लेगा. कठोर शब्दों में कहा जाए तो अमेरिका यूरोप में अपना पक्ष बचाए रखने के लिए एशिया में चीन का अधिपत्य स्वीकार कर लेगा.”

मौजूदा समय में चीन को एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि वह यूक्रेन में रूसी कार्रवाई की तर्ज पर लद्दाख या ताइवान पर हमला कर कता है. जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में फेलो और पूर्व राजनयिक जितेंद्र नाथ मिश्रा कहते हैं, "बहुत संभव है कि वह ऐसा कर दे.”

भारत का रूस से रिश्ता

भारत ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की निंदा नहीं की है. अमेरिका और कई पश्चिमी देशों द्वारा परोक्ष रूप से आग्रह किए जाने के बाद भी भारत ऐसा करने से परहेज करता रहा है. यही नहीं, उसने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी प्रस्ताव पर मतदान से गैरहाजिर रहने का विकल्प चुना, जिसकी रूस ने तारीफ की. हालांकि उससे पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि भारत के साथ ये मुद्दे अभी सुलझाए जाने बाकी हैं.

1990 के दशक में भारत की सेना के ज्यादातर हथियार सोवियत संघ के बनाए हुए ही थे. उसकी थल सेना के पास करीब 70 प्रतिशत, वायु सेना के पास लगभग 80 प्रतिशत और जल सेना के पास करीब 85 प्रतिशत हथियार सोवियत युग के थे. हाल के सालों में भारत ने रूस पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर कई कदम उठाए हैं. उसने अमेरिका, इस्राएल, फ्रांस और इटली से भी हथियार और अन्य सैन्य उपकरण खरीदे हैं.

फिर भी, रूस से भारत के रक्षा संबंध काफी महत्वपूर्ण हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक 2016-20 में भारत के कुल सैन्य आयात का लगभग 49 फीसदी हिस्सा रूस से ही आया था. फ्रांस से 18 प्रतिशत और इस्राएल से उसने 13 प्रतिशत सैन्य आयात किया.

रूस पर कितनी निर्भरता

किंतु, भारत की रूस पर निर्भरता सिर्फ नए सैन्य उपकरणों के कारण ही नहीं है.  भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा कहते हैं कि भारत अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए लिए भी रूस पर निर्भर है. वह बताते हैं, "रूस एकमात्र ऐसा देश है जिसने भारत को परमाणु पनडुब्बी लीज पर दी है. क्या कोई और देश भारत को परमाणु पनडुब्बी देगा?”

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो सुशांत सिंह कहते हैं, "भारत की नौसेना के पास एक ही विमानवाहक जहाज है, जो रूसी है. भारत के ज्यादातर लड़ाकू विमान और 90 प्रतिशत युद्धक टैंक भी रूसी हैं.”

1987 में भारतीय नौसेना ने सोवियत संघ से चक्र-1 चार्ली क्लास परमाणु पनडुब्बी किराए पर ली थी, ताकि अपनी सेना को प्रशिक्षण दे सके. बाद में उसकी चक्र-2 भी आ गई. 2019 में उसने रूस के साथ तीन अरब डॉलर की संधि पर दस्तखत किए थे जिसके तहत उसे 10 साल के लिए रूसी परमाणु पनडुब्बी अकुल-1 मिली. यह पनडुब्बी 2025 में भारत पहुंचने की संभावना है. इसके अलावा चार छोटी पनडुब्बियां भी भारत आनी हैं.

पुतिन ने भारत को बताया ‘बड़ी ताकत', हथियारों पर बड़े समझौते

मिश्रा कहते हैं कि रूस ने भारत को उपकरणों के साथ-साथ तकनीक भी दी है जबकि अमेरिका ने तकनीक देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. वह कहते हैं, "मैं अपने अमेरिकी दोस्तों से पूछना चाहूंगाः आपने हमें किस तरह की रक्षा तकनीक दी है? अमेरिका तो एफ-16 का नाम एफ-21 रखकर देने की पेशकश कर रहा है. भारत के नजरिये से तो एफ-16 किसी काम का नहीं है. 1960 के दशक में हमने मिग-21 इसलिए खरीदे क्योंकि हमें एफ-104 देने से इनकार कर दिया गया.”

विशेषज्ञ इस बात को लेकर एकमत हैं कि अब यदि अमेरिका, फ्रांस, इस्राएल और अन्य देशों के साथ भारत रक्षा संबंध बनाता भी है तो भी उसकी रूस पर निर्भरता कम होने में बीस वर्ष का समय लग जाएगा.

वीके/सीके (एएफपी)