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कानून और न्यायभारत

सुप्रीम कोर्ट: जबरन धर्मांतरण देश के लिए खतरा

आमिर अंसारी
१५ नवम्बर २०२२

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण गंभीर मुद्दा है और यह देश की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कथित जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन की कोई स्वतंत्रता नहीं है."

वकील और याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर जस्टिस एमआर शाह और हिमा कोहली की बेंच ने कहा, "कथित धर्म परिवर्तन की घटना अगर सच पाई जाती है तो यह देश की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिकों की स्वतंत्रता को भी प्रभावित करता है."

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बेंच ने कहा, "बेहतर होगा कि भारत सरकार इस गंभीर मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करे. सरकार बताए कि बलपूर्वक, लालच या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं."

बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, "सरकार लालच के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए. केंद्र सरकार द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जबरन धर्म परिवर्तन नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल परिस्थितियां खड़ी हो जाएंगी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र के वकील ने कहा कि कई राज्यों ने जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाए हैं. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि कई जगहों पर धर्म परिवर्तन के लिए चावल और गेहूं तक दिए जा रहे हैं. इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि यह सब रोकने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है.

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"आदिवासी क्षेत्र में लालच देकर धर्म परिवर्तन"

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि लालच देकर धर्म परिवर्तन आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा हो रहा है. मेहता ने कोर्ट को बताया कि कई बार पीड़ितों को इस बात की जानकारी नहीं होती कि वे आपराधिक कार्रवाई के दायरे में हैं और वे कहते हैं कि उनकी मदद की जा रही हैं.

याचिकाकर्ता उपाध्याय ने कोर्ट से डरा धमकाकर और पैसे का लालच देकर धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है. याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन एक राष्ट्रव्यापी समस्या है.

सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ में सुनवाई हो चुकी है. इससे संबंधित दो अधिनियम हैं. एक ओडिशा सरकार का और दूसरा मध्य प्रदेश सरकार का. ये छल, झूठ या धोखाधड़ी और धन द्वारा किसी भी जबरन धर्म परिवर्तन के नियम से जुड़े हैं. सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि संविधान पीठ ने इन अधिनियमों की वैधता को बरकरार रखा था.

कोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून की मांग पर केंद्र सरकार से 22 नवंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है. इस मामले पर अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.