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भारत: मुंबई की प्यास बुझाने वाले गांव अब पानी को तरस रहे

१४ जून २०२४

भारत के महानगर मुंबई को पानी की सप्लाई करने वाले गांव सूखे की मार झेल रहे हैं. गांववालों का कहना है कि उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता.

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नवीनवाड़ी गांव में पानी ले जाते हुए एक महिला
महाराष्ट्र के शाहपुर के नवीनवाड़ी गांव में जल संकट गहरायातस्वीर: Getty Images/AFP/P. Paranjpe

मुंबई भारत का दूसरा सबसे बड़ा और घनी आबादी वाला शहर है, जिसकी अनुमानित जनसंख्या 2.2 करोड़ है. यह भारत के सबसे व्यस्त शहरों में से एक है. लेकिन यह शहर पानी के लिए दूरदराज के गांवों पर निर्भर है. सालों तक मुंबई को पानी उपलब्ध कराने के बाद ये गांव खुद पानी की कमी से जूझ रहे हैं.

भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई की चमचमाती ऊंची इमारतों से दूर नवीनवाड़ी में बदबूदार पानी से भरा बर्तन सिर पर ले जाते हुए सुनीता पांडुरंग सतगीर कहती हैं, "मुंबई के लोग हमारा पानी पीते हैं, लेकिन सरकार समेत कोई भी हमारी ओर या हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देता है."

टैंकर के सामने लोगों की भीड़
नवीनवाड़ी गांव के लोग पानी के लिए सरकारी टैंकर पर निर्भरतस्वीर: AFP/P. Paranjpe

शहर बड़े लेकिन पानी नहीं

भारत के कई शहरों में पानी का संकट गहराता जा रहा है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह भयावह समस्याओं का पूर्वाभास कराता है. दिल्ली और बेंगलुरू जैसे शहरों में हाल यह है कि नलों से पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है और उन्हें पानी के लिए टैंकरों के इंतजार में अपना कीमती समय बर्बाद करना पड़ रहा है. इसी साल गर्मी की शुरुआत के पहले टेक सिटी बेंगलुरू में पानी का संकट इतना गंभीर हो गया कि लोग रोजमर्रा के काम के लिए किसी तरह से पानी जुटा पाए.

दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में पानी की मांग बढ़ रही है, लेकिन सप्लाई कम होती जा रही है. वहीं, जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित बारिश और अत्यधिक गर्मी भी पड़ रही है.

मुंबई के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे में नहरों और पाइपलाइनों से जुड़े जलाशय शामिल हैं, जो 100 किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बुनियादी प्लानिंग की विफलता का मतलब है कि नेटवर्क अक्सर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों और पास के जिलों से जुड़ नहीं पाता है.

"पानी इकट्ठा करना ही जीवन है"

इसके बजाय वे पारंपरिक कुओं पर निर्भर हैं. लेकिन मांग सीमित संसाधनों से कहीं ज्यादा है और भूजल स्तर गिर रहा है. सतगीर कहती हैं, "हमारा दिन और हमारा जीवन बस पानी इकट्ठा करने के इर्द-गिर्द घूमता रहता है, इसे एक बार इकट्ठा करें और फिर से इकट्ठा करने के बारे में सोचें." उन्होंने कहा, "हर दिन हम पानी के लिए जाते हैं. इसमें चार से छह चक्कर लगते हैं, हमारे पास कुछ और करने का समय नहीं होता."

जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को बदल रहा है, जिससे लंबे समय तक और अधिक गंभीर सूखा पड़ रहा है. गर्मियों के दौरान भीषण गर्मी में कुएं जल्दी सूख जाते हैं. 35 साल की सतगीर ने कहा कि उन्हें पानी लाने में हर दिन छह घंटे तक का समय लग सकता है.

बारी-बारी से पानी भरने का इंतजार कर रही गांव की महिलाएं
गांव के लोग कहते हैं कि उनका जीवन पानी इकट्ठा करने में ही गुजर रहा हैतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Paranjpe

गांव के लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

इस साल इन क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया. जब कुआं सूख जाता है, तो पूरा गांव पानी के लिए सरकारी टैंकर पर निर्भर हो जाता है, जो अनियमित रूप से सप्ताह में दो या तीन बार दूषित पानी पहुंचाता है. ये सरकारी टैंकर उस नदी से बिना ट्रीट किया पानी लेकर आते हैं जहां लोग नहाते हैं और जानवर पानी पीते हैं.

मुंबई की व्यस्त सड़कों से लगभग 100 किलोमीटर दूर, कृषि प्रधान शहर शाहपुर के पास नवीनवाड़ी में सतगीर का घर है. स्थानीय सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह क्षेत्र बड़े जलाशयों का भी स्रोत है, जो मुंबई को लगभग 60 प्रतिशत पानी की सप्लाई करते हैं.

सतगीर ने कहा, "हमारे आस-पास का सारा पानी बड़े शहरों में रहने वाले लोगों को जाता है और हमारे लिए कुछ भी नहीं बदला है." उन्होंने कहा, "हमारी तीन पीढ़ियां उस एक कुएं से जुड़ी हुई हैं, यह हमारे लिए पानी का एकमात्र स्रोत है."

उस पानी से आप हाथ नहीं धोएंगे जिसे इस गांव के लोग पीते हैं

नवीनवाड़ी गांव की उप प्रधान रूपाली भास्कर सदगीर ने बताया कि गांव के लोग अक्सर इस पानी से बीमार पड़ जाते हैं. उनका कहना है कि लोगों का यह उनका एकमात्र विकल्प है. उन्होंने कहा, "हम सालों से सरकार से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध कर रहे हैं कि बांधों में उपलब्ध पानी हम तक भी पहुंचे, लेकिन स्थिति खराब होती जा रही है."

घट रहा है जलस्तर

राज्य और नई दिल्ली में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वे इस समस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने जल संकट से निपटने के लिए बार-बार योजनाओं की घोषणा की है. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वे अभी तक उन तक नहीं पहुंच पाई हैं.

भारत के सरकारी नीति आयोग सार्वजनिक नीति केंद्र ने जुलाई 2023 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 2030 तक मीठे पानी की उपलब्धता में लगभग 40 प्रतिशत की भारी गिरावट आएगी. रिपोर्ट में "बढ़ती जल कमी, घटते भूजल स्तर और संसाधनों की गुणवत्ता में गिरावट" की भी चेतावनी दी गई है.

दिल्ली के जल अधिकार अभियान समूह, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के हिमांशु ठक्कर ने कहा कि यह कहानी पूरे भारत में दोहराई जा रही है. उन्होंने ने कहा कि यह "देशभर में होने वाली घटनाओं की एक सामान्य बात है."

टैंकर से पानी भरते बच्चे और महिलाएं
सरकारी टैंकर से जो पानी आता है वह कई बार पीने लायक नहीं होता हैतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Paranjpe

भारत में बढ़ती जा रही पानी की किल्लत

ठक्कर ने कहा कि यह "भारत में बांध बनाने की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी" को दर्शाता है.

नवीनवाड़ी के लोगों को पानी की राशनिंग पर निर्भर रहना पड़ रहा है. जब टैंकर आते हैं तो दर्जनों महिलाएं और बच्चे मटके और बाल्टी लेकर निकल पड़ते हैं. 50 साल के दिहाड़ी मजदूर संतोष त्रंबथ ढनौर ने कहा कि उस दिन उन्हें काम नहीं मिला इसलिए वह इस भागदौड़ में शामिल हो गए. उन्होंने कहा, "ज्यादा हाथ होने का मतलब घर में ज्यादा पानीआना है."

घर में नल हो, नल में पानी यही इनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश

25 साल के गणेश वाघे कहते हैं कि निवासियों ने शिकायतें की और विरोध प्रदर्शन किया लेकिन कुछ भी नहीं हुआ. वाघे कहते हैं, "हम किसी बड़ी इच्छा के साथ नहीं जी रहे हैं. बस अगली सुबह पानी का सपना देख रहे हैं."

एए/एसबी (एएफपी)