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समाज

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की बढ़ती मुश्किलें

आमिर अंसारी
१ अप्रैल २०२१

पिछले दिनों दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को पुलिस की तरफ से हिरासत में लेने के बाद से इस समुदाय में खौफ का माहौल है. म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां रक्तपात का दौर उनके भविष्य पर सवालिया निशान लगा रहा है.

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तस्वीर: DW/C. Kapoor

साल 2008 से भारत में बतौर रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे रिजवान (बदला हुआ नाम) इन दिनों दोहरी चिंता से गुज रह रहे हैं. वे म्यांमार में सैन्य तख्तापलट और सेना के निशाने पर आई आम जनता को लेकर चिंतित तो है ही साथ ही वे भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों पर पुलिसिया कार्रवाई को लेकर भी घबराए हुए हैं. दिल्ली के विकासपुरी में रिजवान सड़क किनारे खिलौने बेचते हैं.

वे कहते हैं, "भारत में रोहिंग्या इन दिनों डरे हुए हैं, पुलिस उन्हें यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी की तरफ से दिए पहचान पत्र के बावजूद उठाकर ले जाती है." बुधवार को दिल्ली के कालिंदी कुंज इलाके स्थित कंचन कुंज झुग्गी बस्ती से रोहिंग्या परिवार के चार सदस्यों को पुलिस थाने ले गई. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि यह "नियमित अभियान" है और लोग गिरफ्तार नहीं किए गए हैं.

अधिकारी ने बताया कि उन्हें एफआरआरओ भेज दिया गया क्योंकि उनके पास वैध दस्तावेज नहीं थे. अधिकारी ने कहा, "एफआरआरओ केस पंजीकृत करेगा और उन्हें वापस उनके देश भेज देगा." कंचन कुंज से ही 23 मार्च को छह लोगों और 24 मार्च को श्रम विहार कैंप से छह लोगों को पुलिस ने उठाया था. रोहिंग्या अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जितने भी लोगों को पुलिस ने पकड़ा था उनमें से सिर्फ एक का पहचान पत्र एक्स्पायर हो गया और वह कोरोना वायरस के कारण रिन्यू नहीं हो पाया.

रिजवान कहते हैं कि यूएनएचसीआर समुदाय को निजी तौर पर इस मुद्दे पर सूचना देता है और रोहिंग्या के मुद्दे पर सरकार से बात करने की कोशिश करता है. रिजवान का कहना है कि म्यांमार से जान बचाकर आए रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में भारत सरकार को ध्यान देना चाहिए और उन्हें इंसानी मदद दी जानी चाहिए. साथ ही वे कहते हैं कि म्यांमार लौटना इस वक्त लोगों के लिए नामुमकिन है क्योंकि वहां की स्थिति खतरनाक बनी हुई है.

पिछले दिनों जम्मू से 168 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया गया था और उन्हें वापस म्यांमार भेजने की तैयारी शुरू कर दी गई. उनकी रिहाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई है. हालांकि कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. याचिका में मांग की गई थी कि जो लोग होल्डिंग सेंटर में रखे गए हैं उन्हें भारत से वापस न भेजा जाए. कुछ रोहिंग्या लोगों की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल की है. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने कहा कि भारत ने शरणार्थी कंवेन्शन पर हस्ताक्षर नहीं किया है.

रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए काम करने वाले और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ.शाहिद सिद्दीकी बताते हैं कि रोहिंग्या मुसलमान देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं और वे जहां रहते हैं उस इलाके के थाने में उनका विवरण दर्ज होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रोहिंग्या मुस्लिमों और बांग्लादेशी नागरिकों समेत 13,700 विदेशी जम्मू और सांबा जिलों में रह रहे हैं, बताया जाता है कि 2008 से 2016 के बीच इनकी आबादी में छह हजार से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई. कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों का कहना है कि इनकी मौजूदगी क्षेत्र की शांति के लिए खतरा है.

कोरोना वायरस महामारी के दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति और खराब हुई है और उनके पास आजीविका के साधन कम हुए. डॉ. सिद्दीकी बताते हैं कि रोहिंग्या शरणार्थी आम तौर पर मजदूरी, सब्जी बेचकर या फिर रिक्शा चलाकर गुजारा करते हैं. हालांकि उनके मुताबिक महामारी के दौरान रोहिंग्याओं के लिए अवसर कम हुए हैं. डॉ. सिद्दीकी के मुताबिक, "महामारी के समय लॉकडाउन में रोहिंग्याओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनके सामने खाने-पीने की दिक्कतें आई."

रोहिंग्या समुदाय के लोगों का कहना है कि म्यांमार में सेना ने उनके समुदाय के सदस्यों का नरसंहार किया है और वे सैन्य शासन पर कतई भरोसा नहीं करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या रहते हैं.

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