1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत सरकार ने वापस लिया विवादित डेटा प्राइवेसी बिल

४ अगस्त २०२२

लंबे समय से विवाद की जड़ रहे कथित डेटा प्रोटेक्शन बिल को भारत सरकार ने आखिरकार वापस ले लिया है. इस बिल को लेकर फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां लगातार विरोध कर रही थीं.

https://p.dw.com/p/4F5dW
निजता कानून की मांग लंबे समय से की जा रही है
निजता कानून की मांग लंबे समय से की जा रही हैतस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhoto/picture-alliance

भारत ने वह डेटा प्रोटेक्शन और प्राइवेसी बिल वापस ले लिया है जिसे लेकर फेसबुक और गूगल जैसी विदेशी टेक कंपनियों ने चिंता जताई थी. 2019 में लाए गए बिल को वापस लेते हुए सरकार ने कहा कि नए कानून पर काम किया जाएगा.

इस कानून में कुछ बेहद कड़े नियमों का प्रावधान रखा गया था जिसके तहत निजी कंपनियों को अपने ग्राहकों के बारे में विस्तृत सूचनाएं भारत सरकार के साथ साझा करनी होतीं. इसे भारत की बीजेपी सरकार द्वारा टेक कंपनियों पर नकेल कसने की मुहिम के तौर पर देखा जा रहा था.

केंद्र सरकार की ओर से जारी एक नोटिस में कहा गया है कि संसदीय पैनल ने 2019 के बिल की समीक्षा की थी जिसके बाद इसे वापस लेने का फैसला किया गया. नोटिस के मुताबिक पैनल ने कई बदलावों की सिफारिश की थी जिसके बाद एक विस्तृत कानूनी बदलाव की जरूरत को देखते हुए इसे वापस ले लिया गया और अब सरकार एक नया बिल पेश करेगी.

भारत के आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सरकार ने नए बिल का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया है जो "काफी हद तक तैयार हो चुका है” और जल्दी ही सार्वजनिक किया जाएगा. वैष्णव के मुताबिक सरकार चाहती है कि 2023 के बजट सत्र से पहले यह बिल तैयार हो जाए ताकि उस सत्र में इसे पास करवा कर कानून को लागू किया जा सके.

इंटरनेट पर भुलाए जाने के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई

2019 के निजता बिल में एक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान था जिसका काम डेटा की सुरक्षा की देखरेख करना होता. सरकार का कहना था कि इस बिल का मकसद भारतीय नागरिकों की सुरक्षा करना था. लेकिन बड़ी टेक कंपनियों ने इस बिल के प्रावधानों को लेकर चिंता जाहिर की थी. कंपनियों का कहना था कि डेटा स्टोरेज को लेकर उनके ऊपर बहुत बोझ डाला जा रहा था.

निजता कानून की जरूरत

तकनीक से जुड़ी नीतियों पर निगाह रखने वाले दिल्ली स्थित एक पेशेवर सलाहकार प्रशांत रॉय कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि सरकार अब नए सिरे से बिल को तैयार करेगी. उन्होंने कहा, "भारत में अब भी निजता संबंधी कोई कानून बनता नजर नहीं आ रहा है. इस कारण डेटा संबंधी नियमों को अलग-अलग क्षेत्रों के नियमों पर निर्भर बनाया जा रहा है. यह एक साझा निजता नीति के जरिए साधा जा सकता है.”

यह भी पढ़ेंः औरतों के पीरियड्स का कैसे फायदा उठाती हैं फोन में इंस्टॉल ऐप्स

पिछले बिल को लेकर एक बड़ी शिकायत यह थी कि उसे बनाने से पहले अलग-अलग बाहरी पक्षधरों के साथ समुचित संवाद नहीं किया गया था. इस बारे में पूछे जाने पर वैष्णव ने कहा कि प्रक्रिया बहुत लंबी नहीं होगी क्योंकि संसदीय पैनल ने समीक्षा के दौरान उद्योग जगत की राय ले ली थी.

भारत का कहना है कि लोगों की निजता और डेटा की सुरक्षा के लिए इस कानून की जरूरत है. सरकार ने कहा है कि भारत में संवेदनशील निजी जानकारियों के दुरुपयोग को लेकर चिंताएं बहुत ज्यादा बढ़ी हैं.

नियमन या नियंत्रण?

इस कानून के कारण भारत सरकार के फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी निजी टेक कंपनियों के साथ रिश्तों में लगातार तनाव बढ़ रहा था. कंपनियों की चिंता है कि सरकार ने अलग-अलग समय पर टेक कंपनियों को नियमबद्ध करने के लिए जो कानून प्रस्तावित किए हैं उनमें लोगों की निजता का उल्लंघन किया जा रहा है.

इसी साल जनवरी में ट्विटर ने बताया था कि दुनिया भर की सरकारों ने बीते साल जनवरी से जून के बीच उसके यहां से कॉन्टेंट को हटाने के लिए 43,387 बार कानूनी आदेश जारी किए. ऐसे देशों की सूची में भारत पांचवें नंबर पर रहा.

2019 में यह बिल पेश करने के बाद केंद्र सरकार ने ‘गैर-निजी डेटा' को नियमित करने संबंधी प्रस्ताव भी पेश किया था. यह डेटा वे सूचनाएं हैं जिनके विश्लेषण का इस्तेमाल निजी कंपनियों अपना कारोबार बढ़ाने के लिए करती हैं. संसदी पैनल ने सुझाव दिया था कि इन नियमों को भी निजता बिल में शामिल किया जाना चाहिए.

प्रस्तावित बिल में सरकारी एजेंसियों को ‘भारत की संप्रभुता के हित में' नियमों से बाहर रखा गया था. डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह एजेंसियों को असीमित ताकत देता है जिसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है. इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता कहते हैं, "कई बड़ी चिंताएं थीं. अब देखना होगा कि नया बिल बेहतर होता या नहीं.”

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)