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‘मध्यम आय के जाल’ में ना फंस जाए भारतः वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट

विवेक कुमार
२१ अगस्त २०२४

दुनिया के मध्यम आय वाले देशों के आर्थिक भविष्य पर हाल ही में जारी वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इनके ‘मिडल इनकम ट्रैप’ में फंसने का खतरा है.

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भारत में एक पेट्रोल पंप पर कर्मचारी
भारत में छोटे उद्योगों के बड़े होने में बहुत बाधाएं आती हैंतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

अर्थव्यवस्था के भविष्य पर विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 100 से अधिक देशों को अगले कुछ दशकों में उच्च-आय वाले देश बनने में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. इन देशों में चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. इस अध्ययन में विकासशील देशों को "मध्यम-आय के जाल" से बचने की सलाह दी गई है.

"विश्व विकास रिपोर्ट 2024: द मिडल इनकम ट्रैप" में बताया गया है कि जैसे-जैसे देश अधिक अमीर होते हैं, वे आमतौर पर लगभग 10 फीसदी अमेरिकी जीडीपी प्रति व्यक्ति की सीमा पर "जाल" में फंस जाते हैं, जो 8,000 अमेरिकी डॉलर यानी लगभग सात लाख रुपये के बराबर है.

यह संख्या "मध्यम-आय" देशों की सीमा में आती है. 1990 के बाद से, केवल 34 मध्यम-आय वाले देशों ने उच्च-आय वाले देशों की श्रेणी में प्रवेश किया है. इनमें से एक-तिहाई से अधिक यूरोपीय संघ में शामिल होने वाले या फिर वे देश हैं जहां 1990 के बाद तेल के भंडार मिले.

तीन चौथाई आबादी की चुनौतियां

2023 के अंत में, 108 देशों को मध्यम-आय वाले देशों के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिनकी वार्षिक जीडीपी प्रति व्यक्ति 1,136 से 13,845 डॉलर यानी लगभग एक लाख से 12 लाख रुपये के बीच थी. ये देश दुनिया के छह अरब लोगों का घर हैं, यानी दुनिया की तीन चौथाई आबादी और अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लगभग 50 फीसदी लोग इन देशों में रहते हैं.

ये देश वैश्विक जीडीपी का 40 फीसदी से अधिक और कार्बन उत्सर्जन का 60 फीसदी से अधिक पैदा करते हैं. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि इन देशों के लोग अपने पूर्वजों की तुलना में बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जैसे तेजी से बुजुर्ग होती जनसंख्या, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता संरक्षणवाद और ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता.

विश्व बैंक ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री और सीनियर वाइस प्रेसिडेंट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स, इंद्रमित गिल कहते हैं, "वैश्विक आर्थिक समृद्धि की लड़ाई मुख्यतः मध्यम-आय वाले देशों में ही जीती या हारी जाएगी. लेकिन ये देश बहुत से पुरानी रणनीतियों पर निर्भर हैं. वे केवल निवेश पर ही निर्भर रहते हैं, या वे जल्दी में इनोवेशन की ओर बढ़ जाते हैं.”

भारत के आर्थिक भविष्य पर नजर

रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपने आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है. दुनिया की सबसे बड़ी और गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो उसकी प्रगति को प्रभावित कर सकती हैं. "वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024" के मुताबिक इनमें छोटे व्यवसायों की चुनौती एक बड़ी बाधा बन सकती है.

टूट रहा है 10 मिनट में डिलीवरी करने वाली कंपनियों का दम

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में कई कंपनियां छोटी रहती हैं और उन्हें बढ़ने में कठिनाई होती है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 90 फीसदी कंपनियों में पांच से कम कर्मचारी हैं और केवल कुछ ही कंपनियां 10 से अधिक कर्मचारियों तक बढ़ पाती हैं. यह प्रवृत्ति भारतीय व्यवसाय के माहौल में मौजूद नियमों और बाजार की बाधाओं का संकेत देती है, जो सफल कंपनियों की वृद्धि को रोकती हैं.

रिपोर्ट कहती है कि इन कंपनियों का अर्थव्यवस्था में योगदान तो होता है, लेकिन उनका आकार छोटा होने के कारण उनका रोजगार और उत्पादकता पर प्रभाव सीमित रहता है. रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि भारत को अपनी आर्थिक क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए इन विकृतियों को दूर करना होगा.

मसलन, छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) पर नियमों का बोझ कम करने, क्रेडिट तक पहुंच में सुधार करने, और इनोवेशन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों की आवश्यकता है. रिपोर्ट कहती है, "अधिक अनुकूल व्यवसायिक वातावरण बनाकर, भारत अपने एसएमई की क्षमता को खोल सकता है, रोजगार पैदा कर सकता है और आर्थिक विविधता को बढ़ावा दे सकता है."

रचनात्मक विनाश की आवश्यकता

रिपोर्ट का एक और महत्वपूर्ण विषय भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्माण और संरक्षण के बीच संतुलन है. उसके मुताबिक इनोवेशन और आर्थिक विकास के लिए जरूरी निर्माण की शक्तियां भारत में अपेक्षाकृत कमजोर हैं. शोधकर्ता कहते हैं, "बड़ी कंपनियां, जिनके पास इनोवेशन के लिए संसाधन होते हैं, ऐसा करने में धीमी हैं. साथ ही, छोटे व्यवसाय, लगातार बाजार में प्रवेश के बावजूद, मौजूदा बाजारों में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं कर पाते हैं.”

84 भारतीय स्टार्टअप में 24,250 से अधिक लोगों की गई नौकरी

रिपोर्ट के मुताबिक यह गतिहीनता आंशिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत संरक्षणवाद के कारण है. बाजार की बड़ी ताकतें अक्सर अपने पदों को खतरे में डालने वाले परिवर्तनों का विरोध करती हैं, जिससे हालात जस के तस बने रहते हैं. रिपोर्ट का कहना है कि भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि बनाए रखने के लिए "रचनात्मक विनाश" को अपनाना होगा, जहां पुराने उद्योगों और प्रथाओं को नए, अधिक कुशल लोगों द्वारा बदला जाए.

इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए केवल सही नीतियों की ही नहीं बल्कि जोखिम लेने और प्रयोग की संस्कृति की भी आवश्यकता है. भारत का बढ़ता हुआ स्टार्ट-अप इकोसिस्टम सही दिशा में एक कदम है, लेकिन इसे फलने-फूलने के लिए, प्रवेश की बाधाओं को कम करने और उद्यमियों को अनुकूल नीतियों, पूंजी की पहुंच और मार्गदर्शन के माध्यम से समर्थन करने के लिए एक ठोस प्रयास करना होगा.

पलायन की चुनौती

भारत का मानव संसाधन उसकी सबसे बड़ी संपत्तियों में से एक है, फिर भी ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभाओं के पलायन की चुनौती के कारण यह एक चिंता का विषय भी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के उच्च कुशल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा बेहतर अवसरों और जीवन स्तर की तलाश में पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका की ओर पलायन कर रहा है. यह ब्रेन ड्रेन उस प्रतिभा का नुकसान है जो अन्यथा भारत के विकास में योगदान दे सकती थी.

हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत ब्रेन ड्रेन के प्रभाव को कम करने और इसे एक लाभ में बदलने के तरीकों पर विचार कर सकता है. उच्च कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की क्षमता का विस्तार करके, भारत न केवल घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकता है बल्कि वैश्विक बाजार की मांग भी पूरी कर सकता है. इसके अलावा, अपने प्रवासी भारतीयों के साथ मजबूत संबंध बनाकर, भारत उन लोगों के ज्ञान, कौशल और निवेश का लाभ उठा सकता है जो विदेश में बसे हैं.

ट्रंपोनॉमिक्स का भारत जैसे देशों पर क्या होगा असर?

रिपोर्ट में "ब्रेन गेन" की अवधारणा पर भी चर्चा की गई है, जहां वापसी करने वाले प्रवासी मूल्यवान विशेषज्ञता और नेटवर्क लाते हैं जो उनके गृह देश में इनोवेशन और ग्रोथ को प्रेरित कर सकते हैं. इसे प्रोत्साहित करने के लिए, भारत उन नीतियों को लागू कर सकता है जो प्रवासियों के लौटने और स्थानीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने को आसान बनाती हैं, जैसे कर छूट, अनुदान और व्यवसाय शुरू करने के लिए सरल प्रक्रियाएं.

गिल कहते हैं, "एक नई रणनीति की आवश्यकता है: पहले निवेश पर ध्यान दें; फिर विदेशों से नई तकनीकों के समावेश पर जोर दें; और अंततः एक तिहरी रणनीति अपनाएं जो निवेश, समावेश और इनोवेशन को संतुलित करे.”

वह कहते हैं कि जनसांख्यिकीय, पारिस्थितिकीय और भू-राजनीतिक दबावों के बढ़ने के चलते गलती की कोई गुंजाइश नहीं है.