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21 साल की कोशिशों के बाद भारत को मिला चाबहार बंदरगाह

१४ मई २०२४

ईरान और भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के विकास और प्रबंधन को लेकर समझौता हो गया है. इस समझौते के लिए बातचीत 2003 में शुरू हुई थी.

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ईरान का चाबहार बंदरगाह
रणनीतिक रूप से अहम है ईरान का चाबहार बंदरगाहतस्वीर: IRNA

भारत को ईरान का चाबहार बंदरगाह के 10 साल तक इस्तेमाल के अधिकार मिल गए हैं. भारत इस बंदरगाह का विकास करेगा और 10 साल तक इसका प्रबंधन करेगा. पाकिस्तान से लगती ईरान की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित चाबहार बंदरगाह को समुद्री व्यापार के लिए एक अहम और रणनीतिक जगह माना जाता है.

ईरान के शहरी विकास मंत्रालय ने बताया कि समझौते के तहत भारत की इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) कंपनी चाबहार में 37 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी और "बंदरगाह का ढांचागत विकास" करने के लिए "रणनीतिक उपकरण" उपलब्ध कराएगी.

सोमवार को भारत के जहाजरानी मंत्री सर्वानंद सोनोवाल और ईरान के शहरी विकास मंत्री मेहरदाद बजरपाश ने समझौते पर दस्तखत किए.

बजरपाश ने इस मौके पर कहा, "इलाके में परिहवन के विकास में चाबहार एक अहम केंद्र बन सकता है. हम इस समझौते से बेहद खुश हैं और भारत पर हमें पूरा भरोसा है.”

सोनोवाल ने कहा कि भारत और ईरान "क्षेत्रीय बाजारों तक पहुंच के दोनों देशों के हितों को देखते हुए चाबहार बंदरगाह के हरसंभव विकास को लेकर” बहुत उत्साहित हैं. उन्होंने कहा, "लंबी अवधि का यह समझौता भारत और ईरान के बीच सदा से रहे भरोसे और प्रभावशाली साझेदारी का प्रतीक है.

2003 से जारी थी कोशिशें

इस समझौते पर भारत और ईरान के बीच लगभग 20 साल से बातचीत चल रही थी. 2003 में भारत ने ईरान से चाबहार बंदरगाह के विकास में हिस्सेदारी पर बातचीत शुरू की थी. अगस्त 2012 में इस समझौते को लेकर भारत, ईरान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच बैठक हुई जिसके बाद जनवरी 2013 में भारत ने चाबहार में 10 करोड़ डॉलर के निवेश पर सहमति दी थी.

2016 में भारत ने चाबहार बंदरगाह के लिए 50 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराने पर सहमति दी थी. तब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी की मौजूदगी में सहमति पत्र पर दस्तखत भी हो गए थे.

लेकिन यह समझौता सिरे नहीं चढ़ पाया क्योंकि ईरान और अमेरिका के बीच 2015 में हुआ ऐतिहासिक परमाणु समझौता 2018 में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद टूट गया और अमेरिका ने ईरान के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिए.

अमेरिका नाखुश

अमेरिका इस समझौते को लेकर बहुत खुश नहीं रहा है लेकिन 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद उसने इसे स्वीकार कर लिया था. हालांकि सोमवार को उसने चेतावनी दी कि भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं.

सोमवार को अमेरिका ने एक बार फिर इस समझौते को लेकर कड़ा रुख दिखाया. वहां के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चाबहार में काम करने वाली कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंधों से किसी तरह की राहत नहीं मिलेगी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा, "चूंकि यह अमेरिका से जुड़ा मामला है, इसलिए ईरान पर लगे प्रतिबंध जारी रहेंगे. ईरान के साथ व्यापार करने वाली हर कंपनी को, चाहे वह कहीं की भी हो, इस बात का पता होना चाहिए वह प्रतिबंधों का खतरा मोल ले रही है.”

क्यों अहम है चाबहार?

चाबहार एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिसकी समुद्र तक सीधी पहुंच है. यह मध्य और पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत, ईरान और अफगानिस्तान के व्यापार का अहम मार्ग बन सकता है.

चाबहार बंदरगाह असल में दो अलग बंदरगाहों से मिलकर बना है. इन्हें ‘शाहिद कलंतरी' और ‘शाहिद बेहेस्ती' कहा जाता है. भारतीय कंपनी ‘इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड' शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह का विकास करेगी.

इसके जरिए भारत का अफगानिस्तान से सीधा रास्ता खुल जाएगा और उसे पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना होगा. अभी भारत को यदि अफगानिस्तान सामान भेजना हो तो उसके ट्रकों को पाकिस्तान होकर जाना पड़ता है. दोनों देशों के बीच तनाव अक्सर इसमें बाधा बनता है.

चाबहार बंदरगाह का फायदा अफगानिस्तान को भी होगा और उसकी पाकिस्तान पर निर्भरता कम होगी. इससे अफगानिस्तान की राजनीति पर पाकिस्तान का प्रभाव कम होगा, जिसका रणनीतिक फायदा भारत को मिल सकता है.

चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से सिर्फ 72 किलोमीटर दूर स्थित है. ग्वादर पाकिस्तान का वह बंदरगाह है जिसे चीन विकसित कर रहा है. इसके जरिए चीन अरब सागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है.

विवेक कुमार (एएफपी)

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