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कानून और न्यायभारत

भारत: स्कूलों में बच्चे कैसे रहें सुरक्षित

आमिर अंसारी
२३ अगस्त २०२४

महाराष्ट्र के ठाणे के बदलापुर में एक नामी स्कूल में प्री-प्राइमरी क्लास में पढ़ने वाली चार साल की दो बच्चियों के कथित यौन शोषण के मामले ने अभिभावकों को स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित कर दिया है.

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कोलकाता में विरोध प्रदर्शन
कोलकाता में महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन करते लोगतस्वीर: Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance

ठाणे के बदलापुर के एक स्कूल के टॉयलेट में दो बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटना 12 और 13 अगस्त को हुई थी. यौन उत्पीड़न का आरोप स्कूल में काम करने वाले क्लीनर अक्षय शिंदे पर लगा. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक आरोपी ने बच्चियों को किसी को कुछ ना बताने की धमकी भी दी.

पीड़ित परिवार का आरोप है कि पुलिस ने कार्रवाई करने में देरी की. परिवार ने कहा कि पुलिस ने 16 अगस्त को एफआईआर दर्ज की और उसके बाद आरोपी को गिरफ्तार किया. परिवार द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, माता-पिता को एफआईआर दर्ज कराने से पहले कथित तौर पर 11 घंटे तक इंतजार कराया गया.

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पुलिस के रवैये पर उठता सवाल

ठाणे पुलिस पर ढिलाई के आरोपों पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, "जिन पुलिस वालों ने शिकायत दर्ज करने में देरी की, उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि यह छोटे बच्चों से जुड़ा मामला है."

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हमने देखा कि कोलकाता में हाल ही में महिला डॉक्टर के साथ कैसी वारदात हुई और उसके बाद ठाणे का मामला बेहद चिंताजनक है. इन ताजा मामलों में सीधे तौर पर पुलिस पर लापरवाही बरतने के आरोप लगे हैं. ऐसे में अगर लापरवाही बरतने वाले पुलिस वालों पर सीधी कार्रवाई होती है तो आगे से पुलिस ज्यादा मुस्तैद नजर आएगी."

आरोपी अक्षय शिंदे के बारे में बताया जा रहा है कि वह एक हाउसकीपिंग कंपनी के माध्यम से स्कूल में अगस्त में काम पर लगे थे. सिंह कहते हैं, "यह स्कूल की जिम्मेदारी है कि वह अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों का वेरिफिकेशन कराएं और बच्चों तक पुरुष कर्मचारियों की पहुंच बंद रखें."

Symbolfoto | Missbrauch in der Familie
जानकार कहते हैं कि छोटे बच्चे यौन हिंसा के बारे में कई बार बता नहीं पाते हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)तस्वीर: Inderlied/Kirchner-Media/imago images

उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट बच्चों के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा को रोकने के लिए ही बना है. उन्होंने कहा, "भारतीय न्याय संहिता में भी प्रावधान है कि अगर पुलिस अधिकारी यौन अपराध में कार्रवाई नहीं करता है तो वह निलंबित होगा, उसके खिलाफ मुकदमा होगा और 6 साल तक की सजा का प्रावधान है. क्या आज तक देश में किसी पुलिस वाले को ऐसे में मामले में सजा हुई, जबकि अत्याचार के मामले बढ़ते भी जा रहे हैं?"

कोलकाता में कैंडल मार्च में शामिल लोग (फाइल तस्वीर)
ठाणे में दो बच्चियों के कथित यौन उत्पीड़न के बाद लोगों ने रेल ट्रैक जाम कर दिया थातस्वीर: Jit Chattopadhyay/ZUMAPRESS/picture alliance

स्कूल पर क्या हुई कार्रवाई

बदलापुर मामले में प्रिंसीपल, एक क्लास टीचर और एक महिला अटेंडेंट को निलंबित कर दिया गया है. दो छोटी बच्चियों के यौन शोषण की जांच में कथित रूप से लापरवाही बरतने के लिए एक वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक समेत तीन पुलिस अधिकारियों को भी निलंबित कर दिया गया है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया है और कहा है कि मामले की त्वरित सुनवाई की जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. राज्य सरकार ने मामले की जांच के एसआईटी को सौंप दी है.

बदलापुर की घटना के बाद 20 अगस्त को हजारों की भीड़ ने इंसाफ की मांग करते हुए वहां के रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया, जिसकी वजह से घंटों रेल सेवा बाधित रही. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए लाठीचार्ज भी किया और कुछ लोग गिरफ्तार किए गए.

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स्कूल में कैसे सुरक्षित रहें बच्चे

सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी कहती हैं ज्यादातर स्कूलों में बच्चियों का टॉयलेट अलग नहीं होता है. उनका कहना है कि स्कूलों के लिए कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) मौजूद नहीं है. कुमारी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "गली-मोहल्लों में स्कूल खोल दिए जा रहे हैं, कोई भी प्राइवेट स्कूल कहीं भी खोल लेता है, बच्चे वहां जाते हैं और वहां कोई व्यवस्था नहीं होती है. आप शौचालयों की बात छोड़ दीजिए स्कूल की सुरक्षा का भी इंतजाम नहीं होता है."

रंजना कुमारी ने कहा कि अगर किसी कर्मचारी को स्कूल में काम पर रखा जा रहा है तो उसका बैकग्राउंड चेक होना चाहिए और उसके बाद ही नौकरी पर रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "कुछ बड़े स्कूलों और सरकारी स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो बाकी स्कूलों में अधकचरी व्यवस्था चलती है."

पॉक्सो एक्ट के बाद क्या बदलाव आया

प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट (पॉक्सो) नाबालिग बच्चियों को यौन अपराधों से सुरक्षित रखने के लिए 2012 में लाया गया था. इसके लाने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि इससे नाबालिग बच्चियों को यौन उत्पीड़न के मामलों में संरक्षण दिया जाए. यह कानून ऐसे लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है. वहीं पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजाओं का भी प्रावधान किया गया है.

जानकार कहते हैं कि देश में प्राइमरी से लेकर पांचवीं तक के बच्चों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है. रंजना कुमारी ने कहा, "पांचवीं के बाद बच्चे समझदार हो जाते हैं और समस्या को माता-पिता को बता सकते हैं लेकिन छोटे बच्चे तो अपनी साथ घटी घटना को बता भी नहीं सकते हैं."

उन्होंने कहा समय-समय पर स्कूलों की जांच होनी चाहिए, यह जानने के लिए की कि वहां क्या व्यवस्था है, स्कूल की कैसी सुरक्षा है और वहां क्या पढ़ाया जा रहा है.

पीपल अगेंस्ट रेप इन इंडिया (PARI) नाम की संस्था से जुड़ी योगिता भयाना कहती हैं कि पॉक्सो एक्ट बहुत कठोर कानून है लेकिन ट्रेनिंग और जागरूकता के लिहाज से जो होना चाहिए, उतना नहीं हो पा रहा है. स्कूल में सुरक्षा के सवाल पर योगिता डीडब्ल्यू से कहती हैं, "स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए, सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए और अगर छोटे बच्चों का स्कूल है तो ज्यादा संख्या में कर्मचारी महिला होनी चाहिए."

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2022 में औसतन हर दिन 90 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैंतस्वीर: Ritesh Shukla/Getty Images

योगिता कहती हैं कि बहुत से नियमों का तो पालन ही नहीं हो रहा है और कई ऐसे मामले होते हैं जो बाहर सामने आ ही नहीं पाते. कुमारी की ही तरह योगिता भी मानती हैं कि छोटे बच्चे अपनी साथ हुई घटना के बारे में बता नहीं पाते.

योगिता कहती हैं, "देश में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून तो बहुत सख्त बन गया है लेकिन रोकथाम पर कोई काम नहीं हो रहा है." योगिता के मुताबिक, "जब हम लोग शिक्षण संस्थानों में जाते हैं तो वर्कशॉप के दौरान कई बच्चियां बोल नहीं पाती हैं और एक-दो ही लड़कियां खुलकर बोलने के लिए सामने आती हैं. तो आप समझ सकते हैं कि लड़कियों पर किस तरह का दबाव होता है."

पूर्व डीजीपी सिंह कहते हैं, "यौन शोषण को लेकर देश में कानून बहुत प्रभावी हैं लेकिन इस्तेमाल में ही वे निष्प्रभावी है. पॉक्सो एक्ट है, निर्भया कांड के बाद बने दिशानिर्देश हैं लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. मान लीजिए पुलिस के पास एके56 राइफल है और वह गुलेल का इस्तेमाल कर रही है तो आप क्या कर सकते हैं."

मुंबई पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी से मई, 2024 तक महिलाओं और बच्चियों से संबंधित 2,584 केस दर्ज हुए. 2023 में पॉक्सो से जुड़े 509 मामलों में बच्चियों से दुष्कर्म, विनय भंग, छेड़छाड़ आदि अपराध शामिल हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों में महाराष्ट्र में पांच फीसदी अधिक वृद्धि दर्ज की गई थी.

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