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यूरोपीय संसद का प्रस्ताव "अस्वीकार्य"

१४ जुलाई २०२३

भारत ने मणिपुर पर लाए गए यूरोपीय संसद के प्रस्ताव को "उपनिवेशवादी मानसिकता" करार दिया है.

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मणिपुर में भारतीय सेना के कई अधिकारी
तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

पूर्वी फ्रांस के स्ट्रासबुर्ग में यूरोपीय संसद के सांसदों ने मणिपुर में हो रही हिंसा पर लाए गए प्रस्ताव को मंजूरी दी. प्रस्ताव कहता है कि यूरोपीय संसद, "मणिपुर में हिंसक कार्रवाई, जीवन की क्षति और संपत्ति के नुकसान की तीखी निंदा करती है. बीजेपी पार्टी के अग्रणी सदस्यों की राष्ट्रवादी टिप्पणियों को खारिज करती है."

मणिपुर में हिंसा तो थमी लेकिन राजनीति तेज

प्रस्ताव में भारत सरकार और स्थानीय सरकार से पीड़ितों को बिना किसी बाधा के मानवीय मदद पहुंचाने की अनुमति देने की मांग की गई है. रिजोल्यूशन वहां जांच के लिए स्वतंत्र समीक्षकों की मांग भी कर रहा है. 11 जुलाई 2023 को लाए गए इस प्रस्ताव में हर पक्ष से भड़काऊ बयान न देने की मांग भी की गई है. प्रस्ताव के सातवें और आखिरी बिंदु के मुताबिक, "यूरोपीय संसद अपने अध्यक्ष को यह निर्देश देती है कि इस प्रस्ताव को ईयू संस्थानों, सदस्य देशों और भारतीय प्रशासन को भेजा जाए."

स्ट्रासबुर्ग में यूरोपीय संसद
स्ट्रासबुर्ग में यूरोपीय संसदतस्वीर: Patrick Seeger/AP Images/picture alliance

भारत का यूरोपीय संसद को जवाब

यूरोपीय संसद का यह प्रस्ताव भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा से पहले आया है. नरेंद्र मोदी इस वक्त दो दिन के फ्रांस दौरे पर हैं. पेरिस में बैस्टील डे की परेड में वह मुख्य अतिथि हैं.

 

भारत ने मणिपुर के तनाव को अपना भीतरी मामला बताते हुए इस प्रस्ताव को खारिज किया है. गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, "हमने देखा कि यूरोपीय संसद ने मणिपुर के घटनाक्रम पर बहस की और तथाकथित अर्जेंसी रिजोल्यूशन पास किया. भारत के अंदरूनी मामलों में ऐसा दखल अस्वीकार्य है और ये उपनिवेशवादी मानसिकता को दर्शाता है."

मणिपुर में हिंसा के विरोध में प्रदर्शन करतीं मैती महिलाएं
मणिपुर में हिंसा के विरोध में प्रदर्शन करतीं मैती महिलाएंतस्वीर: Sharique Ahmad/DW

क्या हो रहा है पूर्वोत्तर भारत में

म्यांमार से सीमा साझा करने वाला भारत का मणिपुर राज्य दो महीने से भी ज्यादा समय से जातीय हिंसा की चपेट में है. मई का महीना शुरू होते मणिपुर से हिंसा की खबरें आने लगीं और फिर इसकी चपेट में म्यामार बॉर्डर से लगा  मिजोरम भी आ गया.

भारतीय प्रशासन का आरोप है कि म्यांमार में इमरजेंसी लगने के बाद बड़ी संख्या में लोग भागकर इन राज्यों में आए. भारतीय अधिकारियों के मुताबिक इन आप्रवासियों ने जंगलों में कब्जा किया. अतिक्रमण हटाने के विरोध में तीन मई को कुकी समुदाय के लोगों के आदिवासी एकता मार्च के दौरान हिंसा शुरू हुई. बाद में इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया.

अवैध प्रवासियों का आंकड़ा जुटाएगी मणिपुर और मिजोरम सरकार

हिंसा के कारण मणिपुर में अब तक 50 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर रिलीफ कैम्पों में शरण ले चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मैती और कुकी समुदाय के संघर्ष में बदल चुकी हिंसा ने अब तक 120 से ज्यादा लोगों की जान ली है.

ओएसजे/एसबी (एएफपी, रॉयटर्स)

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