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समाज

किसानों के लिए खुला बाजार कितना फायदेमंद?

आमिर अंसारी
८ जून २०२०

कृषि क्षेत्र में दशकों पुरानी सुधार मांग को मानते हुए सरकार ने अध्यादेश जारी किए हैं लेकिन क्या छोटे-छोटे टुकड़े पर खेती करने वाले किसानों का इससे लाभ हो पाएगा.

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BG Brasilien Indigene in Selbstisolation wegen der Corona Pandemie
तस्वीर: Reuters/J. L. Saavedra

पिछले दिनों सरकार ने कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए कृषि मंडियों के बाहर अपनी फसल बेचने और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर किसानों के लिए अध्यादेश जारी किए थे. इसके अलावा आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में संशोधन के जरिए किसानों के लिए रेगुलेटरी व्‍यवस्‍था को उदार बनाया गया था. शुक्रवार 5 जून को सरकार ने कृषि सुधार से जुड़े दो अध्यादेश अधिसूचित किए गए थे.

अध्यादेश के मुताबिक किसानों को अपनी पसंद के बाजार में उत्पाद बेचने की छूट मिलेगी. आधिकारिक बयान के मुताबिक, "कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सुविधा) अध्‍यादेश 2020 को अधिसूचित किया गया है. इसके तहत किसान अपनी पसंद के बाजार में उपज बेच पाएंगे. सरकार को उम्मीद है कि किसानों को फसलों का बेहतर दाम मिलेगा.

एक और अध्यादेश "मूल्‍य आश्‍वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा अध्‍यादेश 2020" को भी अधिसूचित किया गया है. इस अध्यादेश के तहत किसानों को एक राष्ट्रीय ढांचा मिलेगा. जिससे कृषि व्यवसाय से जुड़ी कंपनियां, प्रोसेसर, थोक व्यापारी और निर्यातकों और किसानों के बीच पहले से तय कीमतों पर समझौते की छूट होगी.

सरकार का कहना है कि किसानों को बेहतर दाम वाले अपनी पसंद के बाजार में उपज बेचने के विकल्प देने से संभावित खरीदारों की संख्या बढ़ेगी. महाराष्ट्र के अमरावती के किसान संदीप रोडे कहते हैं कि सरकार ने जो कृषि सुधार किए हैं उससे किसानों को जरूर लाभ होगा लेकिन वह साथ ही कहते हैं कि जो सरकार ने किया है वह ठोस नहीं है. रोडे कहते हैं, "निश्चित तौर पर सरकार के फैसलों का किसानों को लाभ होगा. किसान अपनी फसल को खुले बाजार में बेच पाएगा और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे दाम अच्छा मिलेगा."

रोडे कहते हैं कि सरकार इन सुधारों को कैसे लागू करवाती हैं, यह देखना पड़ेगा. रोडे का सुंयुक्त परिवार एक सौ से अधिक एकड़ की जमीन पर कपास, ज्वार, हल्दी, तूर, सोय की खेती करता है. रोडे के मुताबिक, "लेकिन अब जमीन परिवार के सदस्यों के बीच बंट चुकी है और साल दर साल किसानी करने वालों को लाभ कम होता जा रहा है."

महाराष्ट्र किसान पुत्र आंदोलन के अमर हबीब कहते हैं, "सरकार ने जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर फैसला किया है वह सही है लेकिन यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था. मैं तो यह कहूंगा कि सरकार ने अनिच्छा से यह काम किया है. कोरोना वायरस की वजह से देश की जो हालत बिगड़ी है और अर्थव्यवस्था का जो हाल है वह देखते हुए सरकार ने मजबूरी में यह कदम उठाया है."

हबीब कहते हैं कि कृषि भूमि सीलिंग कानून की वजह से देश बर्बाद हो चुका है. हबीब कहते हैं, "देश के 85 फीसदी किसान दो एकड़ कृषि भूमि के नीचे है." सीलिंग कानून के तहत हर राज्य अपने हिसाब से कृषि भूमि की सीमा तय करता है. हबीब कहते हैं, "जमीन के छोटे टुकड़े के साथ किसानों का जीना नामुमकिन जैसा है. छोटे जमीन वाले किसान ही तो शहर की ओर आए थे और अपना पेट पाल रहे थे, लॉकडाउन हुआ तो वे फिर गांव लौट गए."

रोडे के मुताबिक, "जो छोटे किसान होते हैं उनको तो बैंक भी कर्ज नहीं देता है और दो से चार एकड़ की जमीन पर साल भर कैसे गुजारा होगा यह अपने आप में सोचने वाला विषय है." हबीब कहते हैं कि खेती एक नुकसानदायक काम है और इसमें बड़ी कंपनियां नहीं आती है. हबीब का कहना है कि मंडी की वजह से किसानों का नुकसान हुआ है और बाजार खुलने से किसानों को जरूर लाभ होगा. हबीब के मुताबिक, "यह सरकार तो छह साल से सत्ता में है लेकिन अब क्यों किसान के हित में फैसले ले रही है? ऐसा इसलिए क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई और अब किसान याद आ रहे हैं."

पिछले दिनों कृषि मंत्री ने कृषि सुधारों को लेकर सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इन सुधारों को सफल तरीके से लागू करने में सहयोग का आग्रह किया था.

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