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राजनीतिभूटान

भूटान चुनाव पर भारत और चीन की नजर

५ जनवरी २०२४

भूटान में 9 जनवरी को मतदान होना है. भूटान और चीन के बीच बढ़ती करीबी भारत के लिए चिंता का सबब है और नई सरकार बनने की प्रक्रिया पर भारत की नजर है.

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अक्तूबर 2023 में चीन और भूटान में समजौता हुआ
भूटान के विदेश मंत्री तांदी दोर्जी (बाएं) बीजिंग में चीन के उपराष्ट्रपति हांग जेंग के साथतस्वीर: Liu Weibing/picture alliance

दो विशाल और शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी देशों भारत और चीन के बीच बसा हिमालयी देश भूटान सदियों तक हिमालय की चोटियों में महफूज रहा है. लेकिन जैसे-जैसे भारत और चीन की प्रतिद्वन्द्विता बढ़ रही है, भूटान में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ती जा रही है.

अब जबकि 9 जनवरी को थिंपू की नई संसद के लिए चुनाव होने वाले हैं तो भारत और चीन बहुत ध्यान से उसकी ओर देख रहे हैं क्योंकि दोनों ही ‘दुनिया के सबसे खुश देश‘ के रूप में जाने जाने वाले इस छोटे से देश को अपने रणनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं.

भूटान के फैसले से असम के हजारों किसानों की रोजी-रोटी खतरे मेंबीते अक्तूबर में भूटान और चीन के बीच एक ‘सहयोग समझौते‘ पर दस्तखत हुए थे जिसके तहत दोनों देशों के बीच विवादित इलाकों पर बातचीत के लिए सहमति बनी. भारत के लिए यह समझौता चिंता का विषय बन गया है क्योंकि भूटान की विदेश नीति लंबे समय तक भारत के प्रभाव में रही है.

बढ़ रहा है चीन का प्रभाव

किंग्स कॉलेज लंदन में प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ हर्ष वी पंत कहते हैं कि दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव के प्रसार में चीन के लिए भूटान ‘आखिरी बाधाओं में से एक' है. दरअसल, भारत दक्षिण एशियाई पड़ोसियों जैसे भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव्स और श्रीलंका को अपने कुदरती प्रभाव क्षेत्र में गिनता है. पिछले कुछ सालों में चीन ने इन सभी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाया है.

थिंपू और बीजिंग के बीच औपचारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं. 2007 तक भारत ही भूटान की विदेश नीति की देखरेख करता रहा है. ब्रिटेन के थिंकटैंक चाथम हाउस ने दिसंबर में जारी एक रिपोर्ट में लिखा कि विदेश नीति की देखरेख के बदले "भूटान को मुक्त व्यापार और सुरक्षा" मिलती रही है.

रिपोर्ट में उपग्रह से ली गईं कुछ तस्वीरें शामिल थीं जिनमें भूटान के उत्तरी इलाके में चीनी निर्माण दिखाई दिया. अब भूटान और चीन के बीच जिस तरह की बातचीत हो रही है, चाथम के मुताबिक उसके बाद यह इलाका "चीन को मिल सकता है.”

चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि उनकी सरकार भूटान के साथ "सीमा विवाद को जल्द हल करने और कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने” के लिए प्रतिबद्ध है. चाथम हाउस ने कहा, "चीन उम्मीद करेगा कि उत्तरी भूटान में अपने पांव जमा लेने का समझौता भूटान के साथ कूटनीतिक रिश्तों की राह तैयार करेगा और उसे चीन के प्रभाव क्षेत्र में ले आएगा.”

प्रोफेसर पंत कहते हैं, "ऐसे समझौते के भारत के लिए बहुत बड़े निहितार्थ होंगे. अगर चीन इसमें सफल हो जाता है तो ऐसा संदेश जा सकता है कि अब अपने पड़ोस में ही भारत हाशिये पर चला गया है.”

भारत के लिए चिंता

पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के रिश्तों में तनाव बहुत बढ़ा है. दोनों देश 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं और कई इलाकों को लेकर विवाद है. 2017 में भारत-चीन-भूटान सीमा पर स्थित डोकलाम में चीन की सेनाएं घुस आई थीं जिसके बाद 72 दिन तक सैनिक आमने-सामने रहे थे.

चाथम हाउस कहता है, "भूटान की उत्तरी सीमा में किसी तरह के बदलाव से भारत की चिंता बढ़ जाएगी कि उसके बाद ध्यान पश्चिम में स्थित डोकलाम की ओर जाएगा.”

लेकिन पंत कहते हैं कि चीन और भूटान के बीच समझौता होना ठीक ही है. वह बताते हैं, "अगर आज वे अपना विवाद हल नहीं करते हैं तो कल हालात और ज्यादा विवादग्रस्त हो जाएंगे.”

द हिंदू अखबार की कूटनीतिक संपादक सुहासिनी हैदर कहती हैं कि भारत को चिंता इस बात की है कि भूटान और चीन के बीच समझौता तय है. उनके मुताबिक 2017 के डोकलाम विवाद के बाद भूटान और चीन के बीच बातचीत में आई तेजी से भारत काफी चिंतित है.

विश्लेषक कहते हैं कि विदेश नीति भूटान के मतदाताओं को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करती. करीब आठ लाख लोगों के इस देश में बेरोजगारी और युवाओं की देश छोड़कर विदेश जाने की बढ़ती प्रवृत्ति ज्यादा बड़ी चिंता है.

लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि भारत भूटान का निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर का सबसे बड़ा स्रोत है. थिंपू की मुद्रा भारतीय रुपये पर निर्भर है और दोनों देशों के बीच संबंध आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं. हैदर कहती हैं, "जिसकी भी सरकार बनेगी, भारत के साथ संबंध उसके लिए अहम होंगे.”

वीके/सीके (एएफपी)