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भारत ने चीन से ड्रोन के पुर्जों के आयात पर लगाया बैन

१० अगस्त २०२३

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने सैन्य ड्रोनों के स्थानीय निर्माताओं को चीन में बने पुर्जे इस्तेमाल करने से मना कर दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने घोषणा नहीं की है, लेकिन कई महीनों से इस नीति को लागू किया जा रहा है.

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दुनिया भर की ड्रोन में चीन के पुर्जे इस्तेमाल होते हैं, तस्वीर में दिख रहा ड्रोन पाकिस्तान का है
ड्रोन के पुर्जे चीन से मंगाने पर भारत ने लगाई रोकतस्वीर: R.Saleha/Kalam4Solutions

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ सरकारी कागजात और रक्षा अधिकारियों से मिली जानकारी के आधार पर यह दावा किया है. अधिकारियों ने बताया कि देश के सुरक्षा तंत्र से जुड़े नेताओं को चिंता है कि ड्रोनों के कम्युनिकेशन फंक्शन, कैमरा, रेडियो ट्रांसमिशन और ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर में चीनी पुर्जों के मौजूद होने से खुफिया जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया संकट में पड़ सकती है.

इनमें से तीन अधिकारियों, सरकार और उद्योग जगत के छह में से कुछ और व्यक्तियों ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर रॉयटर्स से बात की. विषय की संवेदनशीलता की वजह से उन्हें मीडिया से बात करने का अधिकार नहीं दिया गया है.

सुरक्षा को लेकर चिंताएं

रॉयटर्स ने भारत के रक्षा मंत्रालय से भी सवाल पूछे लेकिन मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया. ये कदम ऐसे समय में उठाए गए हैं जब दोनों पड़ोसी परमाणु ताकतों के बीच तनाव चल रहा हैऔर भारत सैन्य आधुनिकीकरण की ऐसी रणनीति पर काम कर रहा है जिसमें ड्रोन, लॉन्ग-एंड्यूरेंस सिस्टम और दूसरे ऑटोनोमस प्लेटफॉर्म के ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है.

अरुणाचल प्रदेश में चीन के इरादों पर भारत चौकस

ड्रोन के पुर्जों को लेकर नई नीति सर्विलांस ड्रोनों के आयात पर 2020 के बाद से चरणबद्ध तरीके से लगाए गए प्रतिबंधों की राह पर ही चल रही है. इस नीति को सैन्य टेंडरों के जरिये लागू किया जा रहा है.

फरवरी और मार्च में दो बैठकों में भारतीय सैन्य अधिकारियों ने संभावित बोली लगाने वालों से कहा कि "भारत से जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से" उपकरण या पुर्जे "सुरक्षा कारणों से स्वीकार्य नहीं होंगे." यह जानकारी इन बैठकों के मिनट्स में दी गई थी. मिनट्स में सैन्य अधिकारियों का नाम नहीं लिया गया.

एक टेंडर डॉक्यूमेंट के मुताबिक इस तरह के पुर्जों में "सुरक्षा कमियां" होती हैं जो क्रिटिकल सैन्य डाटा को खतरे में डालती हैं. टेंडर में विक्रेता को पुर्जों के मूल देशों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया है. एक वरिष्ठ रक्ष अधिकारी ने बताया कि "पड़ोसी देश" का मतलब चीन है.

अधिकारी ने यह भी कहा कि साइबर हमलों के खतरे के बावजूद भारतीय उद्योग चीन पर निर्भरहो गया था. चीन ने साइबर हमलों में शामिल होने से इनकार किया है. चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने भारत के इन कदमों को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

कांधार में तैनात अमेरिकी एमक्यू 9 ड्रोन (फाइल)
भारत ने अमेरिका से 30 एमक्यू9 ड्रोन खरीदन की घोषणा की हैतस्वीर: Efren Lopez/U.S. Air Force photo/REUTERS

इसी मंत्रालय ने पिछले हफ्ते ही कुछ ड्रोनों और ड्रोन से संबंधित उपकारों के निर्यात पर प्रतिबंधों की घोषणा की थी. 2019 में अमेरिका की संसद ने भी सरकार को चीन में बने ड्रोन और पुर्जे खरीदने से प्रतिबंधित कर दिया था.

उत्पादन में समस्या

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभावित खतरों से निबटने के लिए देश को खुद ड्रोन विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया है. सरकार ने सैन्य आधुनिकीकरण के लिए 2023-24 में 1,600 अरब रुपये आवंटित किये हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत राशि स्थानीय उद्योग के लिए है.

हालांकि जानकारों का कहना है कि चीनी पुर्जों पर प्रतिबंध से देश के अंदर ड्रोन बनाने का खर्च बढ़ गया है. ड्रोन बनाने वालों को ये पुर्जे कहीं और से मंगवाने की जरूरत पड़ रही है.

भारतीय सेना को छोटे ड्रोन सप्लाई करने वाली बेंगलुरु की न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज के संस्थापक समीर जोशी ने बताया कि सप्लाई चेन का 70 प्रतिशत सामान चीन में ही बनता है. उनका कहना है, "मान लीजिये मैं पोलैंड के किसी सप्लायर से बात करता हूं तो उसके पास भी जो पुर्जे हैं वो चीन से ही आ रहे हैं."

जोशी ने बताया कि गैर चीनी पुर्जे जुटाने के चक्कर में दाम नाटकीय ढंग से बढ़ गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ उत्पादक तो अभी भी चीन से ही सामग्री आयात कर रहे हैं, बस सामान को "वाइट लेबल कर के दाम कम रख रहे हैं."

तकनीकी कमजोरी

भारत में कुछ किस्म के ड्रोन बनाने की जानकारी की कमी है और इसलिए देश पुर्जों और पूरे के पूरे सिस्टम के लिए विदेशी निर्माताओं पर निर्भर है.

सरकारी संस्थान एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (एडीई) के निदेशक वाई दिलीप ने बताया कि देश के अंदर मीडियम ऑल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस ड्रोन बनाने का एक सरकार द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम चल रहा है लेकिन यह कम से कम पांच साल देरी से चल रहा है.

दिलीप ने बताया कि तपस नाम के इस प्लेटफार्म ने अधिकांश जरूरतें पूरी कर दी हैं लेकिन सेना के लक्ष्य पर खरा उतरने के लिए अभी इस पर और काम किया जाना बाकी है. सेना का लक्ष्य एक ऐसे ड्रोन का है जो 30,000 फीट की ऑपरेशनल ऊंचाई पर पहुंच सके और 24 घंटों तक हवा में रह सके.

उन्होंने यह भी कहा, "मुख्य रूप से हम इंजनों की वजह से विवश थे." क्योंकि ना तो देश के अंदर बनने वाले और ना भारत को उपलब्ध अंतरराष्ट्रीय मॉडल जरूरत के अनुकूल थे. तपस के सैन्य ट्रायल इस महीने शुरू हो सकते हैं.

तपस के अलावा एडीई एक स्टेल्थ अनमैन्ड प्लेटफार्म और एक हाई ऑल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस प्लेटफार्म पर भी काम कर रही है लेकिन दोनों पर काम पूरा होने में अभी कई साल लग जाएंगे. इस स्थिति को देखते हुए भारत ने जून में घोषणा की कि वो तीन अरब डॉलर के दाम पर अमेरिका से 31 एमक्यू-9 ड्रोन खरीदेगा.

सीके/एए (रायटर्स)