1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कोयला आयात में कटौती की तरफ बढ़ा भारत

३ अगस्त २०२२

कोयले की कमी से जूझने के लिए स्थानीय कोयले में 10 प्रतिशत आयातित कोयला मिलाने के निर्देश को वापस ले लिया गया है. इसे देश में कोयले की उपलब्धता में आई बेहतरी का संकेत माना जा रहा है.

https://p.dw.com/p/4F2kq
Indien | Pragati Power Station
तस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

भारत ने बिजली उत्पादन करने वाले उपक्रमों के लिए कोयला आयात करने के लक्ष्यों को वापस ले लिया है. यह जानकारी विद्युत मंत्रालय के एक नोटिस में सामने आई. रॉयटर्स ने यह नोटिस देखा है.

नए नोटिस के तहत राज्य सरकारों और निजी बिजली कंपनियों को कोयला आयात करने की मात्रा खुद तय कर लेने की छूट दे दी गई है. नोटिस में मंत्रालय ने कहा है, "तय किया गया है कि अब से राज्य/स्वतंत्र बिजली निर्माता और कोयला मंत्रालय स्थानीय कोयले की आपूर्ति का मूल्यांकन कर मिश्रण का प्रतिशत तय कर सकते हैं."

(पढ़ें: जर्मनी में गैस संकट से निपटने के लिए परमाणु ऊर्जा जारी रखने की मांग)

बिजली
भारत में बिजली की सालाना मांग 38 सालों में सबसे तेज गति से बढ़ रही हैतस्वीर: Sri Loganathan/ZUMAPRESS/picture alliance

केंद्रीय बिजली कंपनी एनटीपीसी और डीवीसी को एक अलग नोटिस भेज कर उन्हें मिश्रण के प्रतिशत को गिरा कर पांच प्रतिशत पर लाने का निर्देश दिया गया है.

कोयला संकट टला

नोटिस में यह भी कहा गया है, "अगर भंडार कम होने लगता है तो मिश्रण के प्रतिशत को फिर से समीक्षा की जा सकती है." दोनों कंपनियों को नए आर्डर ना देने के लिए और पहले से पड़े हुए आयातित कोयले का इस्तेमाल करने के लिए भी कहा गया है.

मई में उपक्रमों को कहा गया था कि वो कोयले की अपनी कुल जरूरत में से 10 प्रतिशत आयात से पूरा करें. राज्य सरकारों की कंपनियों को तो यहां तक कह दिया गया था कि वो अगर वो अपनी जरूरतों के लिए 10 प्रतिशत आयातित कोयले का इस्तेमाल नहीं करेंगी तो उनकी ईंधन सप्लाई काट दी जाएगी.

(पढ़ें: जलवायु लक्ष्यों पर भारी पड़ता रोटी, तेल का संकट)

क्या चाहते हैं कोयला खदानों के पास रहने वाले

ऐसा अक्टूबर 2021 और अप्रैल 2022 में आए बिजली संकट के बाद किया गया था. इसके पहले कोयले के आयात को निरंतर कम करने की नीति लागू थी लेकिन इन संकटों की वजह से नीति को पलट दिया गया था.

कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि देश में अब कोयले की पर्याप्त उपलब्धता है लेकिन अगर आयातित कोयले के मिश्रण का फैसला नहीं लिया गया होता तो कोयले का संकट बना रहता.

(पढ़ें: कोयले के ढेर पर बैठ कर बिजली को तरसता झारखंड)

भारत में बिजली की सालाना मांग 38 सालों में सबसे तेज गति से बढ़ रही है. दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दाम लगभग रिकॉर्ड स्तर पर हैं. इस साल एक भीषण हीटवेव की वजह से एयर कंडीशनर की मांग भी बढ़ी है. इसके अलावा कोविड के प्रतिबंधों के हटने के बाद आर्थिक गतिविधि भी बढ़ी है जिससे बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची है.

सीके/एए (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी