नौसेना में वापस आया आईएनएस विक्रांत
२ सितम्बर २०२२आईएनएस विक्रांत को केरल के कोच्चि में नौसेना में कमीशन किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे नौसेना के सुपुर्द किया. यह भारत में ही डिजाइन किया गया और बनाया गया पहला विमानवाहक जंगी जहाज है.
नौसेना में इसके शामिल होने के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जो खुद अपना विमानवाहक जंगी जहाज डिजाइन कर सकते हैं और बना सकते हैं. अभी तक यह क्षमता सिर्फ अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के पास थी.
इसे आईएनएस विक्रांत का पुनर्जन्म भी कहा जा रहा है क्योंकि इस नाम का जहाज दशकों पहले भारतीय नौसेना को अपनी सेवाएं दे चुका है. उसका मूल नाम एचएमएस हरक्यूलीज था और उसे ब्रिटेन में बनाया गया था. भारत ने उसे ब्रिटेन से 1957 में खरीदा था और फिर उसे आईएनएस विक्रांत नाम दे कर 1961 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था.
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में वह जहाज भारतीय नौसेना के बहुत काम आया. उसने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के नेवल ब्लॉकेड का नेतृत्व किया था. 36 सालों तक नौसेना को सेवाएं देने के बाद उसे 1997 में सेवानिवृत्त कर दिया गया था.
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एक 'चलता फिरता शहर'
90 के दशक में पहली बार भारत सरकार ने देश के अंदर अपने विमानवाहक युद्धपोत को बनाने के कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाई और तब फैसला लिया गया कि इस कार्यक्रम के तहत बनने वाला पहला जहाज आईएनएस विक्रांत के प्रति एक श्रद्धांजलि होगा.
लेकिन आज के विक्रांत और पुराने विक्रांत में बहुत फर्क है. पुराना विक्रांत करीब 210 मीटर लंबा था जबकि नया विक्रांत 260 मीटर से भी ज्यादा लंबा है. पूरी तरह लोड कर दिए जाने पर नए विक्रांत का वजन करीब 45,000 टन है, जबकि पुराने विक्रांत का वजन इससे आधा ही था.
इसे बनाने में 17 साल लगे और करीब 20,000 करोड़ रुपयों की लागत आई. इस पर एक बार में करीब 1700 लोग और तरह तरह के लड़ाकू विमान और हेलीकाप्टर समेत कम से कम 30 जहाज रखे जा सकते हैं. यह इतना विशाल है कि इसे एक 'चलता फिरता शहर' भी कहा जा रहा है.
इसका डेक 18 मालों का है, यानी दूर से यह एक 18 मंजिलों की इमारत के जैसा नजर आता है. इसके अंदर ही 16 बिस्तरों का एक अस्पताल भी बनाया गया है. मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि पूरी तरह से ईंधन भरे जाने के बाद यह 45 दिनों तक समुद्र में रह सकता है.
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यह भारतीय नौसेना का दूसरा विमानवाहक जंगी जहाज है. रूसी मूल का आईएनएस विक्रमादित्य पहले से नौसेना को अपनी सेवाएं दे रहा है. अब नौसेना भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर एक साथ एक एक युद्धपोत तैनात कर सकती है.
अधूरी सफलता?
हालांकि विषेधज्ञों का मानना है कि इस मामले में भारतीय नौसेना अभी भी चीन से पीछे है. डिफेन्स इंटेलिजेंस कंपनी जेन्स के लिए काम करने वाले समीक्षक प्रथमेश कर्ले के मुताबिक चीन के पास कुल 355 जहाज हैं, जबकि भारत के पास सिर्फ 44.
कर्ले के मुताबिक चीन के पास तीन विमानवाहक जहाज, 48 डिस्ट्रॉयर, 43 फ्रिगेट और 61 कोर्वेट हैं, जबकि भारत के पास सिर्फ 10 डिस्ट्रॉयर, 12 फ्रिगेट और 20 कोर्वेट हैं. विक्रांत के भी नौसेना में भर्ती किए जाने के बावजूद भी उसमें कमियां रहेंगी.
विक्रांत के पास खुद के लड़ाकू विमान नहीं होंगे और विक्रमादित्य से लिए विमानों को उस पर तैनात किया जाएगा. विक्रांत के लिए करीब 24 विमान खरीदे जाने हैं लेकिन कॉन्ट्रैक्ट अभी तक दिया नहीं गया है.
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भारत के पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "उम्मीद है कि यह पूरी तरह से सफल होगा...हमारी अनूठे रूप से असंबद्ध निर्णय लेने की प्रक्रिया की वजह से विमान का चयन जहाज की परियोजना से अलग हो गया और उस पर अभी तक फैसला नहीं हुआ."
कर्ले का कहना है कि इसके अलावा नौसेना द्वारा प्रकाशित की गई तस्वीरों के आधार पर ऐसा लगता है कि विक्रांत के पास नेवल राडार सिस्टम भी नहीं है, जिसका मतलब है विमानों के साथ विक्रांत की तैनाती में अभी वक्त है. (रॉयटर्स से जानकारी के साथ)