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मौत की सजा के पक्ष में झुकना नहीं चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

चारु कार्तिकेय
१० फ़रवरी २०२२

सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जुर्म कितना भी खौफनाक क्यों ना हो, दोषी की मौत की सजा को कम किए जाने के कारणों पर जजों को विचार करना चाहिए.

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भारतीय सुप्रीम कोर्ट
भारतीय सुप्रीम कोर्टतस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhoto/picture alliance

अदालत का यह फैसला सात साल की एक बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में आया. पप्पू नाम के इस व्यक्ति को 2015 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सात साल की एक बच्ची का बलात्कार और हत्या करने का दोषी पाया गया था. उस वक्त पप्पू की उम्र 33-34 साल थी. पहले निचली अदालत ने उसे अपराधी माना और सजा-ए-मौत सुनाई. फिर अक्टूबर 2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों अदालतों से अलग रुख अपनाया है. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने पप्पू का बलात्कार और हत्या के लिए दोषी साबित होना तो सही ठहराया लेकिन यह भी कहा उसकी मौत की सजा को कम जिए जाने के कई कारण है जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

(पढ़ें: चीन में उइगुर मुसलमान को मौत की सजा, वजह माओ के दौर से जुड़ी है)

मानव जीवन का संरक्षण

98 पन्नों के इस फैसले को लिखने वाले न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि मौत की सजा अपराधियों को डराने का और कई मामलों में कड़ी कार्रवाई की समाज की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में जरूर काम करती है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. उन्होंने कहा कि सजा देने के सिद्धांतों का अब और विस्तार हो गया है और अब मानव जीवन के संरक्षण के सिद्धांत को भी अहमियत दी जाती है.

फांसी का फंदा
भारत में अभी अभी अक्सर जघन्य अपराधों के लिए मौत की सजा की मांग उठती हैतस्वीर: Nerijus Liobe/Zoonar/picture alliance

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि मानव जीवन का संरक्षण भी समाज का एक दायित्व है और अदालत के सामने भी आज मौत की सजा के विकल्प मौजूद हैं. जघन्य अपराध के दोषियों को मौत की सजा की जगह बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा भी दी जा सकती है.

उन्होंने बताया कि इस मामले में भी दोषी की मौत की सजा को कम करने के लिए प्रेरित करने वाले कई कारण हैं जो अदालतें देख नहीं सकीं. सुप्रीम कोर्ट ने गिनाया कि पप्पू ने इसके पहले कोई अपराध नहीं किया, वो अभी भी एक कठोर हो चुका अपराधी नहीं बना है, जेल में उसका व्यवहार बेदाग रहा है, उसकी एक पत्नी है, बच्चे हैं और बूढ़े पिता भी हैं.

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भारत में मौत की सजा

अदालत ने कहा कि इन सभी कारणों की वजह से दोषी के सुधार की उम्मीद बरकरार है और इसलिए उसकी मौत की सजा को माफ कर दिया जाना चाहिए. अदालत ने पप्पू की मौत की सजा को रद्द करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और कहा कि यह सजा 30 साल कारावास की होगी. इसके अलावा इन 30 सालों में भी उसे समय से पहले ना तो जेल से रिहा किया जाएगा न कोई छूट दी जाएगी.

अमेरिका में प्रदर्शन
लंबे समय से दुनिया भर में मौत की सजा को खत्म करने की मांग उठ रही हैतस्वीर: Brendan Smialowski /AFP/Getty Images

इस फैसले को मौत की सजा के संबंध में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है. दुनिया के कम से कम 100 देशों ने इसे अपनी न्यायिक व्यवस्था से पूरी तरह से हटा दिया है. करीब 50 देशों में अभी भी यह सजा मौजूद है. इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, सऊदी अरब और जापान जैसे देश शामिल हैं.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय भारत में 350 से ज्यादा ऐसे अपराधी हैं जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई है. मार्च 2020 में सामूहिक बालात्कार और हत्या के दोषी पाए गए चार लोगों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी.

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