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समाजभारत

दिल्ली की ठंड में बेघरों के लिए जिंदा रहना ही चुनौती

चारु कार्तिकेय
२ जनवरी २०२३

दिल्ली पुलिस को हर साल शहर के अलग अलग इलाकों में ठंड से अपनी जान गंवा चुके लोगों की लाशें मिलती हैं. अकेले दिल्ली ही नहीं बल्कि लगभग सभी बड़े शहरों में लाखों बेघर लोग सिर छुपाने की जगह ढूंढने को मजबूर हैं.

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दिल्ली में बेघर लोग
दिल्ली में खाना लेने की कतार में लगे बेघर लोगतस्वीर: DW

बीजेपी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली में सिर्फ दिसंबर 2022 में ठंड से 162 लोगों की मौत हो गई. दिल्ली बीजेपी के महासचिव हर्ष मल्होत्रा ने पत्रकारों को बताया कि दिल्ली पुलिस और एक एनजीओ के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 की सर्दियों में 779, 2019-20 की सर्दियों में 749, 2020-21 की सर्दियों में 436 और 2021-22 की सर्दियों में 545 बेघर लोगों की मौत हो गई.

दिल्ली पुलिस ने इन आंकड़ों के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है. मल्होत्रा ने भी उस एनजीओ का नाम नहीं बताया जिसके आंकड़ों का उन्होंने हवाला दिया. लेकिन यह सच है कि दिल्ली में लाखों बेघर लोग रहते हैं और उनमें से कई लोगों की सर्दियों के दौरान ठंड से मौत भी हो जाती है.

देश में 17 लाख बेघर

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ही दिनों पहले दिल्ली के अलग अलग इलाकों में कम से कम पांच लाशें सड़क के किनारे जा फुटपाथ पर मिलीं. इन पांचों लाशों पर ना किसी चोट के निशान थे और ना किसी तरह के हमले के.

मलबे के बीच बैठकर पढ़ते बच्चे

हर साल सर्दियों में पुलिस को ऐसी कई लाशें शहर के अलग अलग हिस्सों में मिलती हैं. ये अक्सर उन बेघर लोगों की लाशें होती हैं जिनके पास शहर में सिर छुपाने की कोई जगह नहीं होती और इन हालात में इनके लिए ठंड से बचना नामुमकिन हो जाता है.

2011 की जनगणना के मुताबिक उस समय देश में 17 लाख से ज्यादा बेघर लोग थे, लेकिन समाज सेवी संगठनों का मानना है कि बेघर लोगों की असली संख्या सरकारी आंकड़ों में नहीं मिल पाती है. अनुमान है कि अकेले दिल्ली में 1.5 लाख से दो लाख बेघर लोग रहते हैं.

रैन बसेरों से नहीं चल रहा काम

इनमें से अधिकांश रोजगार की तलाश में दिल्ली आए लेकिन यहां रोजगार ना मिलने के बाद इन्हें सिर छुपाने के लिए कोई जगह भी नसीब नहीं हुई. दिल्ली सरकार का अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड इन लोगों के लिए 'रैन बसेरा' नाम के अस्थायी आश्रय चलाता है, जहां बेघर लोग निशुल्क रात बिता सकते हैं.

तालाबंदी में फंसे मजदूरों की जंग

लेकिन राजधानी में इस समय सिर्फ 195 रैन बसेरें हैं जिनमें अधिकतम 17,000 लोग रात बिता सकते हैं. लिहाजा सभी बेघर इन रैन बसेरों तक पहुंच नहीं पाते और दिसंबर से जनवरी के बीच जब ठंड ज्यादा बढ़ जाती है तब इनके लिए ठंड में बाहर खुले में जिंदा रह पाना ही एक चुनौती बन जाती है.

दिल्ली के उप-राज्यपाल वी के सक्सेना ने हाल ही रैन बसेरों का निरीक्षण करने के बाद उनमें कई कमियां पाईं. कहीं रैन बसेरा के बाहर ही लोग फुटपाथ पर सोते हुए मिले तो कहीं रैन बसेरा में शौचालय की व्यवस्था ना होने के कारण खुले में ही शौच करते पाए गए. रैन बसेरों में इन हालात को देखते हुए सक्सेना ने शेल्टर बोर्ड के सीसीओ का ट्रांसफर कर दिया.

बेघर लोगों की समस्या अकेले दिल्ली की नहीं, बल्कि लगभग सभी बड़े शहरों की है. अनुमान है कि मुंबई में करीब दो लाख, कोलकाता में करीब 1.5 लाख और चेन्नई में करीब 50,000 बेघर लोग रहते हैं.