1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

धरती को निर्जन उजाड़ बनने से कैसे रोका जाए

टिम शाउएनबेर्ग
१९ फ़रवरी २०२२

पूरी दुनिया में तेजी से रेगिस्तान फैलते जा रहे हैं. मिट्टीअपनी उर्वरता गंवाती जा रही हैं. निर्जन रेतीले उजाड़ रेगिस्तान में जीवन कैसे वापस लाया जा सकता है. यहां पेश हैं चार तरीके.

https://p.dw.com/p/47HPx
चीन के एक गांव पर घुमड़ता रेतीला तूफान
चीन के एक गांव पर घुमड़ता रेतीला तूफानतस्वीर: AFP

मंगोलिया और चीन के पश्चिमोत्तर तक फैला इलाका, दुनिया में सबसे तेज गति से रेगिस्तान में तब्दील हो रहा है. आकार मे ये 12 लाख वर्ग किलोमीटर हो चुका है. गोबी रेगिस्तान इसमें हर साल करीब 6,000 वर्ग किलोमीटर का इजाफा कर देता है.

फैलता हुआ ये रेगिस्तान घास के मैदानों को चपट कर जाता है, गांव के गांव निगल जाता है और बड़े पैमाने पर उर्वर भूमि को एक निर्जन उजाड़ में बदल देता है. दसियों हजार लोग विस्थापित होने को विवश होते हैं और कुछ एक हजार ही उन्हीं उजाड़ों मे रहने को अभिशप्त.

मरुस्थलीकरण वो प्रक्रिया है जिसके तहत उर्वर मिट्टी रेगिस्तान में बदल जाती है. यूं तो इसके पीछे कई कुदरती वजहें भी हैं लेकिन इसके द्रुत विस्तार में इंसानों की भूमिका भी निर्णायक रही है.

दुनिया में मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट की चार प्रमुख वजहे हैं- औद्योगिक कृषि में पानी का अत्यधिक इस्तेमाल, गंभीर सूखे की बढ़ती मियाद, निर्वनीकरण और मवेशियों के लिए चरागाहों का जरूरत से ज्यादा दोहन.

पहले उर्वर और हरे-भरे रह चुके लैंडस्केप रूखे-सूखे, रेतीले इलाकों में तब्दील होकर दुनिया भर में करीब एक अरब लोगों की जिंदगियों पर खतरा बने हुए हैं. लाखों प्रजातियों का जीवन भी उनकी वजह से संकट में है. आकलनों के मुताबिक इस सदी के मध्य तक धरती की एक चौथाई मिट्टी मरुस्थलीकरण से प्रभावित होगी.

ये एक चिंताजनक और गंभीर पहलू है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि इन हालात को फिर से ठीक किया जा सकता है.

 

रेगिस्तान में घनघोर बारिशों की आमद

एक स्वागतयोग्य समाधान मक्का के नजदीक मिला है. ये है अल बायदा प्रोजेक्ट. वहां रेगिस्तानी खेती के जानकारों ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिसके जरिए रूखी उजाड़ मिट्टी में मूसलाधार बारिश की मदद से दोबारा जान फूंकी जा सकती है.  

सउदी अरब में जब बारिश होती है, तो कम समय में बड़ी मात्रा में पानी गिरता है. अप्रैल 2021 में भी ऐसा हुआ था जब शहर के शहर कुछ समय के लिए जलमग्न हो गए थे. इतना सारा पानी एक साथ गिरे तो उसे थामना मिट्टी के लिए मुश्किल हो जाता है.

अल बायदा प्रोजेक्ट के पूर्व निदेशक और पुनरुत्पादक कृषि के जानकार नाइल स्पेकमैन कहते हैं, "हमने सोचा कि अगर हम उस पानी को जमीन तक ले आते हैं तो वो पानी का एक टिकाऊ स्रोत बन सकता है, फिर चाहे 20 महीने बारिश न हो, कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”

विशाल गोबी रेगिस्तान को रोकने की चुनौती

इलाके में रहने वाले ग्रामीणों के साथ कृषि विशेषज्ञों ने पश्चिमी सउदी अरब की घाटी की सीमा बनाने वाली चट्टानी दीवारों के साथ साथ बांध और टैरेस बनाए. साथ ही किलोमीटर लंबी खाइयां भी तैयार की गई. अब बारिश होने पर पानी जमा होता जाता है और जरूरत वाले इलाकों को रवाना कर दिया जाता है. जहां पानी धीरे धीरे जमीन के अंदर दाखिल होता रहता है. सिंचाई का ये तरीका पूरी दुनिया में कारगर रहा है और सदियों पहले दक्षिण अमेरिका में इन्का आदिवासी भी इसका इस्तेमाल करते थे.

सउदी अरब में इस प्राकृतिक चक्र को चालू करने के लिए जानकारों ने शुरुआत में कृत्रिम सिंचाई का इस्तेमाल किया था. लेकिन अहम बात ये थी कि पानी निकाला कम गया, मिट्टी में छोड़ा ज्यादा गया. जहां पहले सिर्फ रेत और पत्थर थे वहां देसी पेड़-पौधे उग आए और घास फिर से पनप गई. वे सिंचाई के बगैर भी 30 महीने लंबा सूखा भी झेल गए.

इनका सभ्यता के लोग भी सीढ़ीदार खेतों के सहारे सिंचाई की
इनका सभ्यता के लोग भी सीढ़ीदार खेतों के सहारे सिंचाई कीतस्वीर: Julian Peters/Zoonar/picture alliance

अक्षय ऊर्जा कैसे लाती है बारिश

सउदी अरब के पास उत्तर अफ्रीकी देश भी, मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण कर रहे हैं. 90 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के दायरे में फैला सहारा- धरती का सबसे विशाल रेगिस्तान है. गोबी रेगिस्तान की तरह वो भी फैलता ही जा रहा है, कुछ इलाकों में तो हर साल करीब 50 किलोमीटर. सहारा के आसपास के इलाके शुष्क हैं लेकिन जीवित हैं. हालांकि ऐसी स्थिति ज्यादा नहीं खिचेंगी क्योंकि उर्वर मिट्टी की जो तबाही इंसानो के हाथों हो रही है उसके चलते वे इलाके दुनिया में किसी दूसरी जगह से ज्यादा तेजी से मरुस्थलीकरण की जद में हैं. रही-सही कसर गरीबी, पानी की कमी और जमीन पर मालिकाने के विवादों, टकरावों ने पूरी कर दी है. जिससे पर्यावरणीय नुकसान तेजी से होता जा रहा है.

ऐसी सूरत में काम आते हैं सौर पैनल और पवनचक्कियां. रेगिस्तान विस्तार को रोकने के ये एक सशक्त उपाय हैं. कैसे?

क्योंकि ये बारिश लाने में मदद करते हैं. ये प्रक्रिया कुछ यूं काम करती हैः सौर पैनलों की काली सतह हवा को गरम करती है, वो वायुमंडल में और ऊपर पहुंच जाती है. उसी तरह हजारों पवनचक्कियों के डैने घूमते हैं और हवा को ऊपर की ओर धक्का देते हैं. मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में भौतिकविद् और इस विषय पर एक अध्ययन की सह-लेखिका सफा मोटे कहती हैं कि, "जब हवा के ये पिंड ऊंचाइयों में पहुंच जाते हैं तो वे ठंडा होने लगते हैं...ठंडे होते हैं तो आर्द्रता भी सघन होकर बारिश के रूप में गिरने लगती है.”

बढ़ता रेगिस्तान, खतरे की घंटी

विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर सहारा रेगिस्तान का एक बटा पांचवा यानी 20 प्रतिशत हिस्सा, सौर पैनलों और पवन चक्कियों के लिए इस्तेमाल किया जाता तो उससे सहारा के दक्षिणी हिस्से में हर साल करीब पांच सेंटीमीटर ज्यादा बारिश होती. ये नाकाफी लग सकता है लेकिन इतनी बारिश से हरित क्षेत्र 20 फीसदी बढ़ जाता और खेती में जबरदस्त उछाल आ जाता. और क्या चाहिए था- लोग भी खुश और पर्यावरण भी महफूज.

सफा मोटे के मुताबिक उस आकार का एक सोलर और विंड फार्म हर साल उससे चार गुना ज्यादा बिजली उत्पादन कर सकता है जितना पूरी दुनिया में आज खपत है. उससे अफ्रीकी देशों को और टिकाऊ बन पाने में मदद मिल सकती है. इस प्रोजेक्ट को अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति का साथ मिला तो भौतिकविद सफा मोटे को पक्का यकीन है कि प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में खर्च होने वाली 20 खरब डॉलर की विशालकाय धनराशि की लागत भी निकल सकती है.

मरुस्थलीकरण से हरितीकरण की ओर

रेगिस्तान को फिर से हराभरा और उर्वर बनाने के दूसरा प्रकृति-आधारित तरीके का परीक्षण चीन में चल रहा है. सफलता भी मिल रही है.

चीन सरकार के वानिकी और घासभूमि प्रशासन के मुताबिक महज कुछ दशकों पहले तक देश में रेगिस्तान हर साल 10,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बढ़ रहे थे. आज वो हर साल 2,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के दायरे में सिकुड़ रहे हैं.

लेकिन कैसे?

1988 में लोगों ने एक नमक खदान के आवागमन मार्गों की हिफाजत के लिए, राजधानी बीजिंग के पश्चिमोत्तर में स्थित कुबुकी रेगिस्तान में पेड़ लगाने शुरू किए थे. पिछले कुछ दशकों में, ये दुनिया के सबसे कामयाब वनीकरण कार्यक्रमों में से एक बन चुका है. 

एक निर्धारित परिपाटी में पेड़ लगाने के बजाय, रेत के ढूहों में पेड़ों को रोपने के लिए पानी के खास फौवारे तैयार किए गए थे. ये फौवारे रेत में सूराख बनाते और साथ ही साथ पेड़ की कलमों को भी सींचते. मरुस्थलीकरण से लड़ाई के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के शीर्ष वैज्ञानिक बैरन जोसेफ ओर कहते हैं, "इससे रोपाई का काम दस मिनट से कम होकर 10 सेकंड ही रह गया. ये एक बड़ा ही कामयाब और महत्त्वपूर्ण तरीका है.”

कुबुकी में नवजात छोटे पौधों को तेज हवा से बचाने के लिए किसान, रेत के ढूहों पर पुआल के बंडल भी रख देते हैं.

खोदा पहाड़, निकला खजाना

नई घासभूमि किसानों के लिए पैदावार के नए इलाके और मवेशियों के लिए नयी चरागाह भी बन गई है. किसान यहां लिकरिस यानी मुलैठी और दूसरी जड़ी बूटियां उगाते हैं. ये पौधे शुष्क जलवायु में ठीक से पनप जाते हैं और पारंपरिक चीनी दवाओं में उनकी काफी मांग रहती है.

कुबुकी रेगिस्तान की हरियाली का 800 किलोमीटर दूर राजधानी बीजिंग पर भी सकारात्मक असर पड़ा है. वहां रेतीले तूफान से होने वाले वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट आई है.

तो क्या ये माना जाए कि सही प्रौद्योगिकी से मरुस्थलीकरण को रोका जा सकता है?

खराब हो चुकी जमीन, मिट्टी और वनस्पति को पुनर्जीवित करना संभव है और बाधित जलचक्रों को भी फिर से सामान्य किया जा सकता है. चाहे वो प्रकृति-प्रदत तरीकों से हो या फिर हाईटेक रणनीतियों के दम पर.

लेकिन दुनिया के मरुस्थलीकृत इलाकों को वापस उर्वर और हरित बनाने के इन तरीकों में बड़ी लागत और कड़ी मेहनत लगती है. जानकार कहते हैं कि उर्वर मिट्टी को सूखने से बचाने और रेगिस्तानों को फैलने से रोकने का ही एक ही तरीका है- और वो है मिट्टी और पानी का अनवरत निर्मम दोहन बंद हो.