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पर्यावरण को जख्मी कर देते हैं परमाणु परीक्षण

एलिस्टर वाल्श
१४ अक्टूबर २०२२

विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले परमाणु परीक्षण उत्तर कोरिया में हो सकते हैं. धरती हार के कगार पर है. परमाणु परीक्षणों के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव दुनिया भर में महसूस किए जा रहे हैं और वे लाखों करोड़ों सालों तक बने रहेंगे.

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परमाणु परीक्षण धरती को छलनी कर देते हैं
प्रशांत क्षेत्र में परमाणु परीक्षण का नाजारा तस्वीर: CPA Media Co. Ltd/picture alliance

पिछले सितंबर से उत्तर कोरिया ने बैलिस्टिक मिसाइलों के खूब परीक्षण किये हैं. जानकारों का मानना है कि ये परीक्षण उस कार्यक्रम का हिस्सा हो सकते हैं जो कथित रूप से सामरिक परमाणु हथियार विकसित करने के लिए चलाया जा रहा है. विश्लेषकों की आशंकाओं के मुताबिक अगर उत्तर कोरिया मिसाइल टेस्ट करने से आगे जाकर असली परमाणु हथियारों का परीक्षण कर बैठे,  तो इससे ना सिर्फ राजनीतिक तनाव बढ़ेगा बल्कि पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा खड़ा होगा.

अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और ब्रिटेन जैसे देशों ने पहले खुले वायुमंडल में और सागर में, प्रशांत द्वीपों के आसपास, ऑस्ट्रेलियाई रेगिस्तान, अमेरिका और सोवियत संघ के सुदूर इलाकों में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था. इन परीक्षणों से इलाके दूषित हो गये थे और दूर दूर तर उनके रेडियोधर्मी बादल फैल गए थे.

वैश्विक संधियों की वजह से परमाणु परीक्षण 1963 के बाद ज्यादातर भूमिगत होन लगे. पर्यावरण के लिहाज से ये थोड़ी बेहतर स्थिति थी. 1996 में परीक्षणों पर रोक के बाद से सिर्फ भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ने ही परमाणु हथियारो का परीक्षण किया है.

21वीं सदी में परमाणु परीक्षण करने वाला उत्तर कोरिया, दुनिया का अकेला देश है.

परमाणु परीक्षणों से जख्मी होता पर्यावरण
भारत में परमाणु परीक्षण के बाद धरती में बना गड्ढातस्वीर: AFP/epa/picture alliance

स्तनधारियों पर परमाणु परीक्षण का असर

परमाणु परीक्षणों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय अभियान की पॉलिसी रिसर्च कॉर्डिनेटर एलीशिया सैंडर्स कहती हैं, "परमाणु हथियारों के परीक्षण की विरासत इंसानों के लिए और पर्यावरण के लिए कतई विनाशकारी रही है."

वो कहती हैं कि पर्यावरण के लिए इसके असाधारण नतीजों में से एक यह है कि, "वो अनिवार्य रूप से सदासर्वदा कायम रहता है."

परीक्षण के ठिकाने स्थापित करने के लिए होने वाले विकास को किनारे रखते हुए, विस्फोट होते ही माइक्रोसेकंड में शुरुआती प्रमुख प्रभाव महसूस होने लगते हैं.

सैन्य कार्रवाईयों के पर्यावरणीय असर पर 2015 के एक पर्चे के मुताबिक परमाणु विस्फोट स्थानीय जैव विविधता के लिए एक प्रचंड खतरा हैं. 

विस्फोट से होने वाले तापीय उत्सर्जन में निकलने वाली विशाल ऊर्जा- जिसमें प्रकाश और ऊष्मा शामिल हैं- अभिकेंद्र के नजदीक तमाम जीवों को खत्म कर देती है. बम की प्रहारक क्षमता के आधार पर कई किलोमीटर दूर जीवों पर घातक तापमान का असर पड़ता है. सब कुछ जल चुका होता है.

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जानवरों पर थर्मल शॉक के असर पर ठीक से अध्ययन नहीं हुआ है. कई किलोमीटर दूर भी इंसान गंभीर, जानलेवा जलन से जूझते हैं. दूसरे स्तनधारियों पर भी समान प्रभाव पड़ता होगा, ऐसा माना जाता है. वे भी विस्फोट के दबाव को झेलते हैं, फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है और रक्तस्राव होता है.

विस्फोट के बाद, जो जानवर फौरन नहीं मारे जाते वे अगले कुछ दिनों या सप्ताह में संक्रमणों से मारे जाते हैं. एक खास इलाके में एक के बाद एक जानवर मरने लगते हैं. 

पर्यावरण को जख्मी कर देते हैं परमाणु परीक्षण
नेवाडा में भूमिगत परमाणु परीक्षण ने जमीन का ये हाल कियातस्वीर: UPI/dpa/picture-alliance

पौधों, परिंदो और समुद्री जीवन पर असर

पौधे भी परमाणु विस्फोट के असर से अछूते नहीं रहते. पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं, शाखाएं फट जाती हैं और वनस्पति जड़ से उखड़ जाती है.

मछलियों पर गैर परमाणु विस्फोट जैसा असर होता है लेकिन ज्यादा बड़े पैमाने पर. 1960 के दशक के आखिर और 1970 के दशक के शुरू में अलास्का में अमेरिकी सरकार के परीक्षण और फ्रेंच पोलीनेसिया में फ्रांस के परीक्षण से बड़े पैमाने पर मछलियां मारी गई थीं, उनके ब्लैडर फट गए थे.

समुद्री स्तनधारियों और गोता लगाने वाली चिड़ियों ने भी यही झेला था. पोस्टमार्टम विश्लेषण से ये पता चला. उस दौरान किये गये रिसर्च से पता चला है कि समुद्री गैर-कशेरुकी जीवों यानी बिना हड्डियों वाले जीवों में दबाव की तरंगे झेलने की ज्यादा क्षमता होती है क्योंकि उनके पास गैस रखने वाले अंग नहीं थे. 

लंबी अवधि के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव

शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका ने प्रशांत क्षेत्र में दर्जनों परमाणु हथियारों का विस्फोट किया था. कुछ द्वीप तो  समूचे जल कर भस्म हो गए और कई तो आज भी निर्जन हैं. स्थानीय निवासियों को जबरन यह जगह छोड़कर जाना पड़ा था. 2019 के एक अध्ययन के मुताबिक कुछ प्रभावित इलाकों में चेर्नोबिल और फुकुशिमा की तुलना में 1000 गुना ज्यादा विकिरण स्तर पाया गया था. 

परमाणु परीक्षण की लंबी अवधि के पर्यावरणीय नुकसान में सतह की मिट्टी और भूजल का दूषण, खड्डों के रूप में या आधे टूटे पहाड़ों के रूप में भू बाधाएं- जैसा कि उत्तर कोरिया के परीक्षण स्थल में हुआ है- और समुद्र तल में रेडियोन्यूक्लाइड्स चले जाना शामिल है.  

वायुमंडलीय परमाणु टेस्ट रेडियोन्यूक्लाइड फैलाते हैं. ये वो अस्थिक कण हैं जो टूटने पर दूर दूर तक विकिरण छोड़ते हैं और इस तरह मिट्टी को नष्ट कर देते हैं.

 भूमिगत परीक्षणों में भी उच्च दबाव वाली स्थितियां वायुमंडल में रेडियोन्यूक्लाइड छोड़ सकती हैं.- इस परिघटना को वेंटिंग कहा जाता है- जहां वे हवा के जरिए यहां से वहां उड़ जाते हैं और परीक्षण स्लथों से कहीं दूर जमा होकर खाद्य ऋंखलाओं में प्रवेश करते हैं.

परमाणु परीक्षणों से जख्मी होता पर्यावरण
नेवाडा के परमाणु परीक्षण को देखने जमा हुए लोगतस्वीर: AP

परमाणु विशेषज्ञ अंकित पांडा कहते हैं कि उत्तर कोरिया ने इसीलिए वेंटिंग के खतरे से परहेज ही किया है.

वो कहते हैं, "उत्तर कोरिया असल में अपने आखिरी कम से कम पांच परमाणु परीक्षणों में रेडियोन्यूक्लाइड की वेंटिंग को रोकने में  सफल रहे हैं. क्योंकि इनमे से कुछ रेडियोन्यूक्लाइडों में वे संकेत हो सकते हैं कि परमाणु उपकरण में कौनसी विशिष्ट सामग्री इस्तेमाल की जा रही है."

भूमिगत परीक्षणों में रेडियोएक्टिव सामग्री की बड़ी मात्रा जमा हो जाती है जो लाखों करोड़ों साल तक वहां पड़ी रहेगी. इसका लंबी अवधि का पारिस्थितिकीय नुकसान अज्ञात है.

पेयजल पर असर 

भूमिगत टेस्टिंग से रेडियोन्यूक्लाइड के पानी में रिस जाने के खतरा भी पैदा होता है. लास वेगस के नजदीक अमेरिकी परमाणु परीक्षण स्थल से जुड़े अध्ययनों में पाया गया कि भूजल परमाणु परीक्षणों से निकलने वाले कुछ दूषक तत्व आसपास के पानी में मिल जाते हैं. पौधे और जानवर, पानी में आसानी से फैल जाने वाले रेडियोएक्टिव स्ट्रोनटियम और कैसियम ले लेते हैं.

इनकी आधी उम्र 30 साल है और तब तक ये दो रेडियोन्यूक्लाइड खाद्य ऋंखला में दशकों तक के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं. न्यू मेक्सिकों मे मिलने वाली आम झाड़ी, चामीस की जड़ें जमीन में गहरी धंसी होती हैं. न्यू मेक्सिकों में लॉस अलामोस टेस्टिंग साइड के पास चामीस की जड़ें, स्ट्रोनटियम को वापस सतह पर ले आती हैं. वहां से वो पत्तों के गिरने, सड़ने और मिट्टी में मिलने के साथ चौतरफा फैल सकता है.

आईसीएएन की सैंडर्स कहती हैं, "जानवर दूषित भूमि का चारा खायेंगें और ये बहुत खतरनाक बात होगी. क्योंकि वे जानवर लोगों का भोजन हो सकते हैं."

आईसीएएन जैसे संगठन परमाणु हथियारों के संपूर्ण खात्मे की बात कर रहे हैं.

जब तक ये नहीं होता, एक कारक जो परमाणु टेस्टिंग की भयानक विरासत को साफ कर सकता है वो 2017 की परमाणु हथियार निषेध संधि का एक प्रावधान है. इसके तहत संधि में शामिल देशों को परमाणु हथियारों के पीड़ितों को मदद मुहैया करानी होगी, और दूषित पर्यावरणों को सुधारना होगा. देशों को अगले साल से पर्यावरणीय नुकसान के शुरुआती आकलन जुटाने होंगे और उन्हें भविष्य की सुधार कोशिशों की आधारभूमि के रूप में उपयोग करना होगा.