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बर्लिन में क्यों बनाए जा रहे हैं बड़े-बड़े कुएं

आने सोफी ब्रैंडलीन
९ अगस्त २०२४

जर्मनी की राजधानी बर्लिन भी बढ़ते तापमान और सूखे की समस्या से जूझ रही है. इसलिए, यहां के स्थानीय प्रशासन ने शहर को स्पंज सिटी में बदलकर बारिश के पानी को जमा करने का उपाय निकाला है.

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बर्लिन में बने विशालकाय कुएं में काम करते कर्मचारी और क्रेन
जर्मनी की राजधानी में बेकार और बारिश के पानी को जमा करने के लिए बड़े बड़े कुएं बन रहे हैंतस्वीर: Sven Bock/Berliner Wasserbetriebe

जर्मनी की राजधानी बर्लिन एक सूखे इलाके में स्थित है. हर साल गर्मियों में यहां पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. यही कारण है कि अब यह शहर बारिश के पानी को स्पंज की तरह सोखने और जमा करने के उपाय अपना रहा है. बाद में जरूरत पड़ने पर इकट्ठा किए गए इस पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

पानी की समस्या हल करने के लिए, सबसे पहले कई बड़े भूमिगत ओवरफ्लो बेसिन बनाए गए. ये बेसिन वेस्ट वाटर की पार्किंग की तरह काम करते हैं. जब बारिश होती है, तो आसपास के क्षेत्र से पानी बेसिन में जमा हो जाता है और फिर इसे एक ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाया जाता है. वहां से इसे साफ करके नदियों में छोड़ दिया जाता है.

भूमिगत जल भंडार का निर्माण

बर्लिन में जल जमा करने वाले नौ परिसर तैयार किए जा चुके हैं. इनमें से एक माउरपार्क के नीचे है. यह पार्क प्रेंजलाऊर बर्ग जिले में घूमने की एक लोकप्रिय जगह है जहां कभी बर्लिन की दीवार के कुछ हिस्से मौजूद थे.

सबसे बड़ा बेसिन अभी बन रहा है. इसका आकार माउरपार्क के बेसिन से दोगुने से भी ज्यादा होगा. जमीन में 30 मीटर की गहराई वाला यह गोलाकार कंक्रीट बेसिन 2026 तक बनकर तैयार हो जाएगा. इसमें करीब 17,000 क्यूबिक मीटर पानी इकट्ठा किया जा सकेगा. यह ओलंपिक के सात स्विमिंग पूल के बराबर है.

जब बहुत तेज बारिश होती है और बर्लिन की सीवेज सिस्टम पर दबाव पड़ता है, तो अतिरिक्त पानी को इन बेसिन में जमा किया जाता है. 

प्रेंत्सलाउर बर्ग में बर्लिनर माउअरपार्क के नीचे की पाइपलाइन
बर्लिन में बारिश के पानी को जमा करने के लिए बड़े स्तर पर उपाय किए जा रहे हैंतस्वीर: Pedro Becerra/STAGEVIEW

बर्लिन के जल विभाग बीडब्ल्यूबी की प्रवक्ता आस्ट्रिड हैकेनेश-रुंप बताती हैं कि इससे भारी बारिश के दौरान मल और गंदे पानी को स्प्री नदी में बहने से रोका जा सकेगा. दरअसल, बीडब्ल्यूबी पूरे शहर में पेयजल की आपूर्ति करती है. साथ ही, शहर में गंदे पानी को साफ करने और जल प्रबंधन की जिम्मेदारी भी इसी विभाग की है.

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हैकेनेश-रुंप कहती हैं, "इस कार्यक्रम को इसलिए शुरू किया गया, ताकि बारिश के पानी का संरक्षण किया जा सके, सूखे की समस्या से निजात पाई जा सके, सीवेज सिस्टम पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके और सीवर ओवरफ्लो को रोका जा सके."

यह ओवरफ्लो संयुक्त सीवेज सिस्टम में होता है, जहां बारिश का पानी और घरेलू सीवेज एक ही पाइप में इकट्ठा होता है. इन सिस्टम को मूल रूप से सभी अपशिष्ट जल को ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाने के लिए डिजाइन किया गया था, ताकि उन्हें साफ करने के बाद नहरों या नदियों में छोड़ा जा सके.

हालांकि, भारी बारिश के दौरान पानी की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ जाती है और यह ओवरफ्लो होने लगता है. इस वजह से, यह गंदा पानी सीधे आस-पास की नदियों में चला जाता है.

सीवर सिस्टम में ओवरफ्लो

हैकेनेश-रोंप ने बताया कि शहर के 10,000 किलोमीटर लंबे सीवर सिस्टम में से करीब 2,000 किलोमीटर संयुक्त सीवेज सिस्टम है. इनमें 180 जगहों पर ओवरफ्लो की समस्या होती है. ये मूल रूप से सीवेज सिस्टम के खुलने वाले रास्ते हैं जहां से निकलकर पानी स्प्री नदी में जाता है.

बर्लिन का सुंदर कथीड्रल बर्लिनर डोम
बेकार और बारिश के जमा हुए पानी को साफ करने के बाद नदियों में डाला जाएगातस्वीर: Alex Anton/Zoonar/picture alliance

बर्लिन में मौजूद नदियां अन्य शहरों की नदियों की तुलना में काफी धीमी गति से बहती हैं. इसलिए, ये खुद को साफ नहीं कर पातीं. वहीं, तेजी से बहने वाली बड़ी नदियां खुद को साफ कर लेती हैं. उदाहरण के तौर पर राइन नदी को ले लें जो बॉन, कोलोन सहित कई शहरी क्षेत्रों से होकर बहती है. इसकी औसत प्रवाह दर 2,200 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड है और इसकी मदद से यह खुद को साफ कर सकती है.

हैकेनेश-रुंप बताती हैं, "बर्लिन की नदी की प्रवाह दर 10 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड से भी कम है. इसलिए, यहां जो कुछ भी बहकर पहुंचता है वह कुछ समय तक वहीं रहता है. ऐसे में सीवेज से होने वाले ओवरफ्लो की वजह से पानी में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और मछलियां मरने लगती हैं."

हालांकि, जल प्रबंधन से जुड़ी रणनीतियां बनाने वाले लोगों को जल्द ही यह एहसास हो गया कि बेसिन बनाकर समस्या का सिर्फ एक हिस्सा ही हल किया जा सकता है, क्योंकि शहर का बहुत बड़ा हिस्सा कंक्रीट और अभेद्य सतहों से सील है.

रुंप ने कहा, "इसका मतलब है कि हम ओवरफ्लो को कम करने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए थे. इसके बजाय, हमने यथास्थिति बनाए रखी. यानी कि अगर हमने बेसिन नहीं बनाए होते, तो स्थिति और भी ज्यादा खराब होती."

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बर्लिन को स्पंज सिटी में बदलना

बर्लिन में अधिकांश खुली जगहों पर निर्माण हो चुका है. इसलिए, अब जमीन से पानी रिसकर धरती के नीचे नहीं पहुंचता है. जब बहुत अधिक बारिश होती है, तो मिट्टी और पौधों द्वारा सोखे जाने के बजाय, पानी सीमेंट या डामर से बहकर सीवेज के साथ मिल जाता है.

हैकेनेश-रुंप ने कहा, "सीलिंग में एक फीसदी की बढ़ोतरी होने पर ओवरफ्लो में तीन फीसदी की बढ़ोतरी होती है." इसलिए, बर्लिन की सीनेट और बीडब्ल्यूबी ने ‘रेन वॉटर एजेंसी' बनाई. यह एजेंसी शहर में निर्माण कार्य करने वाले लोगों को पर्यावरण के अनुकूल छतों और इमारतों को डिजाइन करने के साथ-साथ बारिश के पानी को इकट्ठा करने और रखने करने के नए तरीकों के बारे में सलाह देती है, ताकि यह सीवेज के साथ ना मिले.

बर्लिन शहर ने एक कानून पारित किया है. इसमें कहा गया है कि एक नई इमारत से सिर्फ थोड़ी मात्रा में ही बारिश का पानी सीवेज सिस्टम में जा सकता है. बाकी पानी के लिए, इमारत को इस तरह डिजाइन करना होगा कि वह पानी रिसकर जमीन में चला जाए या वाष्प बनकर उड़ जाए.

उदाहरण के लिए, एक नए अपार्टमेंट में बड़ा तालाब भी बनाया गया जहां बारिश का पानी इकट्ठा होता है. आस-पास के पौधे पानी को शुद्ध करने में मदद करते हैं, जिसका उपयोग फिर सिंचाई के लिए किया जा सकता है.

पर्यावरण के अनुकूल इस तरह के उपायों से तापमान को कम करने में भी मदद मिलती है और अचानक आने वाली बाढ़ से भी बचाव होता है. हैकेनेश-रोंप कहती हैं, "जल संकट से निपटने के लिए नई सोच और सामूहिक प्रयासों की जरूरत होती है. लोगों को अपनी सीमाओं से परे सोचना होगा.”