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समाज

भारत में वीपीएन बैन करने का सुझाव अच्छा या बुरा

अविनाश द्विवेदी
२८ सितम्बर २०२१

वीपीएन सेवाएं यूजर को रिमोट सर्वर के जरिए इंटरनेट इस्तेमाल करने का मौका देती हैं. जिससे उनकी पहचान छिपी रहती है. वीपीएन के इस्तेमाल से किसी खास देश में बैन वेबसाइट्स भी खोली जा सकती हैं.

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तस्वीर: Avishek das/ZUMA Press/Imago Images

अगस्त में एक संसदीय समिति ने गृह मंत्रालय को सुझाव दिया कि भारत में सभी तरह के वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) को बैन कर दिया जाना चाहिए. लेकिन जानकार डर जता रहे हैं कि इस कदम के बहुत बुरे परिणाम होंगे. यह न सिर्फ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विसलब्लोअर और पत्रकारों के काम को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि कई कंपनियों और आम लोगों के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा.

बता दें कि एक वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या वीपीएन का इस्तेमाल मुख्य रूप से इंटरनेट पर अपनी पहचान छिपाने के लिए किया जाता है. दरअसल इंटरनेट से जुड़े सभी डिवाइस का एक इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) अड्रेस होता है. इसके जरिए कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार एजेंसियां और इंटरनेट सेवा प्रदाता आदि किसी खास डिवाइस, उसकी जगह और उसे इस्तेमाल करने वाले के बारे में जानकारियां जुटा सकते हैं.

Infografik VPN EN


वहीं वीपीएन का इस्तेमाल कर यूजर किसी रिमोट सर्वर या सर्वर्स के जरिए किसी खास सर्वर या वेबसाइट को इस्तेमाल कर सकता है. ऐसा करने से यूजर की पहचान छिपी रहती है. ऐसे वीपीएन जिनका सर्वर दूसरे देश में हो उनका इस्तेमाल कर किसी खास देश में बैन वेबसाइट भी खोली जा सकती हैं. इसीलिए भारत में वीपीएन बैन का सुझाव सामने आया है. समिति का तर्क है कि इससे अपराधों पर लगाम लगेगी.

पूर्ण बैन की सिफारिश

फिलहाल जिस संसदीय समिति ने बैन की सिफारिश की है, उसने इसके लिए 'तकनीकी चुनौतियों' का हवाला दिया है. इसमें कहा गया है कि डार्क वेब और वीपीएन साइबर सिक्योरिटी की चारदीवारी को फांद सकते हैं और ये अपराधियों की ऑनलाइन पहचान छिपाने में मदद करते हैं."
सिफारिश में यह भी कहा गया है कि वीपीएन को आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है और कई सारी वेबसाइट्स ऐसी सुविधाएं दे रही हैं और इनका प्रचार भी कर रही हैं. इसलिए कमेटी का सुझाव है कि गृह मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के मंत्रालय (MeitY) के साथ सहयोग करे ताकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स की मदद से वीपीएन की पहचानकर उन्हें हमेशा किए ब्लॉक किया जा सके.

डार्क वेब और वीपीएन अलग

जानकार मानते हैं कि यह सुझाव, सुई का काम तलवार से कराने जैसा है. अंतरराष्ट्रीय संस्था एक्सेस नाउ में पॉलिसी डायरेक्टर रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "यह छोटी सी समस्या का बहुत बड़ा इलाज है." वीपीएन को अक्सर ब्लॉक वेबसाइट्स को खोलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जबकि दूसरी ओर डार्क वेब उस इंटरनेट का हिस्सा ही नहीं होता, जिसे लोग आमतौर पर इस्तेमाल करते हैं.

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डार्क वेब का इस्तेमाल करने के लिए अनियन राउटर यानी टॉर (TOR) की जरूरत होती है, जो कि ऐसा गुप्त नेटवर्क होता है, जिसकी अपनी अलग वेबसाइट्स होती हैं. इसकी वेबसाइट, वेब अड्रेस के अंत में 'डॉट कॉम' के बजाए 'डॉट अनियन' एक्सटेंशन का इस्तेमाल करती हैं.

अपराधियों को पकड़ना मुश्किल नहीं

जानकारों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि वीपीएन का इस्तेमाल कर अपराध कर रहे लोगों को पकड़ा नहीं जा सकता. वीपीएन, यूजर और सेवा के बीच एक केंद्रीय माध्यम होता है, इसकी प्रदाता कंपनियां कभी भी जान सकती है कि यूजर क्या कर रहे हैं. कई सारे सेवा प्रदाता अपने यूजर्स को और ज्यादा सुरक्षा देने के लिए ट्रैफिक को इन्क्रिप्ट कर देते हैं. इसके बावजूद दुनियाभर में कानून व्यवस्था स्थापित करने वाली एजेंसियां वीपीएन इस्तेमाल कर रहे अपराधियों को पकड़ रही हैं बल्कि ये एजेंसियां टॉर जैसे माध्यम की जांच करने में भी सक्षम रही हैं.

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साल 2013 में अमेरिकी जांच एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (FBI) ने 'सिल्क रोड' नाम के एक डार्क वेब मार्केट प्लेस को बंद किया था, जिस पर ड्रग्स से लेकर इंसानों तक कई गैर-कानूनी चीजें बेची जा रही थीं. उन्होंने इसे चला रहे अपराधी को भी गिरफ्तार किया था.

भारतीयों की सुरक्षा उनके हाथ

जानकार कहते हैं, भारत में इंटरनेट को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं है. लोगों के डेटा की सुरक्षा का कोई कानून नहीं है. यहां कई पॉलिटिकल और सोशल वेबसाइट ब्लॉक हैं. 'डाउरी कैल्कुलेटर' जैसी दहेज के खिलाफ संदेश देने वाली वेबसाइट्स तक बैन हैं.
यूं तो सरकार के पास आईटी एक्ट के तहत इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को किसी वेबसाइट को ब्लॉक करने का आदेश देने का अधिकार है लेकिन कई बार कोई वेबसाइट बिना किसी आदेश के ही ब्लॉक कर दी जाती है. रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "जबकि ऐसा करना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और भारतीय संविधान दोनों के ही खिलाफ है. ऐसे में अगर सरकार वीपीएन बैन का फैसला करती है तो कोर्ट को यह तुरंत वापस लेना चाहिए."

ये 'मीम' क्या बला है


वह कहते हैं, "सबसे बुरी बात है कि इतने बड़े सुझाव के लिए कमेटी की ओर से कोई सबूत या आंकड़े नहीं दिए गए हैं. इसे साबित करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं है कि वीपीएन क्राइम को बढ़ावा दे रहा है. और सरकार और कंपनियां वीपीएन को बैन करने की प्रक्रिया में जितना पैसा खर्च करेंगी, उतना पुलिस को साइबर क्राइम के खिलाफ ट्रेनिंग देने में करें तो यह ज्यादा फायदेमंद होगा. महिलाएं आम अपराध की शिकायत करने पुलिस के पास नहीं जातीं. साइबर क्राइम की शिकायत करने वे तभी जाएंगी जब उन्हें पुलिस पर विश्वास होगा. यह विश्वास पैदा करने की जरूरत है."

आम यूजर्स और कंपनियों के लिए जरूरी

रमनजीत सिंह चीमा के मुताबिक, "वीपीएन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी जरूरी है." वहीं एक्सेस नाउ की एशिया पैसेफिक काउसंल नम्रता माहेश्वरी कहती हैं, "कई बार आम लोग बिना विज्ञापनों के इंटरनेट का इस्तेमाल करना चाहते हैं. वीपीएन के जरिए उन्हें ऐसा करने की छूट मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य से ही कई सारे सर्च इंजन में अब वीपीएन खुद ही इंबेड होता है. भारत सरकार ने कई वेबसाइट को बिना वजह बताए बैन किया हुआ है. कई बैन पर अभी कोर्ट में मामले विचाराधीन हैं. ऐसी वेबसाइट की सेवाओं के लिए भी वीपीएन की काफी उपयोगिता होती है."

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जानकारों के मुताबिक वीपीएन बैन इसलिए भी एक खराब कदम है क्योंकि व्यक्तिगत यूजर्स के अलावा कई बिजनेस भी इसका इस्तेमाल करते हैं. लगभग वे सभी बिजनेस जिनके कर्मचारी कंपनी से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों या सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं, वीपीएन का इस्तेमाल कर रहे हैं. रमनजीत सिंह चीमा बताते हैं, "कंपनियां खुद अपने कर्मचारियों को वीपीएन इस्तेमाल करने के लिए कह रही हैं." कॉरपोरेट इसका इस्तेमाल कर एक इंटर्नल नेटवर्क बना रहे हैं, जिसे कर्मचारी उस समय एक्सेस कर सकते हैं, जब वे ऑफिस में न हों. और वर्क-फ्रॉम-होम के दौर में यह एक जरूरी उपाय हो चुका है.