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जल चक्र में गड़बड़ी कर रहा है जलवायु परिवर्तन

मार्टिन कुएब्लर
१४ अक्टूबर २०२२

प्रचंड मॉनसून और भयंकर सूखे में एक चीज समान हैः वॉटर साइकिल यानी जल चक्र. जलवायु परिवर्तन और दूसरी इंसानी गतिविधियां, धरती पर जीवन को संभव करने वाली इस अहम प्रणाली को बाधित कर रही हैं.

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जल चक्र
तस्वीर: Bernd März/B&S/imago images

हाइड्रोलॉजिकल या वॉटर साइकिल वो प्रक्रिया जिसके जरिए पानी धरती पर जमीन, समुद्रों और वायुमडंल से होता हुआ गुजरता है. गैस, द्रव या ठोस की अपनी तीनों प्राकृतिक अवस्थाओं में पानी उस कुदरती चक्र का हिस्सा बनता है जो सतत रूप से पानी की निर्बाध सप्लाई बनाए रखता है, वही पानी हमारे और दूसरे प्राणियों के अस्तित्व के लिए जरूरी है.

दुनिया में पानी की निश्चित आपूर्ति में करीब 97 फीसदी पानी खारा है. शेष 3 फीसदी ताजा पानी है जिसका इस्तेमाल हम पीने, नहाने या फसलो को सींचने के लिए करते हैं. उसमें से भी अधिकांश हालांकि, हमारी पहुंच से बाहर है, वो बर्फ में दबा हुआ है या धरती के नीचे कहीं गीली नम चट्टानो में बंद है. दुनिया की कुल जलापूर्ति का सिर्फ करीब एक फीसदी पानी ही धरती पर तमाम जीवन को टिकाए रखने के लिए उपलब्ध है.

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जल चक्र कैसे काम करता है?

झीलों, नदियों, महासागरों, और समुद्रों में जमा पानी लगातार सूरज की रोशनी में तपता है. जैसे ही सतह गर्म होती है, द्रव के रूप में पानी वाष्पित होकर भाप बन जाता है और वायुमंडल में चला जाता है. हवा वाष्पीकरण की इस प्रक्रिया को गति दे सकती है. पौधे भी अपने छिद्रों यानी स्टोमा या अपनी पत्तियों या तनों के जरिए भाप छोड़ते हैं, उस प्रक्रिया को ट्रांसपिरेशन यानी वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है.

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हवा में पहुंचकर, भाप ठंडी होने लगती है और धूल, धुएं या दूसरे प्रदूषकों के आसपास घनी होकर बादल बना देती है. ये बादल धरती के चारों ओर क्षैतिज पट्टियों में मंडराते हैं, जिन्हें वायुमंडलीय नदियां कहा जाता है- एटमोस्फरिक रिवर्स. मौसम प्रणालियों को हरकत मे लाने वाले वैश्विक चक्र की ये एक प्रमुख खूबी है.

जब पर्याप्त भाप जमा हो जाती है तो बादलों में जमा बूंदे एक दूसरे मे विलीन होने लगती है और बड़ा आकार लेने लगती हैं. आखिरकार, वे बहुत भारी हो जाती हैं और बारिश के रूप में धरती पर गिर पड़ती हैं या बर्फ या तूफ़ान के रूप में- ये हवा के तापमान पर निर्भर करता है. ये वर्षा नदियों, झीलों और दूसरे जलस्रोतों को रिचार्ज कर देती है यानी पानी से भर देती है और चक्र फिर से शुरू हो जाता है.

गुरुत्व और दबाव के चलते पानी मिट्टी में भी रिस जाता है. जहां वो भूमिगत जलाशयों या गीली चट्टानो में जमा हो जाता है. वो और नीचे बहता रहता है. कभी कभी हजारों सालों तक, उस प्रक्रिया को भूजल प्रवाह कहा जाता है. और अंत में किसी जलस्रोत में मिलकर चक्र का हिस्सा बन जाता है.

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जलवायु परिवर्तन क्या गड़बड़ कर रहा है

हाल का शोध दिखाता है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में, मनुष्य जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से जल चक्र की रफ्तार में तेजी आ रही है.

ज्यादा गर्म तापमान, निचले वायुमंडल को तपा रहे हैं और वाष्पीकरण को बढ़ा रहे हैं, इसके चलते हवा में ज्यादा भाप बन रही है. हवा में ज्यादा पानी का मतलब, वर्षण का ज्यादा अवसर, और अक्सर ये गहन, अप्रत्याशित तूफान या अतिवृष्टि के रूप में गिरता है. इसका उलट भी हो रहा है. वाष्पीकरण में वृद्धि सूखे के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में शुष्क स्थितियों को बढ़ा रही है. धरती पर टिके रहने के बजाय, पानी वायुमंडल में वाष्पित हो रहा है. 

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स्पेन के बार्सिलोना में समुद्री विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं के हाल के अध्ययन ने दिखाया कि कैसे जलवायु परिवर्तन जल चक्र को बदल रहा है. इसके लिए समुद्र की सतह के खारेपन का अध्ययन किया गया जो वाष्पीकरण के तेज होन के साथ बढ़ जाता है.     

अध्ययन के प्रमुख लेखक एस्ट्रैला ओलमेडो ने एक प्रेस बयान में कहा, "जल चक्र में बढ़ोतरी का महासागर और महाद्वीप दोनों पर असर पड़ता है जिसमें तूफान और प्रचंड हो सकते हैं. वायुमंडल में घूमती हुई पानी की अधिक मात्रा बारिश में बढ़ोतरी के बारे में भी बता सकती है जो कुछ ध्रुवीय इलाकों में देखी गई है. जहां बर्फबारी की जगह बारिश होने की घटनाएं हिम पिघलाव की गति को तेज कर रही है."

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हम लोग क्या कर सकते हैं?

ये साफ हो चुका है कि फॉसिल ईंधन के उत्सर्जन में बड़ी कटौतियां आसान नहीं है, और कोई उल्लेखनीय सुधार जल्द नहीं होंगे. लेकिन जल चक्र को स्थिर करने वाले कुछ और तत्काल उपाय भी संभव है. 

दलदली इलाकों को बहाल करने और कृषि पर पुनर्विचार करने, जल संरक्षण करने वाली कृषि तकनीक को शामिल करने और मिट्टी को संरक्षित करने और संवारने से भूमि की पानी के अवशोषण यानी उसे सोखने, साफ करने और जमा करने की क्षमता बनी रह सकती है या बहाल हो सकती है. 

नदियों और जलमार्गों को ज्यादा प्राकृतिक अवस्था में वापस लाने से भी कुछ नुकसान की भरपाई हो सकती है. यूरोप और अन्य स्थानों पर पुराने पड़ चुके बांधों और मेड़ों को हटाने के प्रोजेक्ट, पानी को अवशोषित करने वाले और भूजल भंडारो को भरने में मददगार हैं. साथ ही बाढ़ के मैदानो की पुनर्बहाली भी एक अहम कदम है.     

जल चक्र को मदद देने के लिए शहर भी कुदरत आधारित समाधानों की ओर मुड़ सकते हैं. वे शहरी सतहों को ज्यादा पानी सोखने लायक बना सकते हैं. स्पंज शहर छिद्रयुक्त सतहों का इस्तेमाल पानी को सड़कों, चौराहों और दूसरी जगहों पर बहने देता है, वो यूं ही नहीं बेकार बह जाता है. ये सूखे की अवधियों के लिए पानी को जमा करता है और साथ ही साथ बाढ़ से भी निपटने में मदद करता है.

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दांव पर क्या लगा है?

मध्य एशिया में हिंदुकुश और हिमालय की पर्वत ऋंखलाओं के वॉटर-शेड यानी पनढाल में स्थित शहरों और इलाकों को आने वाले वर्षों में इस तरह के समाधानों की ओर जाना पड़ेगा. वहां के अरबों लोग ताजा पानी के लिए बर्फ के मौसमी जमाव और पहाड़ों और ग्लेशियरों में जमा बर्फ पर निर्भर हैं.

नेपाल में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटड माउंटेन डेवलेपमेंट की 2019 की एक स्टडी के मुताबिक, आशंका है कि इन इलाकों के एक तिहाई प्रमुख बर्फीले मैदान इस सदी के अंत तक गायब हो जाएंगे. ये स्थिति तब आएगी जब हम ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर बनाए रख पाते हैं.

पिघले हुए पानी के सतत प्रवाह के बिना, अरबों लोगो के लिए पानी की किल्लत बढ़ जाएगी. भूजल से कुछ कमी की भरपाई हो सकती है लेकिन आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन की वजह से भूजल के स्तर में और गिरावट आते जाने का अनुमान है. हिंदुकुश हिमालय ऋंखला में स्थित भारत के लद्दाख, जैसे इलाकों में खेती करना पहले ही और मुश्किल हो चुका है. वैज्ञानिकों ने वहां पिछले कुछ दशकों में बर्फबारी मे गिरावट और ग्लेश्यिरो का पिघलाव दर्ज किया है.     

नेपाल स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटड माउंटेन डेवलेपमेंट के फिलिपस वेस्टर कहते हैं, "इस जलवायु परिवर्तन के बारे में आपने सुना नहीं होगा. दुनिया के सबसे नाज़ुक और संवेदनशील पर्वतीय इलाकों में से ये है और इस इलाके के लोगों पर असर का एक व्यापक दायरा होगा- मौसमी घटनाओं की अतिशयता में बढ़ोतरी, कृषि पैदावार में कमी और प्राकृतिक विपदाओं की ज्यादा आमद."