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तिब्बत के पठार से एशिया को चेतावनी

आकांक्षा सक्सेना
२६ अगस्त २०२२

तिब्बत के पठार को एशिया की "जल मीनार" भी कहा जाता है. ये लगभग 2 अरब लोगों को पीने का पानी देता है. विशेषज्ञों को डर है कि इस क्षेत्र में 2050 तक पानी के ज्यादातर भंडार खत्म हो सकते हैं.

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China | Tibet Plateau | Hochland von Tibet
तस्वीर: Fan Peishen/Xinhua/picture alliance

इस सदी के मध्य तक, पूरा तिब्बती पठार अपने जल मीनार का एक बड़ा हिस्सा खो देगा. यह जानकारी एक अध्ययन से पता चली है. ये इस मुद्दे पर अब तक का सबसे व्यापक शोध है. रिसर्च पेपर प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुआ है.

अमु दरिया बेसिन - जो मध्य एशिया और अफगानिस्तान को पानी की आपूर्ति करता है, शोध उसकी जल आपूर्ति क्षमता में 119% की गिरावट दर्शाता है. सिंधु बेसिन - जो उत्तर भारत, कश्मीर और पाकिस्तान को पानी देता  है - उसकी जल आपूर्ति क्षमता में 79% की गिरावट दर्शायी गई है. कुल मिलाकर, पूरी इंसानी आबादी के एक चौथाई हिस्सा इससे प्रभावित होगा.

पेन स्टेट, सिंघुआ विश्वविद्यालय और ऑस्टिन के टेक्सस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन से स्थलीय जल भंडारण (टेरेस्ट्रियल वाटर स्टोरेज, TWS) में भारी कमी आई है, जिसमें जमीन के ऊपर और नीचे का पानी शामिल है. तिब्बती पठार के कुछ क्षेत्रों में प्रति वर्ष 15.8 गीगाटन के पानी की कमी दर्ज हुई है.

 इस पैटर्न के आधार पर, टीम ने भविष्यवाणी की है कि कार्बन के मध्यम उत्सर्जन के बावजूद पूरे तिब्बती पठार को 21 वीं सदी के मध्य तक लगभग 230 गीगाटन पानी का नुकसान हो सकता है. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर माइकल मान कहते हैं कि यह पूर्वानुमान अच्छा नहीं है.

प्रोफेसर मान ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम आने वाले दशकों में जीवाश्म ईंधन के जलने को सार्थक रूप से कम करने में विफल रहते हैं तो हम तिब्बती पठार के निचले क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता के लगभग पतन - यानी लगभग 100% नुकसान की उम्मीद कर सकते हैं. मुझे आश्चर्य हुआ कि मामूली जलवायु नीति के परिदृश्य में भी अनुमानित कमी कितनी बड़ी है,"

तिब्बत के पठार से निकले वाले दो अहम रिवर बेसिन
तिब्बत के पठार से निकले वाले दो अहम रिवर बेसिन

जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता

तिब्बती पठार के बेहद ऊंचाई वाले इलाके, मानसून और ऊपरी स्तर की पश्चिमी हवाओं के प्रभुत्व वाला वायुमंडलीय सिस्टम इस क्षेत्र में बहुमूल्य मीठे पानी से समृद्ध करता है. मानवीय गतिविधियों से बहुत ही कम प्रभावित ये इलाका एशियाई मानसून प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है. जल उपलब्धता और आपूर्ति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है.

सिंघुआ विश्वविद्यालय में हाइड्रोलॉजिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डी लॉन्ग ने कहा, "इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता निर्धारित करने में स्थलीय जल भंडारण महत्वपूर्ण है, और यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है."

अध्ययन के निष्कर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने तिब्बती पठार के TWS को कैसे प्रभावित किया है, इस पर विस्तृत जानकारी पहले उपलब्ध नहीं थी. हालांकि, ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) उपग्रह मिशनों में प्रगति ने बड़े पैमाने पर TWS परिवर्तनों की मात्रा निर्धारित करने के अभूतपूर्व अवसर प्रदान किए हैं.

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'साहसिक जलवायु नीति की जरूरत'

इससे पहले, TWS के विश्वसनीय अनुमानों का अभाव, जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट पर नीति निर्धारण में बहुत ही कम भूमिका निभाता था. शोधकर्ता डी लॉन्ग ने कहा, "जलवायु परिवर्तन और TWS की जांच करके यह अध्ययन भविष्य के अनुसंधान और सरकारों व संस्थानों द्वारा बेहतर रणनीतियों का मार्गदर्शन करने में नींव की तरह काम करता है."

तिब्बती पठार को कभी-कभी "दुनिया की छत" कहा जाता है और इसमें झीलों और नदियों का एक समृद्ध नेटवर्क है जो एशिया के एक बड़े हिस्से में पीने के पानी की आपूर्ति करता है.

प्रोफेसर मान के मुताबिक, "सबसे अच्छी स्थिति में भी नुकसान होने की संभावना है, जिसके लिए दुनिया के इस अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्र में जल संसाधनों को कम करने के लिए पर्याप्त अनुकूलन की आवश्यकता होगी"

शोध में सात नदी बेसिन प्रणालियों का अध्ययन किया गया. अध्ययन में चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान फाउंडेशन और दूसरे तिब्बती पठार वैज्ञानिक अभियान व अनुसंधान कार्यक्रमों की भी मदद ली गई.

अमु दरिया बेसिन, सिंधु, गंगा-ब्रह्मपुत्र, साल्विन-मेकॉन्ग, यांग्त्से और येलो रिवर को बड़ी आबादी और डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी की मांग के कारण इस विश्लेषण के लिए चुना गया. यह पाया गया कि गंगा-ब्रह्मपुत्र, साल्विन-मेकॉन्ग और यांग्त्से घाटियों में, डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी की कुल मांग को अन्य कारकों से पूरा किया जा सकता है. हालांकि, अमू दरिया और सिंधु घाटियों में, अपस्ट्रीम TWS में बदलाव से डाउनस्ट्रीम पानी की उपलब्धता को गंभीर खतरा होगा.

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पानी शुरू कर सकता है भौगोलिक संघर्ष

साझा जल संसाधनों पर बांध निर्माण का मुद्दा, जलवायु परिवर्तन से बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप देशों के बीच संभावित संघर्ष हो सकते हैं. हालांकि नवीनतम अध्ययन पश्चिम और दक्षिण एशियाई देशों में जलवायु-प्रेरित जल संकट के बारे में सूचित करता है, अतीत में कई अध्ययनों ने तिब्बती पठार से निकलने वाली नदियों पर बांध निर्माण के प्रभावों पर चिंता जाहिर की गई है.

मेकॉन्ग नदी भी तिब्बती पठार से निकलती है और म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम से गुजरते हुए दक्षिण चीन सागर में मिलती है. लगभग छह करोड़ लोग मछली पकड़ने, खेती और परिवहन के लिए इस नदी पर निर्भर हैं. 2010 से नदी के ऊपर और नीचे सैकड़ों बांध बनाए गए हैं, और इनमें से ज्यादातर चीन और लाओस में हैं.

स्टिमसन सेंटर के दक्षिण पूर्व एशिया कार्यक्रम निदेशक ब्रायन आयलर कहते हैं,"चीन का ग्यारह-बांधों का समूह मेकॉन्ग में आधे तलछट प्रवाह को अवरुद्ध करता है- प्रति वर्ष 165 मिलियन टन तलछट का आधा. इसका कोई हल नहीं है." आयलर ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेकॉन्ग की मुख्य धारा पर बांध का निर्माण डाउनस्ट्रीम देशों के परामर्श के बिना किया गया है. डाउनस्ट्रीम देशों को यह भी नहीं पता है कि एक नया बांध कब बनाया गया है."

लोअर मेकॉन्ग इनिशिएटिव का 2020 का एक अध्ययन, जिसमें मेकॉन्ग नदी आयोग और रिमोट सेंसिंग प्रक्रिया से रिवर गेज सबूत का इस्तेमाल किया गया, बताता है कि 2019 में पांच महीनों के लिए, चीन के बांधों में इतना पानी था कि उसने थाईलैंड में चियांग सेन में नदी की मानसून बाढ़ को रोक दिया.

पानी की कमी के कारण भौगोलिक संघर्ष भी हो सकते हैं. भारत में मौजूद तिब्बती केंद्रीय एडमिनिस्ट्रेशन के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्शे ने कहा, "हमें डर है कि आने वाले वर्षों में भारत और चीन के बीच तिब्बती पठार में ग्लेशियर पिघलने की वजह से बड़े पैमाने पर समस्या होगी. तिब्बत के भूगोल और पारिस्थितिक महत्व को भारत और चीन दोनों को समझना चाहिए."

दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों, भारत और चीन के बीच पानी तेजी से एक संभावित फ्लैशपॉइंट के रूप में उभर सकता है. पूरे एशिया महाद्वीप के लिए भी इसके दूरगामी परिणाम होंगे.