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कितना कारगर होगा लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाना

रितिका
२९ अगस्त २०२४

हिमाचल प्रदेश सरकार ने लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है. हालांकि, जानकार मानते हैं कि सिर्फ न्यूनतम उम्र बढ़ाना ही काफी नहीं है.

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मुंबई में हुई एक शादी की तस्वीर
लड़कियों की जल्दी शादी करने के पीछे रूढ़ीवादी मानसिकता और उन्हें एक बोझ के रूप में देखा जाना एक बड़ी वजह है. भारत में दशकों से बाल विवाह के खिलाफ कानून मौजूद होने के बावजूद आज भी भारत उन देशों में से एक है जहां सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं. तस्वीर: Fariha Farooqui/Photoshot/picture alliance

हिमाचल प्रदेश सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है. विधानसभा के मॉनसून सत्र में बाल विवाह प्रतिषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन विधेयक 2024) किया गया था. यह विधेयक लड़कियों को उच्च शिक्षा में बराबरी और बेहतर स्वास्थ्य के अधिकार को ध्यान रखते हुए पास किया है.

प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया. एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा कि इस फैसले से राज्य में लड़कियों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी आएगी. साथ ही, वे आने वाली पीढ़ियों को भी सशक्त करेंगी.


प्रधानमंत्री मोदी ने भी उठाया था यह मुद्दा

पूरे देश में हिमाचल पहला राज्य बना है, जिसने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 साल कर दी है. हालांकि, न्यूनतम उम्र बढ़ाने पर चर्चा 2020 में ही शुरू हो गई थी, जब स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया था. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने पर विचार कर रही है.

दिसंबर 2021 में लोकसभा में विवाह प्रतिषेध संशोधन विधेयक भी लाया गया था. इस बिल की समीक्षा के लिए इसे संसद की स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया था. हालांकि, 17वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह बिल भी निरस्त हो गया था.

क्या सरकार को तय करनी चाहिए शादी की सही उम्र

कड़े कानून के बावजूद बाल विवाह जारी

भारत में बाल विवाह के खिलाफ पहला कानून 1929 में बना, जिसे शारदा ऐक्ट के नाम से जानते हैं. इसके तहत लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 14 साल तय की गई. 1978 में फिर इसे बढ़ा कर 18 साल साल कर दिया गया. साल 2006 में इस ऐक्ट की जगह बाल विवाह प्रतिषेध विधेयक ने ले ली.

बाल विवाह को रोकने के लिए न्यूनतम उम्र तो कई दशकों पहले तय कर दी गई थी. हालांकि, इसके बावजूद बाल विवाह की कुप्रथा खत्म नहीं हुई है. जानकारों के मुताबिक, जितनी बड़ी संख्या में बाल विवाह हो रहे हैं, उसके खिलाफ दर्ज होने वाली रिपोर्ट की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है. 

इन आंकड़ों को देखें, तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा में बड़ा अंतर दिखता है.

एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2022 में बाल विवाह के केवल 1,002 मामले ही दर्ज किए गए थे. वहीं एनएचएफएस 5 के मुताबिक, भारत में 20 से 24 साल तक की 23.3 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल से पहले कर दी गई थी. यह आंकड़ा 2006 में 47 फीसदी था.

बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, असम, राजस्थान, बिहार जैसे राज्यों में भी आज भी बाल विवाह की संख्या अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक है. इनकी तुलना में हिमाचल प्रदेश में 18 से 24 साल की केवल पांच फीसदी लड़कियों की शादी ही 18 साल से पहले हुई. ऐसे में बाल विवाह को रोकने के लिए सिर्फ न्यूनतम उम्र बढ़ाना पर्याप्त नहीं लगता है. 

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तीन साल की मोहलत के साथ-साथ बोझ बनने का डर

सविता, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से आती हैं. वह बताती हैं कि उनके गांव बैजनाथ में 18 साल होते-होते लगभग सभी लड़कियों की शादी हो जाती है. शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र बढ़ाने के फैसले पर वह डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं, "एक फायदा तो होगा कि लड़कियों को तीन साल और मिल जाएंगे शादी से बचने के लिए. लोगों में कानून का डर तो है, इसलिए आज भी लोग यहां (लड़की के 18 साल का होने) इंतजार करते हैं."

अपने आसपास के परिवेश और मानसिकता को रेखांकित करते हुए सविता बताती हैं, "जैसे ही लड़कियां 18 की होती हैं या 12वीं क्लास में जाती हैं, तो परिवार वाले उनके लिए लड़का खोजना शुरू कर देते हैं. हालांकि, मुझे यह भी लगता है कि लोग इतनी जल्दी इस बदलाव को मानेंगे नहीं. यहां सबको जल्दी होती है लड़कियों की शादी की. हो सकता है लोगों को लगे कि अब तीन साल और लड़कियों को बिठाकर रखना होगा."

आंकड़ों की मानें, तो जिन लड़कियों की शादी 18 साल के बाद होती है, उनके पास आगे पढ़ने और बढ़ने के मौके तो होते हैं, लेकिन इसके लिए विकल्पों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित किया जाना जरूरी है. इन अवसरों के ना होने की स्थिति में आज भी लड़कियों के लिए शादी को ही एक उचित विकल्प के तौर पर देखा जाता है.

बाल विवाह का संबंध केवल उम्र से नहीं

केंद्र सरकार ने जब लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था, तब इस मुद्दे पर काम कर रहे कई कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों ने इसे नाकाफी बताया था. प्रीथा चैटर्जी, लैंगिक अधिकारों पर काम करने वाली संस्था 'ब्रेकथ्रू' से जुड़ी हैं. केंद्र सरकार ने 2021 में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के लिए जिस टास्क फोर्स का गठन किया था, उसमें 'ब्रेकथ्रू' ने भी कई सुझाव भेजे थे.

डीडब्ल्यू से बातचीत में प्रीथा बताती हैं, "भारत में शादी का संबंध केवल उम्र से नहीं है. आज भी हमारे देश में लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के मौके बेहद सीमित हैं. गरीबी और आगे बढ़ने के अवसरों की कमी उनकी जल्द शादी होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है, जिसपर हमारा ध्यान नहीं जाता. टास्क फोर्स को भी हमने यही सुझाव दिया था कि अगर उच्च शिक्षा की स्थिति बेहतर होगी, लड़कियों को आर्थिक आत्मनिर्भरता की ट्रेनिंग दी जाएगी, तब ही कुछ बदलेगा वरना न्यूनतम उम्र बढ़ाने का फैसला लड़कियों के लिए स्थिति और जटिल बना देगा."

भोपाल में हुए सामूहिक विवाह में शामिल एक युवती
शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल किए जाने पर जानकारों का कहना है कि यह फैसला अकेले बाल विवाह को पूरी तरह खत्म करने में सफल नहीं होगा. जरूरत लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के विकल्पों की है.तस्वीर: Sajneev Gupta/dpa/picture alliance

 

वैश्विक स्तर पर कहां है भारत

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में बाल विवाह के मामलों में गिरावट जरूर देखी गई है, लेकिन आज भी वैश्विक स्तर भारत की छवि ऐसे देश की है जहां सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 64 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही गई थी. इनमें से एक तिहाई बाल विवाह अकेले भारत में हुए.

यूएन द्वारा तय किए गए इन लक्ष्यों को पूरा करने में बाल विवाह भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में शामिल है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज भी भारत में हर चार में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है. 

समस्या की बारीकियों पर ध्यान दिलाते हुए प्रीथा कहती हैं, "आज भी हमारे देश में कई ऐसी जगहें हैं, जहां लड़कियों की शादी सिर्फ इसलिए 18 साल से पहले कर दी जाती है क्योंकि उनके पास स्कूल जाने के लिए यातायात की सुविधा नहीं होती है. हम समझते हैं कि ज्यादातर लड़कियां इसलिए ड्रॉपआउट करती हैं क्योंकि उनकी शादी कर दी जाती है. हालांकि, इस समस्या का दूसरा पहलू यह है कि परिवारवाले आज भी बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी इसलिए कर देते हैं क्योंकि उनके आस-पास स्कूल या कॉलेज नहीं होते. ऐसे हालात में परिवार को लगता है कि घर बिठाकर रखने से बेहतर है शादी करना."

प्रीथा जिस समस्या की ओर इशारा कर रही हैं, उसका उदाहरण हमें कोरोना महामारी के दौरान देखने को मिला था. जब पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही थी, उस दौरान बाल विवाह के मामले अचानक बढ़ गए थे. यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में चेताया था कि कोविड महामारी के कारण एक करोड़ से अधिक लड़कियां बाल विवाह में धकेली जा सकती हैं. इसके पीछे गरीबी, स्कूलों का लंबे समय तक बंद होना सबसे बड़ी वजह थी, ना कि सिर्फ उनकी उम्र.

सवाल एजेंसी का

सविता कहती हैं, "मेरी बढ़ती उम्र पर हर रोज लोग टिप्पणी करते हैं कि अब तक इसकी शादी क्यों नहीं हुई. तो न्यूनतम उम्र 18 हो या 21, इसमें  यह तय करने का मेरा अधिकार कहां है कि मैं किस उम्र में शादी करना चाहती हूं."

जानकारों के मुताबिक, शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का फैसला तभी कारगर होगा जब इसके साथ अन्य बुनियादी अधिकारों के पक्षों पर भी काम किया जाए. बालिग होने से पहले शादी कर देने के पीछे आज भी गरीबी, रूढ़िवादी सोच और उच्च शिक्षा तक लड़कियों की पहुंच का ना होना जैसी वजहें मुख्य भूमिका निभाती हैं.

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