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यौन शोषण की एक पड़ताल ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को उधेड़ दिया!

रितिका
३ सितम्बर २०२४

हेमा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है. इस रिपोर्ट को सामने लाने में 'वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव' ने बड़ी भूमिका निभाई है.

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केरल के तिरुवनंतपुरम शहर में लगे मलयालम फिल्मों के पोस्टर
हेमा कमेटी की रिपोर्ट जारी होने के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े कलाकारों, फिल्म निर्माताओं के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे हैं.तस्वीर: Creative Touch Imaging Ltd./NurPhoto/picture alliance

"आसमान रहस्यों से भरा है. उसमें चमकते तारे और खूबसूरत चांद भी हैं, लेकिन वैज्ञानिक खोज बताती है कि ना तारे चमकते हैं ना ही चांद उतना सुंदर है." ये हेमा कमेटी रिपोर्ट की शुरुआती पंक्तियां हैं. यह रिपोर्ट मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में मीटू आंदोलन की वजह बनी है.

17 फरवरी 2017 की तारीख थी, जब मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की एक मशहूर अभिनेत्री का अपहरण कर कार में उनका यौन शोषण किया गया. आरोप था कि "सबक" सिखाने के इरादे से उनके साथ ऐसा किया गया था. इसमें मशहूर अभिनेता दिलीप का नाम सामने आया. इस घटना के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही महिलाओं ने 'वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव' नाम के संगठन की नींव रखी. कलेक्टिव का मानना था कि 2017 की घटना इंडस्ट्री में महिलाओं के शोषण से जुड़ी इकलौती घटना नहीं थी. ऐसे में उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से मुलाकात की, जिसके बाद ही केरल सरकार ने हेमा कमेटी का गठन किया.

इस पूरे प्रकरण में 'वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव' की एक अहम भूमिका रही है. फिल्म निर्माता और लेखक अंजलि मेनन इस संगठन के संस्थापकों में शामिल थीं. हेमा कमेटी रिपोर्ट पर बात करते हुए उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "पिछले सात सालों से हम इस रिपोर्ट पर काम कर रहे हैं. हमने केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन से कहा था कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री को हेमा कमिटी जैसी रिपोर्ट की जरूरत है, ताकि आधिकारिक रूप से यह दर्ज किया जा सके कि इंडस्ट्री की हालत क्या है. सात साल बाद यह रिपोर्ट आज हमारे सामने है. आज इंडस्ट्री में जो रहा है, उन सबके बीच हमें यह याद रखना चाहिए कि यह रिपोर्ट पुरानी है. अगर यह रिपोर्ट पहले आई होती, तो शायद जो अब हो रहा है वह पहले ही हो जाता. यह बहुत मुश्किल स्थिति है, ऐसी चीजें सामने आई हैं जो अच्छी नहीं हैं."

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मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का मीटू आंदोलन

हेमा कमेटी रिपोर्ट मुख्य रूप से कार्यस्थल के दायरे में होने वाले शोषण पर केंद्रित है. इस रिपोर्ट में वेतन में गैर-बराबरी, कार्यस्थल पर शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं, इंडस्ट्री में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना, लैंगिक बराबरी सुनिश्चित करने के तरीके जैसे बुनियादी लेकिन जरूरी पक्षों की भी बात की गई है. हालांकि, इस रिपोर्ट के सामने आते ही जो मुद्दा सबसे अहम बनकर उभरा, वह है इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ होने वाला शोषण.

इस रिपोर्ट को सामने लाने से पहले कमेटी ने कई लोगों से बात की, उनके अनुभव जाने. इसमें सिर्फ महिलाएं नहीं, पुरुष भी शामिल थे. साथ ही, इसमें ना सिर्फ ऐक्टर बल्कि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर छोटे-बड़े पेशे से जुड़े लोगों को शामिल किया गया.

रिपोर्ट में लिखा गया है कि शुरुआत में महिलाएं और लड़कियां अपने साथ हुए यौन शोषण के अनुभव साझा करने में काफी हिचक रही थीं. फिर कई ने बताया कि इंडस्ट्री में आने के लिए उनके आगे सेक्स की मांग रखी गई. काम के बदले महिलाओं से सेक्स की मांग करना, सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आया. पीड़ितों ने कमेटी को बताया कि स्थिति इतनी गंभीर है कि इंडस्ट्री में ऐक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर से लेकर टेक्नीशियन या कोई भी सेक्स की मांग कोई भी कर सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इनकार करने की स्थिति में महिलाओं को इसके लिए प्रताड़ित भी किया गया. उन्हें काम ना देने की धमकी देकर चुप कराया गया. एक पीड़ित ने कमेटी को बताया कि अगर वे यौन शोषण की शिकायत लेकर पुलिस के पास जाते हैं, तो उन्हें नहीं पता होता कि इसका नतीजा क्या होगा.

पाया गया कि ऐसी महिलाएं जिनकी इंडस्ट्री में बेहद मजबूत छवि है, वे भी अपने साथ हुए शोषण के अनुभवों को बताने में हिचक महसूस कर रही थीं. उन्हें डर था कि कहीं उन्हें इसका खामियाजा ना भुगतना पड़े. ज्यादातर के मन में यही डर था कि अगर उन्होंने कुछ कहा, तो शायद उनपर बैन लगा दिया जाए. कई महिलाओं को आशंका थी कि आवाज उठाने पर कहीं उनकी और उनके परिवार की जान खतरे में ना आ जाए. हालांकि, जैसे-जैसे महिलाओं ने अपने साथ हुई शोषण की घटनाओं के खिलाफ बोलना शुरू किया, हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने मीटू आंदोलन की शक्ल ले ली.

महिलाओं के लिए कितनी बदली इंडस्ट्री

रिपोर्ट को तैयार करने और लोगों से बात करने की प्रक्रिया काफी विस्तृत रही. ना केवल मौजूदा लोगों, बल्कि 'ब्लैक एंड वाइट' फिल्मों के दौर में काम कर चुके कलाकारों से भी बात की गई. उनके अनुभवों का सार दर्ज करते हुए रिपोर्ट की एक पंक्ति में लिखा गया है, "अलग-अलग पीढ़ियों से बात करके हमें यही पता चला कि जब से इंडस्ट्री बनी है, तब से ही महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है."

रिपोर्ट के सामने आते ही इंडस्ट्री के बड़े कलाकारों के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं. अभिनेता सिद्दिकी पर एक युवा अभिनेत्री के बलात्कार के आरोप लगे हैं. रिपोर्ट सामने आने के बाद ही इस कलाकार ने पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज करवाई. इसी तरह अभिनेता जयसूर्या और फिल्म निर्माता रंजीत बालाकृष्णन, वीके प्रकाश, मनियालपिल्ला राजू, सीपीआई (एम) के विधायक और अभिनेता मुकेश जैसे इंडस्ट्री के कई बड़े कलाकारों के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे हैं.

दक्षिण कोरिया में मीटू आंदोलन के समर्थन में हुए एक प्रदर्शन की तस्वीर
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में चल रहा मीटू आंदोलन नया नहीं है. इससे पहले हॉलीवुड और बॉलीवुड में भी मीटू आंदोलन के दौरान कई बड़े कलाकारों पर यौन शोषण के आरोप लग चुके हैं.तस्वीर: Ahn Young-joon/AP Photo/picture alliance

अंजलि मेनन कहती हैं, "यह मीटू आंदोलन तो है, लेकिन इसके अलावा भी कई पक्ष हैं. यह सुरक्षित और पेशेवर कार्यस्थल की मांग भी है. जब 2017 में हमारी एक साथी को अगवा कर उनका यौन शोषण किया गया उसके बाद भी सुरक्षा के लिए कुछ किया नहीं गया, कोई कदम नहीं उठाया गया. पुलिस और कोर्ट अपना काम करेंगे, लेकिन हम इंडस्ट्री का हिस्सा होकर क्या कर सकते हैं! यह हमारा घर है, जिसकी सफाई हमें करनी है."

अंजलि मेनन आगे कहती हैं, "हम रिपोर्ट आने के बाद के मोमेंटम पर निर्भर नहीं हो सकते. हम ये सब खुद के लिए नहीं कर रहे हैं. हम आने वाली उन पीढ़ियों के लिए ये कर रहे हैं, जो इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनेंगी. आज जो हो रहा है, वह कहीं-ना-कहीं लोगों को जागरूक करेगा कि पुराने विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना जरूरी है. यहां केवल पुरुष और महिला की ही बात नहीं है. हम महिलाओं के लिए जो मांग रहे हैं, वो पुरुषों को भी फायदा पहुंचाएंगे."

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ऐसे आंदोलनों के बाद क्या बदलेगी तस्वीर?

हेमा कमेटी रिपोर्ट के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की सबसे बड़ी बॉडी 'एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट' के सभी पदाधिकारियों ने साथ में इस्तीफा दे दिया था. इनमें सिद्दिकी और रंजीत भी शामिल थे, जिनपर यौन शोषण के आरोप लगे थे. हालांकि, जैसा कि पहले हुए मीटू आंदोलनों के दौरान देखा गया था, बिल्कुल वही रवैया इस बार भी देखने को मिल रहा है. उदाहरण के तौर पर, मलयालम फिल्मों के सुपस्टार मोहनलाल ने बयान दिया कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री को इस तरह बर्बाद ना किया जाए.

तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि तमिल और तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने भी अब मांग की है कि उनके यहां भी हेमा कमेटी जैसी पहल और कार्रवाई की जरूरत है. 'वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव' ने हेमा कमेटी की रिपोर्ट से पहले भी तमिल और तेलुगू इंडस्ट्री की महिलाओं के साथ मिलकर ऐसी रिपोर्टों पर काम किया, जिसमें पूरे दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में महिलाओं की स्थिति पर बात की गई थी.

इस विषय पर अंजलि मेनन बताती हैं, "कई लोग इस वक्त उदास हैं कि क्यों पहले से बनी आ रही शांति भंग हुई. लेकिन क्या हम उस असहज शांति में बने रहना चाहते हैं? हम सभी चाहेंगे कि हम फिल्में बनाएं, ना कि ये सब करें. लेकिन हम एक सुरक्षित माहौल में काम करना चाहते हैं. ये सब हम उस सुरक्षित कार्यस्थल की मांग के लिए ही कर रहे हैं."

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इंडस्ट्री को एक सुरक्षित कार्यस्थल में बदलने की मांग

महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन दिया जाना, यातायात की सुविधा और कपड़े बदलने के लिए सुरक्षित कमरे, ये बुनियादी जरूरतें हैं. इन सुविधाओं की गैरमौजूदगी, ऑनलाइन ट्रोलिंग, किसी आधिकारिक शिकायत समिति का ना होना जैसे मुद्दे भी हेमा कमेटी रिपोर्ट में प्रमुखता से उठाए गए हैं. इंडस्ट्री में चल रहे मीटू आंदोलन के आगे ये मुद्दे पीछे चले गए हैं. अंजलि मेनन मानती हैं कि इन समस्याओं को बिना सुलझाए फिल्म इंडस्ट्री को एक सुरक्षित कार्यस्थल के रूप में नहीं बदला जा सकता. 'वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव' से जुड़ी महिलाएं जल्द ही इन सभी मुद्दों पर भी अपने सुझाव पेश करने की योजना बना रही हैं.

इस क्रम में कलेक्टिव ने कई अहम मांगें रखी हैं. मसलन, सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइंस के तहत हर प्रॉडक्शन यूनिट में आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जाए. इंडस्ट्री में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए. लैंगिक संवेदनशीलता पर लोगों को ट्रेनिंग दी जाए. फिल्मों में महिलाओं के सशक्त किरदार शामिल किए जाएं.

कई लोग ध्यान दिलाते हैं कि ये समस्याएं अभी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सामने आई हैं, जबकि उसे अपेक्षाकृत सबसे प्रगतिशील इंडस्ट्री में से एक माना जाता रहा है. ऐसे में अन्य प्रदेशों और इंडस्ट्रियों में भी विस्तृत तफ्तीश की जरूरत है, ताकि महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल, अवसरों और कमाई में बराबरी और भागीदारी बढ़ाने जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जा सके. वरना ना दिक्कतें सामने आएंगी, ना सुधार होगा. जैसा कि हेमा कमेटी रिपोर्ट कहती है, "आप जो देखते हैं, उसपर यकीन ना करें. यहां तक कि नमक भी चीनी की तरह दिखता है."