1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

दाऊदी बोहरा समुदाय में अब भी महिलाओं का खतना

६ फ़रवरी २०१८

भारत में एक स्टडी मुताबिक दाऊदी बोहरा समुदाय की लगभग तीन चौथाई महिलाओं को खतने जैसी क्रूर धार्मिक परंपरा से गुजरना होता है. हाल में सरकार ने कहा था कि उसके पास इस मामले से जुड़ा कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है.

https://p.dw.com/p/2sAGh
Kenia Mann trägt T-Shirt gegen Weibliche Genitalverstümmelung - Female Genital Mutilation FGM
तस्वीर: Reuters/S. Modola

इस सर्वे के सामने आने के बाद अब सामाजिक कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इस दिशा में कानून बनाने के लिए काम होगा. कार्यकर्ताओं के मुताबिक खतना जैसी प्रक्रिया महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक नुकसान पहुंचाती है. दाऊदी बोहरा समुदाय, शिया मुसलमान होते हैं. दुनिया में इनकी संख्या तकरीबन 20 लाख है. यह समुदाय इसे एक धार्मिक परंपरा मानता है लेकिन इसका जिक्र कुरान में नहीं मिलता. इसके तहत बच्ची जब सात साल या इसके आसपास की उम्र की होती है तो उसकी योनि को खतने के नाम पर काट दिया जाता है. जिसे खफ्द भी कहा जाता है.

बढ़ रहे हैं जर्मनी में लड़कियों के खतने के मामले

महिला खतना की प्रथा के खिलाफ संघर्ष

सर्वे में शामिल एक मां ने कहा कि उन्हें डर है कि खतने में उनकी बेटी का बहुत खून बहेगा. हर तीसरी महिला कहती है कि इस प्रक्रिया के चलते उसकी सेक्स लाइफ पर भी असर पड़ा है. वहीं कुछ मानसिक आघात की चर्चा करती हैं. इस स्टडी में शामिल कैंपेन समूह "वी स्पीक आउट" की संस्थापक मासूमा रानालवी के मुताबिक महिलाओं के अनुभव दिल दहला देने वाले हैं. रानालवी कहती हैं कि यह रिपोर्ट न सिर्फ ये बताती है कि खतने जैसी परंपरा भारत में अब भी जारी है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि यह कितनी भयावह है.

एक साल के अध्ययन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट को "इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम" के मौके पर जारी किया गया. रिपोर्ट में इस प्रक्रिया के विरोधी और समर्थक दोनों ही पक्षों की राय को शामिल करते हुए कुल मिलाकर 94 साक्षात्कार लिए गए. भारत का सर्वोच्च न्यायालय खतने की प्रक्रिया पर रोक से जुड़ी याचिका पर विचार कर रहा है. लेकिन इस मामले में आवाज उठा रहे कार्यकर्ता पिछले साल दिसंबर में उस वक्त हैरान रह गए जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि इस मसले पर सरकार के पास कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है.

यह क्रूर धार्मिक परंपरा अफ्रीकी देशों के भी कुछ समुदाय में देखने को मिलती है. लेकिन इसके समर्थक इसे खतना नहीं कहते. हालांकि संयुक्त राष्ट्र खतने की इस प्रक्रिया को लड़कियों के अधिकारों का हनन मानता है. रानाल्वी कहती हैं कि ऐसा माना जाता था कि खफ्द और खतना इसलिए जरूरी है ताकि महिलाओं की यौन इच्छा को रोका जा सके. लेकिन अब इसने खराब रूप ले लिया है और अब बहुत सी महिलाएं डर के मारे कुछ नहीं बोलती.

साल 2015 में खतने जैसा मामला उस वक्त चर्चा में आया जब ऑस्ट्रेलिया में दाऊदी बोहरा समुदाय के तीन लोगों को खफ्द के मामले में दोषी ठहराया गया. अमेरिका में रहने वाले बोहरा समुदाय पर भी इसी तरह के आरोप लगते रहे हैं.

एए/एमजे (रॉयटर्स)