यूरोप और अमेरिका में हमले किसके कहने पर?
पश्चिम में आंतकवाद का खतरा हाल के सालों में बढ़ गया है. एक अध्ययन के मुताबिक हमलावर आम तौर पर 20 से 30 की उम्र के युवा हैं जिनमें से ज्यादातर का आईएस से सीधा नाता नहीं रहा है. जानते हैं इस अध्ययन में शामिल बातों को.
कितने हमले?
यह रिपोर्ट अमेरिका की जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी, इटली के अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अध्ययन संस्थान और हेग के आईसीसीटी आंतक निरोधी केंद्र ने तैयार की है. रिपोर्ट कहती है कि जून 2014 में तथाकथित इस्लामिक स्टेट की खिलाफत के एलान के बाद यूरोप और अमेरिका में 50 से ज्यादा हमले हुए हैं.
कौन निशाने पर?
इन हमलों में आठ देशों को निशाना बनाया गया है. सबसे ज्यादा 17 हमले फ्रांस में हुए हैं. 16 हमलों के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर है जबकि तीसरे पायदान पर जर्मनी है जहां सात हमले हुए हैं. इन हमलों में लगभग चार सौ लोग मारे गये हैं जबकि डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए हैं.
औसत उम्र
पश्चिमी देशों में आंतकी हमलों को अंजाम देने वाले हमलावरों की औसत उम्र 27 साल तीन महीने है. इनमें सबसे कम उम्र का हमलावर 15 साल का था जबकि सबसे उम्रदराज 53 साल का. इनमें दो महिलाओं को छोड़ कर सभी हमलावर पुरूष थे.
कौन थे हमलावर
हमलावरों में 73 प्रतिशत लोग उन्हीं देशों के नागरिक थे जहां ये हमले हुए. वहीं छह प्रतिशत लोग उन देशों में गैरकानूनी तौर पर रहे या प्रत्यर्पित किए जाने का इंतजार कर रहे लोग थे. हमलावरों में पांच प्रतिशत शरणार्थी थे.
धर्म
अगर हमला करने वालों के धर्म पर निगाह डालें तो उनमें से 70 फीसदी लोग ऐसे थे जो धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने थे. सुरक्षा एजेंसियां पश्चिमी देशों में इस्लामी कट्टरपंथ को लेकर चिंतित हैं.
आपराधिक रिकॉर्ड
हमलावरों में से 82 प्रतिशत लोगों के बारे में अधिकारियों को पहले से जानकारी थी. 57 प्रतिशत लोगों का आपराधिक रिकॉर्ड था जबकि 18 प्रतिशत लोग पहले जेल की हवा भी खा चुके थे.
आईएस का आदेश
पश्चिम देशों में आतंकवादी घटनाओं में शामिल लोगों में सिर्फ 18 प्रतिशत ही विदेशी लड़ाके थे और सिर्फ आठ प्रतिशत हमलों के लिए सीधे इस्लामिक स्टेट के नेताओं से आदेश मिला था.
अपने दम पर
66 प्रतिशत मामलों में हमलावरों का कहीं न कहीं इस्लामिक स्टेट से संबंध था, लेकिन हमलों को अंजाम उन्होंने दम पर ही दिया. हालांकि इस्लामिक स्टेट ने हमेशा ऐसे ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी ली.
विचारधारा का असर
इनमें 26 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जिनका आईएस या किसी अन्य जिहादी गुट से कोई संबंध नहीं था, लेकिन वे सिर्फ उनकी विचारधारा से प्रभावित थे. इस्लामिक स्टेट इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए कई युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करता है.