1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भोजन के संकट से बचना है तो यह बदलाव लाने ही होंगे

स्टुअर्ट ब्राउन
२६ मार्च २०२२

रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया के कई देशों में खाद्य असुरक्षा का संकट बढ़ गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हम जो कुछ खाते हैं, उसका स्थायी और स्थानीय तौर पर उत्पादन करके से जलवायु परिवर्तन से लड़ा जा सकता है.

https://p.dw.com/p/494gD
बांग्लादेश में लगातार आती मौसमी आपदाओं ने भोजन असुरक्षा का संकट पैदा किया है.
बांग्लादेश में लगातार आती मौसमी आपदाओं ने भोजन असुरक्षा का संकट पैदा किया है. तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के जल्द खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं. जैसे-जैसे युद्ध का समय बढ़ रहा है, वैसे-वैसे दुनिया के सामने खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों के लिए अनाज की ज्यादातर आपूर्ति रूस और यूक्रेन से ही होती है. मिस्र को दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक देश माना जाता है. मिस्र ने पिछले साल अपने गेहूं का 80 फीसदी हिस्सा इन्हीं दो देशों से खरीदा था. वहीं संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का भी कहना है कि वह दुनिया में जरूरतमंद लोगों को खिलाने के लिए जो अनाज खरीदता है, उसका 50 फीसदी हिस्सा यूक्रेन से आता है.

ग्लोबल अलायंस फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड (जीएएफएफ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य असुरक्षा और आयात पर निर्भरता की वजह अस्थिर खाद्य प्रणालियां हैं. इससे वैश्विक स्तर पर तापमान भी बढ़ता है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के एक तिहाई उत्सर्जन के लिए खाद्य प्रणालियां जिम्मेदार हैं. ज्यादातर राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों (एनडीसी) में अब तक खाद्य प्रणालियों की वजह से होने वाले उत्सर्जन को शामिल नहीं किया गया है.

रिपोर्ट में इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि किस तरह कार्बन का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले मोनोकल्चर खेती पर आधारित खाद्य प्रणालियां कई स्तरों पर जलवायु परिवर्तन को तेज कर रही हैं. इनमें वनों की कटाई और जैव विविधता के नुकसान से लेकर खाद्यान को हजारों किलोमीटर दूर तक आयात करना शामिल हैं. ये खाद्य प्रणालियां न तो जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अनुकूल हैं और न ही युद्ध के लिहाज से.

बर्लिन स्थित क्लाइमेट थिंक टैंक, क्लाइमेट फोकस के वरिष्ठ सलाहकार और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हसीब बख्तरी ने कहा, "खाद्य प्रणालियों पर स्थानीय और वैश्विक स्तर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.” उन्होंने इसके समाधान पर बात करते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर ऐसी खाद्य प्रणाली विकसित करनी होगी जो जलवायु के अनुकूल हो और आयात पर निर्भरता कम करे. साथ ही भोजन की बर्बादी रोकनी होगी और कार्बन का कम इस्तेमाल करने वाले भोजन को बढ़ावा देना होगा.

विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत बंटने वाले भोजन के रख रखाव में जुटीं इथोपिया की महिलाएं. (सांकेतिक तस्वीर)
विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत बंटने वाले भोजन के रख रखाव में जुटीं इथोपिया की महिलाएं. (सांकेतिक तस्वीर)तस्वीर: AP Photo/picture alliance

बख्तरी इस बदलाव को ‘प्रकृति के लिहाज से ज्यादा अनुकूल' बताते हैं. उनके मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसे पूरा करने में इस बदलाव का अहम योगदान हो सकता है. इस बदलाव को लागू करने से कार्बन उत्सर्जन में 20 फीसदी से ज्यादा की कमी हो सकती है.

जीएएफएफ के अध्ययन से पता चलता है कि मिस्र में इस साल के नवंबर में आयोजित होने वाले कॉप27 में 14 देश किस तरह से खाद्य प्रणाली में बदलाव की बात को शामिल कर सकते हैं.

चार देशों में तो बदलाव की प्रक्रिया पहले से जारी है.

1. बांग्लादेश

मौसमी चक्रवात और ज्वार से बांग्लादेश के बाढ़ प्रभावित हिस्से में नियमित नुकसान होता है. इसी इलाके में मछली पालन और धान की खेती होती है. हाल के दिनों में आयी बाढ़ ने दुनिया के इस तीसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश को मजबूर कर दिया कि उसे बाहर से अनाज का आयात बढ़ाना पड़ा.

बांग्लादेश समुद्रतल से ऊंचाई के मामले में दुनिया के सबसे निचले देशों में से एक है. यहां के हर दसवें आदमी के सामने भोजन का संकट है. अब इस देश में बाढ़ प्रभावित इलाकों का बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है. इससे बांग्लादेश जलवायु के हिसाब से खुद को बदल भी रहा है और चावल-मछली को एक साथ पैदा करने की प्रणाली को भी बेहतर बना रहा है. परंपरागत रूप से यहां की आबादी का मुख्य भोजन चावल-मछली ही है.

साल के पांच महीने, मानसून के मौसम में फ्लड प्लेन का इस्तेमाल मछली पालन के लिए किया जा रहा है. जब पानी का स्तर कम होने पर धान की खेती की जा रही है.

खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था ‘वर्ल्ड फिश' अब चावल-मछली की समुदाय-आधारित स्थायी उत्पादन प्रणाली बांग्लादेश में लागू कर रही है. जिसके तहत कृत्रिम उर्वरकों का इस्तेमाल बंद करके, मछली के अवशेषों का इस्तेमाल प्राकृतिक उर्वरक के तौर पर किया जा रहा है. साथ ही, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले जैविक पदार्थों के विघटन को रोकने के लिए बाढ़ के मैदानों में पानी को जमा रखा जा रहा है.

मिट्टी में जैविक पदार्थ और नमी बरकरार रहने से देसी मछलियों की प्रजातियों को भी विकसित होने का मौका मिलता है. इस तरह से खाद्य प्रणाली को विकसित करने पर पोषण में भी सुधार होगा और आयात पर निर्भरता भी कम होगी.

2. मिस्र

मिस्र का लगभग 96 फीसदी हिस्सा रेगिस्तान है. इस देश में खेती योग्य भूमि और ताजा पानी की काफी कमी है. जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्म हो रहे मौसम के कारण यह समस्या और बढ़ जा रही है. मिस्र में यह भी अनुमान लगाया गया है कि कृषि योग्य भूमि के 12 से 15 फीसदी हिस्से पर समुद्र के स्तर में वृद्धि होने की वजह से खारे पानी का बुरा प्रभाव होगा.

ऐसे में आयात किए जाने वाले भोजन और विशेष रूप से अनाज पर लगातार बढ़ रही निर्भरता से तभी मुकाबला किया जा सकता है, जब इस रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने की पहल की जाए. जीएएफएफ की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 के दशक से मिस्र के रेगिस्तान में टिकाऊ विकास पहल- एसईकेईएम चलाई जा रही है. इसके तहत, जलवायु के अनुकूल खेती करके शुष्क रेगिस्तान की तस्वीर बदली जा रही है.

यहां पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है. नाइट्रोजन को बढ़ाने वाले पौधे लगाकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार किया जा रहा है, ताकि कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता खत्म हो जाए. एसईकेईएम का दावा है कि 2020 तक उसके फार्म नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित होंगे.

मिस्र के बचे हुए हरे हिस्से के रेगिस्तान बन जाने का खतरा है.
मिस्र के बचे हुए हरे हिस्से के रेगिस्तान बन जाने का खतरा है.तस्वीर: Joerg Boethling/imago images

कंपोस्ट खाद की मदद से खेती करना जैविक खेती का हिस्सा है. इसका मकसद ऐसे समय में खाद्य पर आत्मनिर्भरता बढ़ाना है, जब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने मिस्र में 2050 तक गेहूं का उत्पादन 15 फीसदी और मक्का का उत्पादन 19 फीसदी कम हो जाने की बात कही है.

खाद्य उत्पादन के लिए एसईकेईएम ने "एक नए उदाहरण पेश करने की कल्पना” की है. इसका नाम है- वहाट ग्रीनिंग द डेजर्ट पायलट प्रोजेक्ट. इस प्रोजेक्ट के तहत मिस्र के रेगिस्तान में 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र को उपजाऊ खेत में बदलने के लिए काम किया जा रहा है.

3. सेनेगल

पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल जलवायु लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए कृषि-पारिस्थितिक खाद्य प्रणाली को अपनाने और स्थायी तौर पर खाद्य उत्पादन की दिशा में काम करने वाले कुछ देशों में से एक है. वजह है देश में ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के 40 फीसदी हिस्से के लिए कृषि का जिम्मेदार होना. सेनेगल के खाद्य क्षेत्र के उत्सर्जन में कटौती से न केवल जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी, बल्कि ऐसी खाद्य प्रणाली को सुधारने में मदद मिलेगी, जो हसीब बख्तरी के शब्दों में, ‘जलवायु के असर के प्रति संवेदनशील और नाजुक' है.

सेनेगल अफ्रीका के पश्चिमी साहेल क्षेत्र में है, जहां का तापमान वैश्विक औसत के मुकाबले 1.5 गुना तेजी से बढ़ रहा है. सेनेगल में भी खाद्य असुरक्षा और कुपोषण एक बड़ी समस्या है. 2020 में, 17 फीसदी आबादी को "अत्यधिक रूप से खाद्य असुरक्षित" माना गया था. उस वक्त यहां के 7.5 फीसदी लोग कुपोषित थे.

सेनेगल हाल के वर्षों में मछली का बड़ा निर्यातक रहा है. लेकिन यह देश चावल, गेहूं, मक्का, प्याज, ताड़ का तेल, चीनी और आलू सहित अपने मुख्य खाद्य पदार्थों का लगभग 70 फीसदी हिस्सा आयात करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सेनेगल का एनडीसी भी स्थायी और स्थानीय तौर पर पैदा किए जाने वाले पौष्टिक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देकर इस निर्भरता को दूर करने का प्रयास कर रहा है.

सेनेगल में बनाए जा रहे यह गोल बागीचे रेगिस्तान से बचने की कोशिशों का हिस्सा हैं.
सेनेगल में बनाए जा रहे यह गोल बागीचे रेगिस्तान से बचने की कोशिशों का हिस्सा हैं.तस्वीर: Zohra Bensemra/Reuters

4. अमेरिका

अमेरिका खाद्य असुरक्षा की तुलना में खाने की बर्बादी से ज्यादा प्रभावित है. यहां जरूरत से 30 से 50 फीसदी ज्यादा खाद्य पदार्थों का उत्पादन होता है. इसका मतलब है कि इनमें से ज्यादातर हिस्से को फेंक दिया जाता है.

बख्तरी कहते हैं कि अगर 2030 तक अमेरिका में खाद्य पदार्थों की बर्बादी को आधा कर दिया जाता है, तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सड़क पर चलने वाली 1.6 करोड़ कारों के सालाना उत्सर्जन के बराबर कटौती होगी.

अमेरिका में ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के 10 फीसदी हिस्से के लिए कृषि जिम्मेदार है. इसका काफी ज्यादा असर पर्यावरण पर पड़ता है. ऐसे में स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए, कम जैव विविधता वाले, कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर रहने वाले मोनोकल्चर फॉर्मों पर ध्यान देना होगा.

टिकाऊ खेती बढ़ती भोजन असुरक्षा का संभव उपाय है.
टिकाऊ खेती बढ़ती भोजन असुरक्षा का संभव उपाय है. तस्वीर: Global Alliance for the Future of Food

वहीं, जीएएफएफ की रिपोर्ट के अनुसार शाकाहारी भोजन को बढ़ावा देने वाली खाद्य प्रणाली के इस्तेमाल से उत्सर्जन में 32 फीसदी की कमी आ सकती है. खाने की बर्बादी को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास पहले से ही चल रहा है. राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था रेफेड उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव करने, खाद्य पदार्थों के वितरण में बढ़ोतरी करने जैसे उपाय अपनाकर अमेरिका में भोजन की बर्बादी को रोकने का प्रयास कर रहा है. रेफेड का मानना है कि खाने की बर्बादी व्यावस्था से जुड़ी समस्या है. इसे दूर करने के लिए पूरी खाद्य श्रृंखला में  बदलाव करना होगा.