1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

चीन के साथ कारोबार में अब सख्त होगा जर्मनी

१४ सितम्बर २०२२

जर्मनी चीन के साथ अपने कारोबारी रिश्तों की समीक्षा कर रहा है और उस पर अपनी निर्भरता घटाना चाहता है. यह काम तो पहले ही शुरू हो गया था लेकिन जर्मनी की नई सरकार का रुख इस मामले में ज्यादा कठोर है.

https://p.dw.com/p/4Gob3
जर्मनी चीन का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है
चीन के साथ कारोबार को लेकर जर्मनी की चिंतायें बढ़ रही हैंतस्वीर: Sean Gallup/Getty Images

जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री का तो यहां तक कहना है कि चीन के साथ कारोबारी रिश्तों में "अब सरलता" नहीं होगी. जर्मनी उद्योगों के लिये कच्चा माल, बैट्री और सेमीकंडक्टरों के लिये चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. इसी निर्भरता को घटाने की तैयारी चल रही है. आर्थिक मामलों के मंत्रालय का कहना है कि कई नये कदमों पर विचार किया जा रहा है जिनका मकसद चीन के साथ कारोबार को कम आकर्षक बनाना है. बीते सालों में यह पहली बार है जब आर्थिक मंत्री ने साफ शब्दों में कहा है कि चीन के साथ कारोबारी नीतियों में सख्त रुख अपनाया जायेगा.

यह भी पढ़ेंः अच्छी नहीं है चीन की आर्थिक हालत 

ब्लैकमेल नहीं होगा जर्मनी

आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि चीन का कारोबारी सहयोगी के रूप में स्वागत है लेकिन अब जर्मनी चीन के संरक्षणवाद और प्रतियोगिता को ध्वस्त करने के तरीकों को मंजूरी नहीं देगा. इसके साथ ही कारोबार छिन जाने के डर से मानवाधिकारों के उल्लंघन की आलोचना भी नहीं छोड़ी जायेगी. एक इंटरव्यू में हाबेक ने कहा, "हम खुद को ब्लैकमेल करने की मंजूरी नहीं देंगे."

जर्मनी की नई सरकार चीन के साथ कारोबारी नीतियों पर नया रुख अपना रही है
जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेकतस्वीर: Jens Krick/Flashpic/picture alliance

हाबेक ने इसका ब्यौरा नहीं दिया कि ये उपाय क्या होंगे लेकिन कहा कि यूरोप के बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में चीन के निवेश की बारीकी से पड़ताल भी इसमें शामिल होगी. 

चीन, जर्मनी का पिछले 6 साल से सबसे बड़ा  कारोबारी सहयोगी है. 2021 में यह कारोबार 246 अरब डॉलर तक  पहुंच गया. हालांकि जर्मनी की मध्य वामपंथी सरकार चीन के प्रति अपनी पूर्ववर्ती मध्य दक्षिणपंथी सरकार की तुलना में कठोर रुख अपना रही है. मौजूदा सरकार एशिया के आर्थिक सुपरपावर पर जर्मनी की निर्भरता को लेकर चिंतित है.

यह भी पढ़ेंः चीन की अर्थव्यवस्था बदहाल हुई तो दुनिया पर क्या असर होगा

निवेश और निर्यात गारंटी

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी है कि आर्थिक मंत्रालय निवेश और चीन के लिये निर्यात गारंटी को घटाने और खत्म करने जैसे उपायों पर भी विचार कर रहा है. इसके साथ ही ट्रेड फेयर को भी बढ़ावा नहीं दिया जायेगा.

हाबेक का कहना है कि जर्मनी को निश्चित रूप से नये कारोबारी सहयोगियों और इलाकों के साथ संबंध जोड़ने चाहिये क्योंकि कई क्षेत्र चीन को बेचने पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. हाबेक ने कहा, "अगर उसे (चीनी बाजार) को बंद करना हो, जो फिलहाल नहीं होने जा रहा है... तो हमारे सामने बिक्री की भारी समस्या होगी." इसके साथ ही हाबेक ने यह भी कहा कि आर्थिक मंत्रालय नई जर्मनी-चीन नीति में बड़ी भूमिका निभा रहा है जिसका ज्यादातर हिस्सा पहले ही लागू हो चुका है. हाबेक का कहना है, "यहां से अब आपको सरलता नहीं दिखाई देगी."

हाबेक के ये बयान दुनिया के अमीर देशों जी7 के कारोबार मंत्रियों की इस हफ्ते ब्रांडेनबुर्ग में होने वाली बैठक से ठीक पहले आये हैं.

हाबेक का कहना है कि साझा व्यापार के साथ एक संयुक्त दुनिया की "कल्पना" खत्म हो चुकी है लेकिन अमेरिका और चीन को जरूरत से ज्यादा संरक्षणवादी नहीं होना चाहिये. हाबेक ने कहा, "हमें यह भी समझना होगा कि कारोबार नीति ताकत का एक नया हथियार है, साथ ही भाइचारे का औजार भी."

चीन यूरोप में निवेश बढ़ाना चाहता है
चीन यूरोप के बुनियादी ढांचे में भी निवेश करने की कोशिश कर रहा हैतस्वीर: Darko Vojinovic/AP/picture alliance

सिल्क रूट का समर्थन नहीं

जर्मनी यूरोप में चीन के निवेश को भी ज्यादा बारीकी से परखना चाहता है. हाबेक ने यह भी कहा कि यूरोप को चीन के सिल्क रोड अभियान का समर्थन नहीं करना चाहिये, जिसका मकसद यूरोप में रणनीतिक बुनियादी ढांचे को खरीदना और कारोबार की नीतियों पर असर डालना है.

हाबेक ने उदाहरण दे कर बताया कि चीन की कॉस्को कंपनी जर्मनी के हाफेन हैम्बर्ग पोर्ट के कंटेनर ऑपरेटर में हिस्सेदारी खरीदना चाहती है जिसका उन्होंने विरोध किया है. चीन तकनीक से लेकर लॉजिस्टिक जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में अधिग्रहण के लिये सौदे कर रहा है जिसे लेकर जर्मनी में चिंता है. हाबेक ने कहा, "मैं इस सच्चाई की तरफ झुक रहा हूं कि हम इसकी मंजूरी नहीं देंगे."

चीन ने यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुआ हालांकि उसने रूसी कदमों का समर्थन भी नहीं किया है क्योंकि वह यूरोप के साथ कारोबारी रिश्ते बनाये रखना चाहता है.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)