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युद्ध अपराधों, नरसंहारों से इनकार को अपराध बनाएगा जर्मनी

लीसा हेनेल
२५ नवम्बर २०२२

जर्मनी में होलोकॉस्ट यानी यहूदी नरसंहार से इनकार करना लंबे समय से अवैध है. एक नये संशोधन के जरिए अब दुनिया में कहीं भी हुए अन्य युद्ध अपराधों और नरसंहारों की मनाही को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया जा रहा है.

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जर्मनी युद्ध अपराध से इनकार को अपराध बनायेगा
यूक्रेन के बूचा से रूसी सैनिकों के निकलने के बड़ी संख्या में आम लोगों के शव मिले तस्वीर: Rodrigo Abd/AP Photo/picture alliance

यूक्रेन के बुचा में कथित युद्ध अपराध, यजीदी का नरसंहार, चीन में उईगुर मुसलमानों के खिलाफ मानवाधिकर हनन के मामले.....दुनिया भर के संघर्षों में अत्याचारों की यह सूची काफी लंबी है. फिर भी, कुछ लोग बार-बार इन अपराधों को कम करके आंकते हैं या फिर इनसे इनकार करते हैं. जर्मनी में कानून बनाने वाले अब इस स्थिति को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं और सार्वजनिक शांति को भंग करने या घृणा फैलाने जैसे कृत्यों को नकारने को कानूनी तौर पर दंडात्मक बनाना चाहते हैं.

जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग ने अक्टूबर के अंत में इस तरह के एक संशोधन के पक्ष में वोट दिया था और जल्दी ही इसके उच्च सदन बुंडेसराट से भी पारित हो जाने की संभावना है. उच्च सदन राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करता है. नये संशोधन में सेक्शन 130 के पैराग्राफ पांच के तहत, युद्ध अपराधों और नरसंहारों की सहमति, इनकार और इन्हें मामूली बताने को एक आपराधिक कृत्य माना जाएगा.

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यूनिवर्सिटी ऑफ ऑग्सबुर्ग में कानूनी जानकार माइकल कुबिसील कहते हैं, "यह कानून प्रवर्तन को एक मजबूत दिशा निर्देश देने के बारे में था कि वे कैसे और क्या जांच कर सकते हैं, लेकिन इन सबसे ऊपर, यह यूरोपीय आयोग की मांगों को पूरा करने के बारे में था और अब यह किया जा चुका है.”

जर्मनी पर कार्रवाई का दबाव

वास्तव में, जर्मनी इसे पारित करने की जल्दी में नहीं था. साल 2008 में नस्लवाद से लड़ने के लिए यूरोपीय संघ ने एक निर्देश जारी किया था और यूरोपीय संघ की कार्रवाई के डर के कारण जर्मन सरकार पर इसे लागू करने का दबाव था.

ऑनलाइन नफरत से पीड़ित लोगों की मदद करने वाले संगठन हेटएड की मुख्य वकील जोसेफीन बैलन के मुताबिक, यह बदलाव सही समय पर आया है.

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डीडब्ल्यू से बातचीत में बैलन कहती हैं, "मैं यह देखने के लिए उत्साहित हूं कि यह संशोधन कैसे लागू होता है. और निश्चित तौर पर मुझे इसमें एक व्यावहारिक उम्मीद दिख रही है. यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भी कुछ चीजें इसके अंतर्गत आ सकती हैं. मैं कहना चाहूंगी कि संशोधन एक ऐसे समय में आया है जब यह काफी प्रांसगिक हो सकता है.”

यूक्रेन में बड़े पैमाने पर युद्ध अपराध होने की बात कही जा रही है
प्रस्तावित संशोधन मौजूदा युद्ध अपराधों के लिए भी लागू होगातस्वीर: Jens Krick/Flashpic/picture alliance

अधिनियमित हो जाने के बाद यह नियम ऑफलाइन भी लागू हो सकेगा. हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में क्रिमिनल लॉ के असिस्टेंट प्रोफेसर अजीज एपिक कहते हैं कि कानून में संशोधन से अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संभावित अपराधों की तथ्यात्मक बहसें इससे प्रभावित नहीं हो सकेंगी.

एपिक के मुताबिक, "लेकिन यदि आपके सामने ऐसी स्थिति आती है, मसलन, यूक्रेनी लोगों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा हो, कीव में ‘फासिस्ट शासन' के खिलाफ बातचीत हो रही हो या फिर जैसा कि बुचा में हुआ, कुछ वैसा हो रहा हो तो इस संशोधित पैराग्राफ के जरिए हम इन स्थितियों से आसानी से निबट सकते हैं.”

बदलाव के बाद आलोचना

इस संशोधन की आलोचना भी हो रही है और आलोचना करने वालों में कानूनी जानकार और इतिहासकार भी शामिल हैं. कुछ लोगों की शिकायत है कि इसमें पारदर्शिता का अभाव है क्योंकि बुंडेस्टाग में यह संशोधन बिना किसी को नोटिस और बिना किसी बहस के ही देर शाम के समय पास कर दिया गया. कुछ अन्य लोगों का मानना है कि यह संशोधन अनावश्यक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करता है.

हालांकि कुबिसील इससे असहमत हैं, "मुझे लगता है कि यह पूरी बहस एक पुरानी कहावत जैसी है कि ‘अनावश्यक चीज के लिए बड़ी बहस' करना. ना तो इस प्रक्रिया में कोई दिक्कत थी और ना ही संशोधन से कोई समस्या आने वाली है.”

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वो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस नए संशोधन से पहले भी नरसंहार को सार्वजनिक स्वीकृति देना या फिर किसी व्यक्ति के खिलाफ हेट स्पीच देना जर्मनी में कानून के तहत दंडनीय था.

कुबिसील इसमें किसी तरह से भी बोलने की स्वतंत्रता को बाधित होते नहीं देख रहे हैं, "यह इस बारे में है कि क्या आम नागरिक बोल सकता है. क्या उन्हें अभी भी ऐसा करने की आजादी है. उन्हें तब तक इनकार करने की भी आजादी है जब तक कि वो घृणा नहीं फैला रहे हैं और आखिरकार, यदि कोर्ट कानूनी रूप से साबित कर दे कि इनकार सच नहीं था.”

द फॉग ऑफ द वार

वो एक आलोचना को समझ सकते हैं- चल रहे संघर्षों का संबंध. जर्मन संशोधन स्पष्ट रूप से मौजूदा संघर्षों में युद्ध अपराध के इनकार को दंडनीय बनाने की अनुमति देता है- यहां तक कि यूरोपीय संघ भी केवल पिछले युद्ध अपराधों को सीमित करने का विकल्प देता है जिनकी जांच की की गई और कोर्ट में साबित हो गयेए.

ऐसा इसलिए है क्योंकि सिर्फ एक युद्ध के दौरान ही सच्चाई सामने नहीं आ सकती है और उस दौरान लगाए गए आरोप अक्सर गलत पाये गये हैं.

कुबिसील इस समस्या को देखते हैं लेकिन ऐसे मामलों में नये संशोधन के जरिए वो आरोपों के लाए जाने की उम्मीद नहीं करते हैं.

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि अदालतें सिर्फ ऐसे समय में सक्रिय होंगी जब युद्ध का कुहरा कुछ हद तक छंटेगा. जब तथ्य इतने स्पष्ट होते हैं कि अभियोजकों को लगता है कि उनके पास पर्याप्त सबूत हैं.”

डीडब्ल्यू को दिए एक बयान में न्याय मंत्रालय ने कहा है कि उसके पास खुद को पिछले युद्ध अपराधों तक ही सीमित ना रखने के लिए ‘बड़े कारण' थे. मंत्रालय का कहना था, "कुल मिलाकर, यूरोपीय संघ फ्रेमवर्क निर्णय केवल इनकार और अपराधों को हल्के में लेने के लिए इस तरह से सीमित रखने की अनुमति देता है, लेकिन माफ नहीं करता है.”

विदेश नीति में तनाव संभव है

यूक्रेन पर आक्रमण और उस पर मिलने वाली ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रतिक्रियाएं दिखाती हैं कि युद्ध अपराधों के इनकार और उन्हें नगण्य समझने को अपराध मानने वाला कानून सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होगा.

हालांकि इसके राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं. अजीज एपिक कहते हैं कि संशोधन यदि पारित हो जाता है तो इससे जर्मन सरकार की विदेश नीति के मामले में संकट आ सकता है. मसलन, यदि जर्मन जिला अदालतों को चीनी अपराधों पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अप्रत्यक्ष निर्णय देना होता तो यह लागू हो सकता था. तब जर्मन सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करने की स्थिति में ज्यादा सहज होती.

यदि बुंडेसराट संशोधन को स्वीकृति दे देता है, जर्मन अदालतें वर्तमान युद्ध अपराधों पर फैसले देने में सक्षम होंगी. जोसेफीन बैलन कहती हैं कि महत्वपूर्ण यह है कि ऐसा एक विशेष अनुपात में हो. लेकिन उन्हें लगता है कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि नफरत को बढ़ावा देना बहुत ही जटिल अपराध है. इसमें कई शर्तें विश्लेषण के लिए काफी जगह छोड़ देती हैं, इसीलिए सरकारी वकील और अदालतें इस मामले में काफी सावधानी बरतती हैं और बहुत कम संख्या में सिर्फ उन्हीं मामलों को सुनती हैं जिनमें आरोपों के समर्थन में मजबूत तर्क और सबूत होते हैं.

क्या ये मामले बढ़ेंगे, क्या नागरिक समाज से जुड़े संगठन भी इस नए संशोधन यानी पैराग्राफ पांच का उपयोग करेंगे, यह सब कुछ ही महीनों या कुछ वर्षों में स्पष्ट हो जाएगा.