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क्या है जर्मनी की नई फेमिनिस्ट विदेश और विकास नीति

१ मार्च २०२३

अधिक समानता वाला समाज, कम भूख और गरीबी झेलता है. ऐसा समाज ज्यादा टिकाऊ भी रहता है. जर्मनी की विकास मंत्री ने इन शब्दों के साथ महिलाओं को समानता के मौके देने की नीतियां पेश की हैं.

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बर्लिन में शरणार्थी महिलाओं की आवाज उठाता एक विशाल बैनर
तस्वीर: Bernd Settnik/dpa/picture alliance

जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक और जर्मनी की विकास मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने समाज में महिलाओं को समानता के अधिकार देने लिए एक नीति पेश की है. ग्रीन पार्टी की बेयरबॉक और एसपीडी की शुल्त्से ने बुधवार को राजधानी बर्लिन में मिलकर महिलाओं को ज्यादा अच्छे तरीके से समानता का अधिकार देने वाली नीतियों का प्रस्ताव पेश किया. फेमिनिस्ट फॉरेन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी नामक कॉन्सेप्ट को साझा रूप से पेश करते हुए शुल्त्से ने कहा, "हम समाजों को न्याय संगत बनाना चाहते हैं. और आप आधी संभावनाओं, मुख्य रूप से महिलाओं के बिना ऐसा नहीं कर सकते, आपको उनके बारे में सोचना ही होगा."

यूरोपीय संघ की कंपनियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम

शुल्त्से के मुताबिक अगर, "महिलाएं ये फैसला करें कि उन्हें बच्चे कब और किसके साथ पैदा करने हैं, तो इसका मतलब होगा कि ज्यादातर लड़कियां स्कूली पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. उन्हें खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नौकरी के मौके मिलेंगे." शुल्त्से ने कहा कि, "इसका मतलब जमीन का अधिकार भी है. खेतों में काम करने वालों में ज्यादातर महिलाएं हैं. लेकिन अगर उनके पास मालिकाना हक नहीं होगा तो उन्हें कर्ज नहीं मिलेगा."

बर्लिन में साझा बयान देती बेयरबॉक (बाएं) और शुल्त्से (दाएं)
बर्लिन में साझा बयान देती बेयरबॉक (बाएं) और शुल्त्से (दाएं)तस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

इस प्रस्ताव के लिए किसी तरह के कैबिनेट निर्णय की जरूरत नहीं है. यह गाइडलाइंस मंत्रालयों के काम काज पर लागू होंगी. अनालेना बेयरबॉक के मुताबिक, "महिलाओं के अधिकार समाज की मौजूदा स्थिति की जानकारी भी देते हैं." बेयरबॉक ने इस कॉन्सेप्ट को मूल्य आधारित विदेशी नीति का अभिन्न हिस्सा करार दिया है. इसके तहत विदेशों में राजदूत के रूप में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाएगी.

बेयरबॉक के मुताबिक महिलाओं को समानता के अधिकार दिलाने का रास्ता अभी भी काफी लंबा है. दुनिया भर में आज भी मौजूद पिछड़ेपन की तरफ इशारा करते हुए जर्मन विदेश मंत्री ने कहा, "जाहिर है दुनिया में हर जगह, और तो और यहां भी, सच्चाई तो यही है." 

लीडरशिप के रोल में महिलाएं

फेमिनिस्ट फॉरेन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी  में इस बात पर जोर दिया गया है कि जर्मनी के भीतर विदेश मंत्रालय में उच्च अधिकारियों वाली पोस्टों पर कम से कम 50 फीसदी महिलाएं होंगी. ये नौकरियां मानवीय मदद, स्थिरता संबधी विभाग, शांति मिशनों, विदेशी संस्कृति और शिक्षा नीति जैसे विभागों में होंगी,

बेयरबॉक जर्मनी की विदेश मंत्री हैं और शुल्त्से विकास मामलों की मंत्री
बेयरबॉक जर्मनी की विदेश मंत्री हैं और शुल्त्से विकास मामलों की मंत्रीतस्वीर: IPON/IMAGO

पॉलिसी कॉन्सेप्ट पेश करने से पहले जर्मन की सरकारी प्रसारक एआरडी से बात करते हुए शुल्त्से ने कहा, "यह सहज ही है कि विकास नीति में महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान देना होगा, उनके पास संसाधन होने चाहिए और उनका प्रतिनिधित्व भी होना चाहिए."

वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर जर्मन महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी

शुल्त्से ने कहा कि वह चाहती हैं कि समाज में महिलाओं को एक शक्तिशाली ताकत के रूप में दिखना चाहिए. विकास मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक 2025 तक, 90 फीसदी से ज्यादा नए प्रोजेक्ट फंड, लैंगिक सामनता को आगे बढ़ाने में खर्च किए जाएंगे. 2021 में ऐसे प्रोजेक्ट फंड्स की संख्या 64 प्रतिशत थी. जर्मन सरकार चाहती है कि फेमिनिस्ट डेवलपमेंट पॉलिसी को साझेदारों देशों के साथ सहयोग में भी एक अहम स्तंभ बनाया जाए.

बुढ़ापे में भी गरीबी को ज्यादा शिकार होती हैं महिलाएं
बुढ़ापे में भी गरीबी को ज्यादा शिकार होती हैं महिलाएंतस्वीर: K. Schmitt/Fotostand/picture alliance

कैसे असमानता की मार झेलती हैं महिलाएं

यूरोपीय आयोग की एक विस्तृत रिपोर्ट के मुताबिक संघ के 27 देशों में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले औसतन 14 फीसदी कम वेतन मिलता है. आयोग का कहना है कि इसका मतलब है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं हर साल लगभग दो महीने बिना वेतन के काम करती हैं. यह गैर-बराबरी, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, नॉर्वे और स्पेन समेत यूरोपीय संघ के ज्यादार देशों में है.

दुनिया के ज्यादातर देशों में परिवार चलाने और बच्चों के लालन पालन की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही आती है. पश्चिमी देशों में इन जिम्मेदारियों की वजह से ज्यादातर महिलाएं पेंशन के मामले में बहुत पीछे रह जाती है. पार्टनर के अलग होने या उसकी मृत्यु होने पर ऐसी महिलाओं का बुढ़ापा बहुत गरीबी में गुजरता है. पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से छुट्टी लेने और काम के घंटे घटाने की वजह से भी महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में पिछड़ती जाती हैं.

ओएसजे/एमजे (डीपीए)