पनडुब्बी बनाने के लिए भारत और जर्मनी में करार लगभग तय
२४ जनवरी २०२५भारत के लिए छह आधुनिक पनडुब्बियां बनाने का प्रोजेक्ट भारत की मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप के जॉइंटवेंचर को मिलना लगभग तय हो गया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स को एक भारतीय रक्षा अधिकारी ने बताया कि उनके संभावित प्रतिद्वंद्वी, स्पेन की सरकारी शिपबिल्डर नवांटिया और भारत की लार्सन एंड टुब्रो का जॉइंट वेंचर भारतीय नौसेना की 2024 में आयोजित तकनीकी परीक्षणों की जरूरतों को पूरा करने में असफल रहा.
यह परियोजना भारत की सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाने और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण है. थिसेनक्रुप की भारतीय साझेदार, मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने गुरुवार को शेयर बाजार को दी जानकारी में बताया कि प्रोजेक्ट के लिए उसके फील्ड ट्रायल्स सफल रहे और भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अगले हफ्ते बातचीत के लिए कंपनी को आमंत्रित किया है. रक्षा मंत्रालय, लार्सन एंड टुब्रो और उसके पनडुब्बी साझेदार ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
भारत के लिए अहम है पनडुब्बी प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट की एक मुख्य आवश्यकता एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) तकनीक है, जो डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों को पानी के अंदर दो हफ्ते से अधिक समय तक रहने में सक्षम बनाती है. बिना एआईपी तकनीक वाली पारंपरिक पनडुब्बियों को हर कुछ दिनों में बैटरियों को चार्ज करने के लिए सतह पर आना पड़ता है.
फिलहाल भारतीय नौसेना के पास 17 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं जिनमें एआईपी तकनीक नहीं है, जबकि चीन और पाकिस्तान के पास यह तकनीक है. यह जानकारी गैर-लाभकारी संगठन न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव ने दी है.
विश्लेषकों का कहना है कि इन छह नई पनडुब्बियों के प्रोजेक्ट में एक दशक से अधिक की देरी हो चुकी है, और अब समझौता होने के तीन से पांच साल बाद पहली पनडुब्बी के तैयार होने की उम्मीद है.
यह प्रोजेक्ट इसलिए भी अहम है क्योंकि भारतीय नौसेना की लगभग आधी पारंपरिक पनडुब्बियों ने पिछले कुछ वर्षों में कई अपग्रेड और मरम्मत करवाई हैं और वे अब अपनी उम्र लगभग पूरी कर चुकी हैं. प्रोजेक्ट 75आई नाम की इस परियोजना के तहत छह आधुनिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां बनाई जाएंगी.
रक्षा सहयोग को नई दिशा
भारत और जर्मनी के बीच रक्षा संबंध पहले सीमित थे, लेकिन अब दोनों देश रणनीतिक साझेदारी की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. पिछले साल भारत के दौरे पर गए जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने तब इस प्रोजेक्ट की अहमियत पर जोर देते हुए कहा था, "यह प्रोजेक्ट सिर्फ पनडुब्बियों के बारे में नहीं है, यह दो लोकतंत्रों के एक साथ काम करके एक सुरक्षित और स्थिर इंडो-पैसिफिक के निर्माण की बात है. हमें और ज्यादा सहयोग की जरूरत है, कम की नहीं."
जर्मनी भारत की रूस पर निर्भरता को कम करने में मदद कर रहा है. पारंपरिक रूप से भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहा है लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद बदली भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत ने पश्चिमी देशों के साथ रक्षा संबंध बढ़ाए हैं. पश्चिमी देशों ने भी इस बदलाव का फायदा उठाते हुए भारत के साथ बड़े रक्षा और हथियार समझौते किए हैं. जर्मनी भी चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए भारत से उम्मीद लगाए हुए है.
जर्मनी इस सहयोग को लेकर खासा उत्सुक है. दोनों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वतंत्र और खुले समुद्री मार्गों की सुरक्षा को लेकर एकजुट हैं. जर्मन नौसेना के जहाज भारतीय महासागर में अभ्यासों में भाग ले चुके हैं. इससे पहले जर्मनी ने भारत की शिशुमार-क्लास पनडुब्बियों के निर्माण में भी सहयोग किया है.
फरवरी 2024 में, भारत और जर्मनी के रक्षा मंत्रियों की बर्लिन में बैठक हुई, जिसमें आपसी सहयोग को और मजबूत करने पर चर्चा की गई. इसके बाद नई दिल्ली में जर्मन राजदूत फिलिप आकरमान ने "टाइम्स ऑफ इंडिया" अखबार को दिए इंटरव्यू में इसे "दृष्टिकोण में बड़ा परिवर्तन" बताया. उन्होंने कहा कि अब जर्मनी में भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए "स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति" है. इसमें सैन्य यात्राओं, अभ्यासों, सह-उत्पादन और साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों सहित अन्य पहलुओं पर ध्यान दिया जा रहा है.
सहयोग बढ़ाने का एक उदाहरण अगस्त 2024 में आयोजित "तरंग शक्ति फेज 1” युद्धाभ्यास है, जिसमें जर्मन वायु सेना ने पहली बार हिस्सा लिया. इसके अलावा, 2024 की सर्दियों में एक जर्मन नौसैनिक जहाजों ने भारत का दौरा किया.
आर्थिक संबंधों में मजबूती
जर्मनी यूरोपीय संघ में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच 25 अरब यूरो से ज्यादा का व्यापार होता है. पिछले साल ओलाफ शॉल्त्स के दौरे के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जर्मनी के व्यवसायों के लिए भारत में बड़े अवसरों की बात कही थी. उन्होंने कहा, "भारत अपने बुनियादी ढांचे को पूरी तरह बदल रहा है. रिकॉर्ड निवेश हो रहे हैं. यह जर्मन और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा करता है.”
जर्मनी ने भारत के जलवायु लक्ष्यों के लिए 10 अरब यूरो देने का वादा किया है. साथ ही, इंडो-जर्मन एनर्जी फोरम के तहत दोनों देश स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में इनोवेशन के लिए साझेदारी कर रहे हैं. जर्मनी के सरकारी निवेश संस्थान केएफडब्ल्यू ने पिछले साल कहा था कि भारत के निजी क्षेत्र में उनका निवेश एक अरब डॉलर तक बढ़ सकता है.
जर्मनी में कुशल भारतीय पेशेवरों की मांग बढ़ रही है. आईटी, इंजीनियरिंग और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में भारतीय प्रतिभाओं को ज्यादा मौके मिल रहे हैं. जर्मनी भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर भी उत्साहित है. चांसलर शॉल्त्स ने कहा था, "मुझे यकीन है कि अगर हम साथ काम करें, तो यह महीनों में पूरा हो सकता है, सालों में नहीं.”
भारत-जर्मनी की साझेदारी में चुनौतियां भी हैं
हालांकि भारत-जर्मनी साझेदारी मजबूत हो रही है, लेकिन कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं. दोनों देशों के नियमों और प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण रक्षा सौदों और व्यापार वार्ताओं में देरी आम है बात है.
इसके अलावा कई क्षेत्रों में दोनों की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. यही वजह है कि कृषि और रक्षा खरीद जैसे मुद्दों पर कई मतभेद हैं, जिन्हें हल किया जाना जरूरी है. फिर भी, विशेषज्ञ कहते हैं कि पनडुब्बी प्रोजेक्ट भारत और जर्मनी के बढ़ते भरोसे और साझेदारी का प्रतीक है.
यह सौदा केवल रक्षा क्षेत्र में सहयोग नहीं है, बल्कि दोनों देशों के आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों को भी जाहिर करता है. जैसा कि चांसलर शॉल्त्स ने भारत में कहा था, "आज किए गए हमारे प्रयास दोनों देशों के लिए एक मजबूत और टिकाऊ भविष्य बनाएंगे.”