खामोश आवाजों को सुनने की कोशिश करतीं फोटोग्राफर गौरी गिल
हमारे रोजमर्रा के जीवन में सिर्फ ऊंची बोलियां ही सुनाई देती हैं. भारतीय फोटोग्राफर गौरी गिल करीब तीन दशकों से उन आवाजों को सुन कर अपनी तस्वीरों में उतारने की कोशिश कर रही हैं जो आम तौर पर मुख्यधारा में कहीं दब जाती हैं.
भारतीय फोटोग्राफर गौरी गिल
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर की मशहूर शर्न आर्ट गैलरी में 13 अक्टूबर 2022 से 8 जनवरी 2023 तक भारतीय फोटोग्राफर गौरी गिल की कला की प्रदर्शनी चल रही है.
कला बनी प्रतिरोध और मरम्मत का औजार
गिल ने बीते तीस सालों में कई अलग अलग सीरीज पर काम किया है. उनकी सैकड़ों तस्वीरों को प्रदर्शनी में 'ऐक्ट्स ऑफ रेजिस्टेंस एंड रिपेयर' शीर्षक से पेश किया गया है.
जिसे देख पश्चिमी देशों के लोग ठिठक जाते हैं
2015 से अब भी जारी उनकी एक फोटो सीरीज देश और विदेश हर जगह लोगों का ध्यान खींच रही है. इसमें लोगों के चेहरों पर खास तरह के मास्क लगे दिखते हैं. इसे 'ऐक्ट्स ऑफ अपीयरेंस' का नाम मिला है.
मुखौटों के पीछे छिपे चेहरे
गिल ने इन तस्वीरों में ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में चुनौती भरा जीवन भी जिंदादिली से जीने वाले लोगों को जगह दी है. उनके चेहरों पर लगे मुखौटे बरबस ही उस अभाव भरे जीवन में बसी समृद्ध परंपरागत कला की ओर ध्यान खींचती हैं.
महिलाओं के लिए सम्मान और उनकी एकजुटता
साल 1999 से चली आ रही 'नोट्स फ्रॉम द डेजर्ट' उनकी एक ऐसी सीरीज है जिसमें उन्होंने राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में हाशिये पर जीने वाले समुदायों की ओर खास तौर पर ध्यान दिलाने की कोशिश की है.
रेगिस्तानी राजस्थान में कुम्हलाते फूल
राजस्थान के पिछड़े इलाकों को अपनी कला में प्रमुखता से जगह देने वाली गिल ने इलाके की लड़कियों को भी उनके नैसर्गिक माहौल में जस का तस तस्वीरों में उतारा है.
जहां कुछ नहीं वहां भी है पीढ़ियों का ज्ञान
पिछड़े और दुश्वार इलाकों में जब कोई ग्रामीण महिला प्रसव से गुजरती है तो कैसे समुदाय की महिलाएं अपनी सूझबूझ और पारंपरिक ज्ञान की मदद से एक नई जान को इस दुनिया में लाती हैं, गिल ने उस पल को यूं कैद किया है.
जीना सिखाती है कला
चंडीगढ़ में जन्मी और नई दिल्ली में बसी फोटोग्राफर अपना ज्यादा वक्त बीहड़ों के तथाकथित कम विकसित इलाकों में बिताती है. गिल का कहना है कि वह इन सबसे सीखती हैं कि अक्लमंदी से, क्रिएटीविटी से और खुशी से कैसे जीना है.