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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

न्यूयॉर्क की जगमगाती रोशनी से हो रहे हैं नुकसान

२० सितम्बर २०२३

‘कभी ना सोने वाला शहर’ का तमगा न्यूयॉर्क और दुनिया को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, इसका पता रात की रोशनी के कारण होने वाले नुकसान से चलता है.

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न्यूयॉर्क
न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वेयरतस्वीर: picture alliance/AP

न्यूयॉर्क में सालाना जलवायु सप्ताह के दौरान जमा हुए पर्यावरण कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और उद्योगपतियों ने जिन मुद्दों पर चर्चा की, उनमें न्यूयॉर्क शहर में रात की रोशनी भी शामिल है.

इन्हीं रोशनियों के कारण न्यूयॉर्क के लिए कहा जाता है, यह शहर कभी सोता नहीं है. लेकिन यह बात पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को परेशान कर रही है और उनकी चिंता इस बात से और बढ़ रही है कि इन रोशनियों से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता बेहद कम है.

इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन (IDA) के निदेशक रस्किन हार्टली कहते हैं, "चमकदार जगमगाती रोशनियां ऊर्जा की वाहियात बर्बादी है, जिसका कुदरत पर सीधा असर होता है, यह बात समझने में अभी काफी समय लगेगा."

अमेरिका के ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक चारदीवारी के बाहर जगने वाली लाइटों से अमेरिका में हर दिन इतनी बिजली खर्च होती है जितनी साढ़े तीन करोड़ घरों को रोशन करने के लिए काफी होगी. मंत्रालय कहता है कि किसी एक पल में सिर्फ एक फीसदी कृत्रिम रोशनी लोगों तक पहुंचती है. यानी 99 फीसदी रोशनी इंसानों के किसी इस्तेमाल में नहीं आती.

हर मुद्दे पर चर्चा हो

सिर्फ न्यूयॉर्क शहर में कितनी सार्वजनिक रोशनी बर्बाद हो रही है, इसका कोई अनुमान उपलब्ध हीं है लेकिन उपग्रहों से मिलीं तस्वीरों के अध्ययन बताते हैं कि अमेरिका में पूरे यूरोप से ज्यादा बिजली बर्बाद होती है और देश में न्यूयॉर्क सबसे ज्यादा बिजली बर्बाद करने वाले शहरों में से है.

न्यूयॉर्क में पिछले 15 साल से पर्यावरण सप्ताह मनाया जा रहा है. हार्टली कहते हैं कि इस आयोजन में पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के लिए धन उपलब्ध कराने से लेकर खाद्य क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने और लाइट पॉल्यूशन घटाने जैसे मुद्दों पर और गहन चर्चा की जरूरत है. 

समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में हार्टली कहते हैं, "संकट की विशालता को देखते हुए लोग चाहते हैं कि ऐसे उपाय खोजे जाएं जिनका जल्दी असर नजर आए. और अपने आसपास देखें तो सबसे साधारण उपाय ये हो सकता है कि कैसे हम व्यवस्था में हो रही बर्बादी को रोकें."

कई समस्याएं

आईडीए का अनुमान है कि सार्वजनिक जगहों पर जलने वाली रोशनियां पूरी दुनिया में होने वाले कार्बन उत्सर्जन के कम से कम एक फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन सिर्फ यही समस्या नहीं है.

न्यूयॉर्कि सिटी ऑडबन संस्था में संरक्षण और विज्ञान निदेशक डस्टिन पैटरिज बताते हैं कि न्यूयॉर्क शहर "अटलांटिक फ्लाईवे" नामक उस रास्ते में पड़ता है जहां से हर साल करोड़ों प्रवासी पक्षियों गुजरते हैं. वह कहते हैं कि कृत्रिम रोशनियां पक्षियों को शहर की ओर आकर्षित करती हैं. इस कारण दिन वे में पक्षी इमारतों के शीशों में पेड़-पौधों की छवियां देखते हैं और दीवारों से टकरा जाते हैं. रात के वक्त वे रोशनी के कारण चमकती इमारतों की दीवारों से टकराते हैं.

पार्टरिज कहते हैं, "न्यूयॉर्क में हर साल करीब ढाई लाख पक्षी दीवारों से टकराने के कारण मारे जाते हैं." ये पक्षी ईकोसिस्टम का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. कनाडा से ये अपनी यात्राएं शुरू करते हैं और दक्षिण अमेरिका तक जाते हैं. पूरे रास्ते में ये पक्षी बीजों को बिखेरते जाते हैं.

पार्टरिज बताते हैं, "आप शाम को न्यूयॉर्क में अपनी खिड़की से बाहर देखिए. आपको जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का एक आसान उपाय नजर आएगा."

कोशिशें जारी हैं

लाइट पॉल्यूशन का असरआसमान में नजर आने वाले सितारों की संख्या पर भी पड़ता है. सितारों को निहारने में होने वाली मुश्किलों के कारण ही आईडीए की स्थापना की गयी थी.

हार्टली कहते हैं, "करोड़ों प्रकाश वर्ष की यात्रा करके हम तक पहुंचने वाली रोशनी को आखरी पल में मार दिया जाता है. वह (शहर की रोशनी में) गुम हो जाती है. समाज के लिए यह कितना बड़ा नुकसान है!"

क्यों नहीं दिखते आसमान में तारे

इस प्रदूषण के कारण मनुष्य की सेहत पर होने वाले असर के बारे में भी कुछ अध्ययन किये गये हैं. उदाहरण के लिए कुछ तरह के कैंसर के मामले बढ़ने को शरीर के 24 घंटे के चक्र में आने वाली बाधाओं से जोड़कर देखा जाता है. साथ ही, कृत्रिम रोशनी के कारण मच्छर और उनसे होने वाली बीमारियां भी बढ़ती हैं.

2021 में न्यूयॉर्क प्रशासन ने एक कानून लागू किया था जिसके तहत प्रवासी पक्षियों की यात्रा के समय सरकारी इमारतों की गैरजरूरी लाइटों को रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक बंद रखने का नियम बनाया गया था. लेकिन सरकारी इमारतें शहर की कुल इमारतों का एक छोटा सा हिस्सा हैं. इसी साल मई में एक विधेयक लाया गया है, जिसमें इस नियम को सारी इमारतों पर लागू करने का प्रस्ताव है. लेकिन फिलहाल वह प्रस्ताव लंबित है.

वीके/एए (एएफपी)

 

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