जेल पर विवाद
२३ मार्च २०१३जेल में कई बड़ी बड़ी खिड़कियां हैं, जिनसे पर्याप्त रोशनी और धूप छन कर अंदर आती है. यहां की उजली सफेद दीवारें और रंगीन फर्श इसे और खुशरंग बनाता है. पहली बार देखने में आपको पता नहीं लगता कि यह कोई जेल है जहां अपराधियों को सजा काटने के लिए रखा जाता है. जेल के चारों तरफ सिर्फ 6 मीटर ऊंची मेटल की घेराबंदी है. हां, यह घेराबंदी कंटीली जरूर है जिससे लोग इसे युवाओं का हॉस्टल समझने की गलती न करें.
नई बनी यह जेल इस्तेमाल के लिए 21 मार्च से शुरू हुई लेकिन मीडिया में इसकी सुविधाओं की चर्चा पहले से ही हो रही है. जेल में सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदार आंके स्टाइन इन सुविधाओं पर चल रही आलोचना को खारिज करते हुए कहती हैं, "यह कोई अंधा तहखाना तो है नहीं, आधुनिक जेल है."
छोटा कारावास अमानवीय
अलग रखे जाने वाले कैदियों के लिए जो कमरे हैं वे 10 वर्ग मीटर के हैं, जो कि कानूनी तौर पर निर्धारित न्यूनतम सात वर्ग मीटर से बड़े हैं. 2006 में जर्मनी की उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया था कि जेल की सेल का इससे छोटा होना अमानवीय है. साथ ही शौचालय भी अलग अलग और हवादार होने चाहिए. जर्मनी में आपराधिक मामलों और कानून के जानकार फ्रीडर डुंकेल कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं कि सात वर्ग मीटर ही मानक है. उन्होंने कहा, "न्यायालय ने जानबूझ कर इतने क्षेत्र की बात कही है क्योंकि इससे कम किसी इंसान के रहने के लिए पर्याप्त नहीं है. मानक क्षेत्र दस से बारह वर्ग मीटर है. जिसका मतलब है कि बर्लिन की नई जेल के ये कमरे औसत माप के हैं."
इस तरह के मानक कहीं लिखे हुए नहीं हैं. जर्मनी में हर प्रांत का कानूनी तंत्र इन बातों का फैसला खुद लेता है. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेश्नल लॉ की रीटा हावरकम्प ने बताया, "बवेरिया की जेल और बर्लिन की जेल एक दूसरे से बहुत अलग हैं. जैसे बर्लिन की जेल में फोन लगे हैं जिन्हें कैदी पैसे डालकर इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि बवेरिया में कैदी केवल खास परिस्थितियों में ही कॉल कर सकते हैं."
सुधार या समाज की सुरक्षा
हावरकम्प कहती हैं कि बवेरिया में ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि अपराधों की रोकथाम कैसे की जाए. सुरक्षा का मामला वहां ज्यादा महत्वपूर्ण है. कैदियों को सामाजिक वातावरण देने से ज्यादा उनका मकसद समाज से उन्हें दूर रखना है. आलोचक इसे आधुनिक कानून व्यवस्था के खिलाफ मानते हैं. हालांकि यह विवादास्पद मुद्दा है. डुंकेल ने डॉयचे वेले को बताया, " व्यवस्था को एक समान और अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर बनाने के लिए जर्मनी में दस प्रांतों ने मिलकर मसौदा प्रस्तावित किया हुआ है. ज्यादातर जेल कैदियों को फिर से समाज में जोड़ने और सुधार की बात पर जोर देते हैं. लोगों से अपराधियों को दूर रखना बड़ा मकसद नहीं है, वह तो सजा की अवधि से ही हासिल हो जाता है."
उत्तरी यूरोपीय उदाहरण
उत्तरी यूरोपीय देशों में आधुनिक जेलों के उदाहरण मिलते हैं. इनके मानक अंतरराष्ट्रीय कानून व्यवस्था के आधार पर तय किए गए हैं. डुंकेल ने बताया कि मुख्य मानकों की संरचना संवैधानिक अदालत ने दिशा निर्देश के रूप में की थी. यानि हर प्रांत के पास उसे अपने ढंग से समझने की बहुत गुंजाइश है. इसमें यह भी तय किया गया है कि खाली समय कैसे बिताया जाएगा, आगे की पढ़ाई चालू रखने और कारीगरी सीखने जैसी बातों के अलावा बाहरी दुनिया से संपर्क रखने की सहूलियत की बात भी की गई है. इसका नतीजा यह हुआ कि अलग अलग प्रांतों में कानून व्यवस्था भी अलग है. हावरकम्प मानती हैं कि जर्मनी में कानून व्यवस्था काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर है.
डुंकेल के अनुसार बर्लिन की जेल पर चल रही नुक्ताचीनी बेबुनियाद है. वह कहते हैं कि वहां कारावास फिर भी जर्मनी के दूसरे कई प्रांतों से छोटे बनाए गए हैं. उनका कहना है, "ऐसा नहीं है कि सजा का मतलब है कैदियों को छोटे अंधेरे कमरे में रखना और उनके साथ हर संभव अमानवीय बर्ताव करना. उनके साथ ऐसा बर्ताव होना चाहिए कि वे नया साफ सुथरा जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित हों."
रिपोर्ट: वुल्फ विल्डे/एसएफ
संपादन: महेश झा