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वायरल वीडियो वाले एमएलए पर ही एफआईआर

समीरात्मज मिश्र
२७ जून २०२२

सोशल मीडिया पर यूपी के एक विधायक का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह इंजीनियरिंग कॉलेज की दीवार को धक्का देते हैं और वह गिर जाती है. निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले विधायक के खिलाफ ही अब एफआईआर हो गई है.

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Indien | Samajwadi Party | RK Verma
आरके वर्मा की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा हैतस्वीर: Manoj Mishra

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में समाजवादी पार्टी के विधायक डॉक्टर आरके वर्मा अपने क्षेत्र रानीगंज में बन रहे सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज का निरीक्षण करने पहुंचे थे. उन्हें शिकायत मिली थी कि निर्माण कार्य में खराब गुणवत्ता वाली चीजों का उपयोग हो रहा है. विधायक ने देखा तो यह शिकायत सही निकली. नवनिर्मित दीवार को जब उन्होंने छूकर देखा तो वो हिलने लगी और थोड़ा धक्का दिया तो भरभराकर गिर गई.

विधायक का यह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने लगा लेकिन कुछ ही देर बाद इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण करा रही कंपनी की ओर से विधायक आरके वर्मा और उनके भाई समेत छह लोगों के खिलाफ नामजद और पचास अज्ञात लोगों के खिलाफ कंधई थाने में एफआईआर दर्ज करा दी गई.

यह एफआईआर अमरोन्ट्रास इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर इरशाद अहमद की शिकायत पर दर्ज कराई गई है जिसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने समेत कई आरोप लगाए गए हैं.

मेरा क्षेत्र, मेरी जिम्मेदारी...

मुकदमा दर्ज होने के बाद विधायक आरके वर्मा का कहना था कि वह इलाके के जनप्रतिनिधि हैं और यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि विकास कार्यों का निरीक्षण करें. डीडब्ल्यू से बातचीत में विधायक आरके वर्मा ने कहा, "करीब पांच साल से यह कॉलेज बन रहा है और निर्माण कार्य में लगातार शिकायतें मिल रही हैं. यह मेरा दायित्व है कि देखूं कि मेरे इलाके में जो भी सरकारी निर्माण हो रहा है, उसमें जनता के पैसों का सदुपयोग हो रहा है या नहीं."

उन्होंने कहा, "इस भवन में इस्तेमाल हो रहे सामान को जांच के लिए भेजा गया है. रिपोर्ट आने के बाद मैं सड़क से सदन तक इसकी लड़ाई लड़ूंगा. सभी लोगों ने देखा है कि मैंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है या फिर निर्माण करने वाले लोग सरकार के पैसों का दुरुपयोग कर रहे थे.”

वहीं अमरोन्ट्रास कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर इरशाद अहमद का आरोप है कि विधायक अपने दर्जनों साथियों के साथ वहां आए और उन्होंने वहां काम कर रहे कर्मचारियों के साथ गाली-गलौच की. इरशाद अहमद का कहना था, "पहले विधायक और उनके सात-आठ साथियों ने दीवार को हिलाया और फिर अकेले विधायक ने उसे धक्का देकर वीडियो बनवा लिया. दीवार की चिनाई उसी दिन हुई थी और वो गिर गई.”

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आरके वर्मा का आरोप है कि निर्माण में धांधली हो रही हैतस्वीर: Manoj Mishra

होगी जांच

इरशाद अहमद यह आरोप भले ही लगा रहे हों लेकिन घटनास्थल पर मौजूद पत्रकारों ने भी वहां कई वीडियो बनाए और दीवार की चिनाई में लगी सामग्री साफ दिख रही है कि उसमें सीमेंट की बजाय बालू की मात्रा कहीं ज्यादा है.

घटनास्थल पर मौजूद एक पत्रकार मनोज मिश्र का कहना था कि दीवार भले ही उसी दिन बनी थी लेकिन यदि उसमें अच्छी सामग्री लगी होती तो इतने हल्के धक्के से न गिर जाती. इस बारे में ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के अधिकारियों का कहना है कि निर्माण कार्यों में इस्तेमाल हो रही सामग्री के नमूनों को जांच के लिए भेजा गया है, रिपोर्ट आने पर जो भी दोषी होंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

विधायक आरके वर्मा ने आरोप लगाया है कि इंजीनियरिंग कॉलेज के नाम पर घटिया सामग्री का उपयोग तो हो ही रहा है छात्रों के भविष्य और जीवन से भी खिलवाड़ किया जा रहा है. उनका कहना था, "ऐसे घटिया निर्माण कार्य से सरकार युवाओं का भविष्य नहीं, बल्कि उनकी मौत का इंतजाम हो रहा है. भ्रष्ट तंत्र का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है.”

सूचना देने वालों पर हमले

उत्तर प्रदेश में सरकार यूं तो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करती है लेकिन ऐसे कई मौके आए हैं जब भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले ही कठघरे में खड़े कर दिए जाते हैं और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके उन्हें जेल तक भेज दिया जाता है. कई बार पत्रकारों को भी इस व्यवस्था का शिकार होना पड़ा है.

इसी साल अप्रैल में बोर्ड परीक्षा के पेपर लीक होने संबंधी खबर छापने के मामले में तीन पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. कई दिनों बाद जमानत मिलने पर ये लोग जेल से छूटे. हालांकि बाद में उन अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई, जिनकी पेपर लीक कराने में भूमिका संदिग्ध थी या फिर पेपर को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी. इनमें से दो अभियुक्तों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका भी लगाई गई लेकिन अखबार में पेपर लीक की खबर छापना कैसे अपराध हो गया, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था.

कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2017 में यूपी में योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद उनके पांच साल के कार्यकाल के दौरान राज्‍य भर में 48 पत्रकारों पर शारीरिक हमले हुए, 66 के खिलाफ केस दर्ज हुए और उनकी गिरफ्तारी हुई. कोविड महामारी के दौरान भी कई पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किए गए.

रेत माफिया और खनन माफिया के खिलाफ खबर लिखने वाले कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आए दिन धमकियां मिलती रहती हैं, उनके खिलाफ न सिर्फ माफिया की ओर से केस दर्ज कराए जाते हैं बल्कि कई बार सरकारी अफसरों की ओर से भी केस दर्ज किए जाते हैं. उन्नाव में शुभम मणि त्रिपाठी की खनन माफिया के खिलाफ खबरें लिखऩे के कारण हत्या कर दी गई जबकि प्रतापगढ़ में पत्रकार सौरभ श्रीवास्तव की शराब माफिया के खिलाफ खबर लिखने के कारण हत्या कर दी गई थी. इन दोनों लोगों ने अपनी हत्या की आशंका पहले ही जताई थी.

कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट कहती है कि पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन की ओर से किए गए हैं. ये हमले कानूनी नोटिस, एफआईआर, गिरफ्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं. सबसे ज्यादा मामले पुलिस उत्पीड़न के सामने आए हैं और यह सिलसिला 2022 में भी जारी हैं.

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