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भारत के लिए अहम फिजी चुनावों के नतीजे

१५ दिसम्बर २०२२

फिजी की सत्ताधारी फिजी फर्स्ट पार्टी आम चुनाव में विजय की ओर बढ़ रही है.

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Fidschi Parlamentswahlen in Suva
तस्वीर: REUTERS

16 साल पहले तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज होने वाले फ्रैंक बेनीमारामा एक बार फिर फिजी के प्रधानमंत्री बनने के करीब हैं. लोकतांत्रिक चुनावों में उनकी यह तीसरी लगातार जीत होगी. 2013 में संविधान में बदलाव किया गया था जिसके बाद देश के मूल निवासियों और आप्रवासी भारतीय मूल के लोगों के मतों के बीच का अंतर खत्म कर दिया गया था. तब से बेनीमारामा लगातार चुनाव जीत रहे हैं.

वैसे बेनीमारामा को इस बार सीतिवेनी राबुका से कड़ी टक्कर मिल रही है. पीपल्स अलायंस पार्टी के राबुका भी एक बार तख्तापलट कर  प्रधानमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने फिजी की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी नेशनल फेडरेशन पार्टी से गठजोड़ किया था.

फिजी फर्स्ट की बढ़त

बुधवार को फिजी फर्स्ट पार्टी 45.88 प्रतिशत मतों के साथ सबसे आगे चल रही है जबकि पीपल्स अलायंस पार्टी 32.66 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है. नेशनल फेडरेशन पार्टी को 9.29 फीसदी मत मिले हैं जबकि 2017 में से 1238 मतदान केंद्रों पर ही गिनती पूरी हुई है. फिजी में अनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था है, जिसके आधार पर बेनीमारामा 31.4 प्रतिशत मतों से आगे चल रहे हैं जबकि राबुका को 16.34 प्रतिशत मत मिले हैं. पूरे नतीजे तो रविवार तक ही मिल पाएंगे.

इस बार फिजी में 60 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ है जो एक दशक में सबसे कम है. चुनावों की निगरानी के लिए 90 चुनाव पर्यवेक्षक फिजी में मौजूद रहे. इन पर्यवेक्षकों का नेतृत्व भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के अधिकारी कर रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने कहा, "फिजी में चुनाव शांतिपूर्ण और कानून सम्मत" हुए हैं. हालांकि विपक्षी दलों ने धांधली के आरोप लगाए हैं.

भारत के लिए फिजी की अहमियत

फिजी के चुनावों के नतीजे भारत के लिए अहमयित रखते हैं क्योंकि वहां की कुल नौ लाख की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतीय मूल के उन लोगों का है जो 19वीं सदी के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारत से खेती कराने के लिए ले जाए गए थे.

देश की करीब 56 प्रतिशत आबादी वहां की मूल निवासी है जबकि लगभग 37 फीसदी भारतीय मूल के लोग हैं. 1970 में फिजी को आजादी मिलने से पहले 1948 से ही वहां एक भारतीय कमिश्नर रहता था जो भारतीय मूल के लोगों के हितों का ख्याल करता था. आजादी के बाद यह जिम्मेदारी भारतीय उच्चायोग को दे दी गई.

1999 में भारतीय मूल के महेंद्र चौधरी फिजी के प्रधानमंत्री बने थे. साल 2000 में बेनीमारामा ने उनकी सरकार का तख्तापलट दिया और खुद प्रधानमंत्री बन गए. उसके बाद से फिजी की राजनीति में भारतीय मूल के लोगों की प्रतिभागिता और प्रभाव लगातार घटता गया है. 2006 में बेनीमारामा ने एक बार फिर तख्तापलट किया और सत्ता संभाल ली.

वैसे बेनीमारामा के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के संबंधों में सुधार हुआ है. बेनीमारामा कई बार भारत की यात्रा कर चुके हैं. भारत ने बाढ़ और कोविड महामारी के दौरान भी फिजी को काफी मदद पहुंचाई. इसके अलावा चुनाव में भी भारत ने फिजी की मदद की है. उसने फिजी के चुनाव आयोग को स्याही की 5,500 बोतल और चार गाड़ियां दी थीं.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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