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यूरोप का जबरन श्रम से बने सामान पर बैन एशिया के लिए चुनौती

डेविड हट
७ अप्रैल २०२३

यूरोपीयन यूनियन का प्रस्तावित कानून दक्षिणपूर्व एशिया में घबराहट पैदा कर रहा है जहां स्थानीय व्यवसाय, पर्यावरण और स्थायित्व पर यूरोपियन यूनियन के नियमों के हिसाब से खुद को ढालने के लिए काम कर रहे हैं.

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मजदूर
कंबोडिया की एक फैक्ट्री में कपडा मजदूरतस्वीर: Wu Changwei/Xinhua/picture alliance

पिछले साल सितंबर में यूरोपियन कमीशन ने एक कानून का प्रस्ताव रखा जिसके तहत उन सामानों पर प्रतिबंध लग जाएगा जिन्हें बनाने में जबरन श्रम यानी फोर्स्ड लेबर का इस्तेमाल हुआ हो.

यह एक जटिल कदम है और कुछ लोगों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है जबकि कुछ लोग इसे नौकरशाही के एक और कठोर फैसले के रूप में देखते हैं जिन्हें विदेशी कंपनियों को पर्यावरण और स्थायित्व संबंधी यूरोपियन यूनियन के तमाम नियमों के दायरे में मानना पड़ता है.

दुनिया भर में करीब 2 करोड़ 80 लाख लोग जबरन श्रम वाली स्थितियों में काम कर रहे हैं और इनमें आधे से ज्यादातर लोग एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ही रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 की तुलना में जबरन श्रम में लगे लोगों की संख्या दस गुना ज्यादा बढ़ गई.

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पिछले साल जब यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों ने पहली बार इस कानून का प्रस्ताव रखा, तो ऐसे आरोप लगे कि यूरोपियन यूनियन का लक्ष्य चीन के शिनजियांग क्षेत्र से होने वाले सामानों के आयात को प्रतिबंधित करना है.

वहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सालों से उइगुर मुसलमानों पर अत्याचार कर रही है. इस क्षेत्र के कपास खेतों, खानों और कपड़ा फैक्ट्रियों में आधुनिक दासता से संबंधित भी कई रिपोर्ट्स आई हैं.

क्या यह सब चीन के लिए है?

यूरोपियन यूनियन के इस कानून के प्रस्ताव से तीन महीने पहले यूरोपियन पार्लियामेंट ने शिनजियांग इलाके में मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों से निपटने के लिए ऐसे ही कानूनों की मांग की थी.

अमरीकी सरकार ने शिनजियांग क्षेत्र में चीनी अधिकारियों की कार्रवाइयों को ‘नरसंहार' माना है और डच संसद ने भी इन कार्रवाइयों के लिए इसी शब्द को सही ठहराया है. साल 2021 में अमेरिका ने एक

कानून बनाया जो शिनजियांग क्षेत्र से आयात होने वाले ज्यादातर उत्पादों को प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करता है.

पिछले साल अगस्त में, गुलामी या दासता के समसामयिक रूपों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत तोमोया ओबोकाटा ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की.

बार बार बेचा गया और नोंचा गया

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि "यह निष्कर्ष निकालना उचित है कि शिनजियांग उइगुर ऑटोनोमस रीजन ऑफ चाइना में कृषि और निर्माण क्षेत्र में लगे उइगुर, कजाक और अल्पसंख्यक जातियों से जबरन श्रम कराया जा रहा है.”

हालांकि ब्रसेल्स ने उन सामानों पर व्यापक प्रतिबंध लगाने का विकल्प चुना है जिन्हें बनाने में जबरन श्रम का इस्तेमाल हुआ हो क्योंकि चीन के खिलाफ विशेष कानून चीन को नाराज कर सकता है, और यूरोपियन यूनियन के कई सदस्य चीन से बेहतर संबंध बनाए रखना चाहते हैं.

विश्लेषकों का ये भी कहना है कि चीन को लक्ष्य करके प्रतिबंध लगाना विश्व व्यापार संगठन के भेदभावरहित कानूनों का भी उल्लंघन कर सकता है.

लेकिन इस प्रस्तावित कानून के समर्थकों ने इस बात पर जोर दिया है कि यह इरादतन सार्वभौमिक प्रकृति का है और यूरोपियन यूनियन अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र का एजेंडा 2030, साल 2030 तक दुनिया भर से जबरन श्रम को खत्म कराने को प्रतिबद्ध है.

हेनरिक हान, जर्मनी में ग्रीन पार्टी की सांसद हैं और यूरोपियन पार्लियामेंट के चाइना डेलीगेशन के सदस्य हैं. वो कहते हैं कि यूरोपियन यूनियन जबरन श्रम को खुद से परिभाषित करने की बजाय उसकी अंतरराष्ट्रीय मान्य परिभाषा का उपयोग करेगा जिसे संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने तय किया है.

नए नियम से कॉर्पोरेट सेक्टर परेशान

वो कहती हैं, "इसके अनुसार, यह कानून विशेष रूप से किसी एक क्षेत्र पर केंद्रित नहीं है, बल्कि पूरे दक्षिणपूर्व एशिया और विश्व स्तर पर कॉर्पोरेट या राज्य-संचालित जबरन श्रम पर लागू होता है.”

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बहरहाल, इस कदम से दक्षिणपूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में काफी भय है जहां स्थानीय व्यवसायों को पहले से ही यूरोपियन यूनियन के कई नियमों का पालन करना पड़ रहा है.

वनों की कटाई और टिकाऊ उत्पादों पर यूरोपियन यूनियन के आने वाले कानून ने दुनिया में पाम ऑयल के दो सबसे बड़े उत्पादकों मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. यूरोपियन यूनियन इन दोनों देशों के उत्पादों को 2030 तक खत्म करना चाहता है.

दक्षिणपूर्व एशिया में यूरोपियन व्यापार का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ईयू-आसियान बिजनेस काउन्सिल के कार्यकारी निदेशक क्रिस हम्फ्रे कहते हैं, "दक्षिणपूर्व एशिया के देश यूरोपियन यूनियन के इस तरह के कदमों को कुछ हद तक चिंता के साथ देख रहे हैं.”

आयातित सामान को बनाने में जबरन श्रम का इस्तेमाल हुआ है या नहीं, इसकी जांच करने और इसे तय करने की जिम्मेदारी यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों पर होगी, इसलिए बहुत संभव है कि स्थानीय व्यवसायियों पर इन लोगों का अपनी सप्लाई चेन के बारे में विस्तृत विवरण देने का दबाव पड़े.

दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से यूरोपियन यूनियन के देशों में निर्यात होने वाले ज्यादातर सामानों को बनाने में जो कच्चा माल इस्तेमाल होता है वो अन्य जगहों से आता है या फिर उन्हें दूसरी कंपनियां बनाती हैं.

उदाहरण के लिए, कंबोडिया ने पिछले साल करीब 4.3 बिलियन यूरो के सामान का निर्यात यूरोपियन यूनियन के देशों को किया जिनमें ज्यादातर कपड़े और जूते थे. ये आंकड़े सरकारी हैं. लेकिन कंबोडिया के कपड़ा फैक्ट्रियों में बनने वाले सामान का ज्यादातर कच्चा माल चीन से आता है जहां सोर्सिंग की जानकारी स्पष्ट नहीं होती.

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विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर छोटी कंपनियों के लिए पूरी सप्लाई चेन की जांच करना संभव नहीं होगा. हम्फ्रे कहते हैं, "इस मामले में संचार व्यवस्था और क्षमता निर्माण सहायता को बढ़ाने की जरूरत है और यह भी कि इस तरह की पहल आसियान क्षेत्र से चल रहे व्यवसायों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं.”

यूरोपियन अधिकारियों का कहना है कि इन सब पर बातचीत चल रही है. डीडब्ल्यू से बातचीत में आसियान में यूरोपियन यूनियन के राजदूत इगोर ड्रीसमैन्स कहते हैं, "इन प्रस्तावों पर हमने दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के अपने सहयोगियों से कई दौर की वार्ताएं की हैं और आने वाले दिनों में ये बातचीत अभी जारी रहेगी.”

वो आगे कहते हैं, "हम प्रमुख व्यापारिक भागीदार हैं और आजीविका को सुधारने में अपनी रुचि को साझा करते हैं, मानवाधिकार के संरक्षण और उनके उल्लंघनों को रोकने में जरूरी रेग्युलेटर फ्रेमवर्क बनाकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं ताकि अपने व्यापार को टिकाऊ, पर्यावरण अनुकूल और मानवीय तरीके से चला सकें. हमारे हाल के प्रस्ताव सिर्फ इन्हीं सब उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं.”

ज्यादा दूर नहीं

प्रेक्षकों को उम्मीद है कि यूरोपियन कमीशन अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले महत्वपूर्ण बदलाव कर सकता है. ड्राफ्ट रिपोर्ट इस साल के अंत तक प्रकाशित होनी है. कानून बनने में अभी भी कई साल लग सकते हैं.

तीन मार्च को आंतरिक बाजार और उपभोक्ता संरक्षण पर यूरोपियन पार्लियामेंट की कमेटी ने कई संशोधनों का प्रस्ताव रखा जिनमें जबरन श्रम से प्रभावित श्रमिकों के उपचार के संभावित रूपों से संबंधित संशोधन भी शामिल हैं.

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित ला ट्रोबे यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर सैली यी आधुनिक समय की दासता और मानव तस्करी पर काम कर रही हैं. उनका कहना है कि कानून के सफल होने के लिए जरूरी है कि पूरे क्षेत्र में सप्लाई चेन्स की जांच के लिए भारी मात्रा में संसाधन हों.

यी कहती हैं, "जबरन श्रम पर कई अन्य मांग-पक्ष की प्रतिक्रियाओं की तरह, आयात पर प्रतिबंध भी इस क्षेत्र में जबरन श्रम के मूलभूत कारणों को हल करने में असफल रहा जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विस्थापन और संघर्ष को नहीं दूर कर सका.”

हान इस बात का उल्लेख करती हैं कि प्रस्तावित कानून यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के अधिकारियों को यह शक्ति नहीं देगा कि वो उन सामानों को अपने यहां रख सकें जो बिना इस बात को साबित किए यूरोपियन यूनियन में प्रवेश कर रहे हैं कि उनके निर्माण में जबरन श्रम का इस्तेमाल नहीं हुआ है.

इसके बजाय, प्रस्तावित सिस्टम "पूर्व प्रभावी” है और प्रमाण की जांच का काम सदस्य देशों के अधिकारियों या फिर नागरिक संगठनों पर थोपा जा सकता है. वो कहती हैं, "अभी भी सिस्टम में बहुत सी खामियां हैं जिन पर हमें काम करना है.”

रिपोर्ट: डेविड हट