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देश की सुरक्षा के लिए कितनी अहम है अनिवार्य सैन्य सेवा?

पीटर हिले
२१ जुलाई २०२४

यूरोप के अधिकांश देशों ने अनिवार्य सैन्य सेवा समाप्त कर दी थी. अब रूस से युद्ध के खतरे को देखते हुए कुछ देश इसे फिर से लागू करना चाहते हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे देश की सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है?

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मई 2024 में एक सैन्य अभ्यास के दौरान 24 घंटे की मार्च के बाद सावधान की मुद्रा में खड़े लातविया के कैडेट्स.
लातविया और एस्टोनिया के राष्ट्रपतियों ने नाटो के अपने यूरोपीय सहयोगियों से भी सैन्य सेवा अनिवार्य करने की अपील की. यूक्रेन में छिड़े युद्ध के बाद नाटो के पूर्वी छोर पर बसे बाल्टिक देश एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया पर रूस की तरफ से खतरा बढ़ने की आशंका जताई जाती रही है. तस्वीर: Ēriks Kukutis/Verteidigungsministerium Lettland

जर्मनी सहित कई यूरोपीय सेनाएं मौजूदा समय में पर्याप्त सैनिकों की भर्ती के लिए संघर्ष कर रही हैं. ऐसे में जरूरत पड़ने पर सैनिकों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करने के लिए यूरोप के कई देश अनिवार्य सैन्य सेवा या सक्षम युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देने के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. बीते सालों में कई देशों ने तो अनिवार्य सैन्य फिर से शुरू कर दी गई है.

लातविया में 2024 से एक बार फिर अनिवार्य सैन्य सेवा लागू हो गई है. अगर 11 महीने की सेवा के लिए लोग खुद से आगे नहीं आते हैं, तो सेना में युवा पुरुषों की भर्ती की जाएगी.

पड़ोसी देश लिथुआनिया ने 2015 में फिर से अनिवार्य सैन्य सेवा शुरू की. रूस ने जब क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया, उसके बाद स्वीडन ने 2017 में अपने यहां दोबारा अनिवार्य सैन्य सेवा बहाल कर दी. वहीं, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश भी इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या उन्हें भी ऐसा करना चाहिए.

जर्मनी में सेना की ताकत बढ़ाने के लिए नई सैन्य सेवा लाने की तैयारी

जर्मन सेना बुंडेसवेयर में बुनियादी प्रशिक्षण के दौरान एमजी3 मशीन गन के साथ अभ्यास करते सैनिक.
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद यूरोप में सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं गहरी हुई हैं. इसी क्रम में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस एक मजबूत बुंडेसवेयर (जर्मन सेना) की अनिवार्यता रेखांकित करते रहे हैं. तस्वीर: Thomas Koehler/photothek/picture alliance

वॉशिंगटन डीसी में 'कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' से जुड़ी सोफिया बेस्च कहती हैं, "अनिवार्य सैन्य सेवा का वादा वाकई में काफी शक्तिशाली है. इससे सेना को ऐसी रिजर्व फौज तैयार करने में मदद मिल सकती है, जो युद्ध के समय काम आ सकती है."

फ्रांसीसी क्रांति के दौरान सेना को ताकतवर बनाने के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा की शुरुआत की गई थी. शीत युद्ध खत्म होने के बाद यूरोप में यह गैर-जरूरी लगने लगा. हालांकि, अब यूक्रेन युद्ध के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. बेस्च ने डीडब्ल्यू को बताया कि यूरोपीय देशों को अब रूस के साथ युद्ध का डर सताने लगा है और वे इसके लिए तैयार रहना चाहते हैं.

युद्ध की तैयारी

बेस्च कहती हैं, "लंबे समय से यह तर्क दिया जाता रहा है कि हमें अधिक तकनीक, अधिक सुसज्जित, संख्या में कम और पेशेवर सेना की जरूरत है. जबकि, मुझे लगता है कि हमें दोनों की जरूरत है. हमें अत्यधिक सुसज्जित सेना की जरूरत है. युद्ध के मैदान में तकनीक की भी जरूरत है. साथ ही, हमें ज्यादा सैनिक भी चाहिए. रूस-यूक्रेन युद्ध में यह बात साफ तौर पर देखने को मिल रही है."

यूक्रेन के खिलाफ रूस का हमला एक विनाशकारी युद्ध बन चुका है. कई हजार सैनिक पहले ही मारे जा चुके हैं और रूस अभी भी नए सैनिकों को मोर्चे पर भेज रहा है. उनमें से कुछ को लगभग कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. इससे पता चलता है कि ड्रोन और सुपरसोनिक मिसाइलों के इस्तेमाल के बावजूद, मौजूदा समय में भी युद्ध के लिए ज्यादा से ज्यादा सैनिकों की जरूरत है.

अनिवार्य सैन्य सेवा पर जर्मनी की ऊहापोह

जर्मन सेना की 45वीं टैंक ब्रिगेड के अडवांस्ड कमांड के सैनिकों से बात करते रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस.
जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने 12 जून को सैन्य सेवा से जुड़ी योजना पेश की. इसका स्वरूप अनिवार्य नहीं, ऐच्छिक होगा. तस्वीर: Lisi Niesner/REUTERS

बोवे, इटली की नौसेना में अधिकारी हैं. नेवी में काम करते हुए उन्होंने यह सीखा है कि युद्ध के समय किस तरह पनडुब्बियों की मदद से लड़ाई की जाती है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर आप मौजूदा दौर में होने वाले युद्ध के बारे में सोचते हैं, तो आपके पास उच्च तकनीक वाले हथियारों के साथ-साथ ऐसे सैनिक भी होने चाहिए, जो उन हथियारों को चला सकें."

बोवे का मानना है कि अनिवार्य सैन्य सेवा के तहत कम-से-कम एक साल तक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. वह कहते हैं, "मेरा मानना है कि तीन महीने, छह महीने या नौ महीने की प्रशिक्षण अवधि में सशस्त्र बलों के हिसाब से किसी व्यक्ति को पर्याप्त बुनियादी कौशल और ज्ञान नहीं दिया जा सकता." सामान्य शब्दों में कहें तो तीन महीने, छह महीने या नौ महीने में किसी व्यक्ति को युद्ध में लड़ने लायक सैनिक बनाना मुश्किल है.

बोवे का कहना है कि प्रशिक्षण और अनुभव की कमी से भी ज्यादा गंभीर एक अन्य समस्या है. वह ध्यान दिलाते हैं, "अगर आप युवाओं की इच्छा के विरुद्ध उन्हें सशस्त्र बलों में सेवा देने के लिए मजबूर कर रहे हैं, तो जाहिर है कि उनमें प्रेरणा की कमी होगी. इससे वे न तो बेहतर तरीके से प्रशिक्षण ले पाएंगे और न ही उनमें लड़ने का अनुभव होगा."

सिर्फ ऐसे सैनिक ही अपनी जान जोखिम में डालने के लिए तैयार होते हैं, जिनके अंदर अपने देश के लिए लड़ने की प्रेरणा होती है. ऐसे सैनिक ही युद्ध जिताने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. बोवे आगे कहते हैं, "मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आप यह कैसे पक्का करेंगे कि जिन लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध सेना में शामिल किया जाएगा, वे लोग अंततः हथियारों का इस्तेमाल करेंगे और युद्ध के मैदान में लड़कर जीत हासिल करेंगे."

बोवे ने रूस की सेना में बड़ी संख्या में जबरन भर्ती किए गए ऐसे लोगों का हवाला दिया, जो मारे गए. उन्होंने ऐसे कई सर्वेक्षणों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिनमें दिखाया गया है कि कई युवा हमला होने की स्थिति में भी अपने देश की रक्षा के लिए हथियार नहीं उठाना चाहते.

'मल्टीनेशनल इंटिग्रेटेड स्टेबलाइजेशन मिशन इन माली' नाम की शांति सेना में योगदान देकर लौटे जर्मन सैनिकों की आखिरी टुकड़ी से बात करते रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस.
शीत युद्ध के दौरान 1956 में जर्मनी ने पुरुषों के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा का प्रावधान लागू किया था. 55 साल बाद 2011 में इसे खत्म कर दिया गया. अब रूस की बढ़ती आक्रामकता और यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर जर्मन सेना बुंडेसवेयर का आकार बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है.तस्वीर: Lisi Niesner/REUTERS

राजनीति और कारोबार पर असर

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, अनिवार्य सैन्य सेवा को फिर से लागू करने पर जर्मनी को हर साल करीब 76 बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ सकता है. अनिवार्य सैन्य सेवा के तहत सिर्फ सैन्य प्रशिक्षक, बैरक और वर्दी पर ही खर्च नहीं होता, बल्कि जब युवा लोग काम करने के बजाय सेना में सेवा देते हैं, तो इससे अर्थव्यवस्था भी कमजोर होती है.

बोवे ने कहा, "जब आप अनिवार्य सैन्य सेवा के बारे में सोचते हैं, तो इसकी बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. आर्थिक लागतों के अलावा, राजनीतिक कीमत भी चुकानी होती है. जिन लोगों को सैन्य सेवा के लिए मजबूर किया जाता है, वे वर्षों बाद संस्थाओं के प्रति कम विश्वास दिखाते हैं." बोवे और उनके सहयोगियों ने एक वैज्ञानिक अध्ययन में इसका विश्लेषण किया है. उन्हें डर है कि अनिवार्य सैन्य सेवा लागू होने से लंबे समय में यूरोप में लोकतंत्र कमजोर हो सकता है.

बोवे स्वीडन के मॉडल की प्रशंसा करते हैं. वहां इसे स्वैच्छिक रखा गया है, यानी जो लोग इच्छुक हैं वे सैन्य सेवा में शामिल हो सकते हैं. इसके लिए इच्छुक व्यक्ति को कई तरह के परीक्षणों पर खरा उतरना पड़ता है. इस तरह भर्ती होने वाले लोगों की संख्या कम होती है, लेकिन समय के साथ ऐसे रिजर्व और प्रशिक्षित सैनिकों की संख्या काफी बढ़ जाती है, जो जरूरत के समय काम आ सकते हैं.

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यूरोप अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित

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कार्नेगी फाउंडेशन की सोफिया बेस्च को भी चिंता है कि अनिवार्य सैन्य सेवा से यूरोप में चरमपंथी दलों की लोकप्रियता बढ़ सकती है. वह कहती हैं, "अगर देश में विरोध के बावजूद भी राजनेता अनिवार्य सैन्य सेवा को लागू करते हैं, तो इस बात की ज्यादा आशंका है कि बहुत से लोग सिर्फ इस मामले को मुद्दा बनाकर वोट करने लगेंगे. खासकर वे लोग, जिन्हें सेना में भर्ती होना पड़ेगा या जिनके बच्चों को सेना में भर्ती किया जाएगा."

बेस्च आगे कहती हैं, "अनिवार्य सैन्य सेवा को लागू करने के बारे में सोच रहे देशों को फिनलैंड से सीखना चाहिए. वहां अनिवार्य सैन्य सेवा की लंबी परंपरा रही है. फिनलैंड 2023 में नाटो में शामिल हुआ है. तब तक यह अपनी सेना के दम पर अपने देश की रक्षा कर रहा था. उन्हें काफी मजबूत सैन्य रिजर्व बनाना पड़ा और उन्होंने अनिवार्य सैन्य सेवा की मदद से ऐसा किया."

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फिनलैंड की ज्यादा-से-ज्यादा जनता अपनी इच्छा से सैन्य सेवा करना और उसके बाद रिजर्व बटालियन में शामिल होना चाहती है. बेस्च के मुताबिक, "प्रेरणा सबसे ज्यादा जरूरी है. आपको सैन्य सेवा करने की इच्छा पैदा करनी होगी और उद्देश्य बताना होगा. आपको यह बताना होगा कि आपके पास कुछ ऐसा है, जिसके लिए लड़ाई लड़ी जा सकती है. आप युवाओं से सीधे नहीं कह सकते कि वे अपने देश के लिए लड़ें और शायद मर जाएं. आप इसे जबरन नहीं थोप सकते."

विशेषज्ञों की बातों से यह पता चलता है कि जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों में अनिवार्य सैन्य सेवा को फिर से लागू करने से पहले संभवतः लंबी बहस होगी.