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आपदा में जान तो बच जा रही है लेकिन संपत्ति नहीं

२४ मई २०२३

प्राकृतिक आपदाओं में अब लोगों की मौत कम हो रही है. इसका श्रेय अर्ली वार्निंग सिस्टमों को जाता है. हालांकि अब इन आपदाओं में आर्थिक नुकसान पहले की तुलना में बहुत ज्यादा हो रहा है.

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अर्ली वार्निंग सिस्टम की मदद से लोगों की जान बचाने में सफलता मिल रही है
मोचा तूफान में म्यांमार में सड़क किनारे शेल्टर में बचने की कोशिश करते बच्चेतस्वीर: AP/picture alliance

मई की शुरुआत में जब मोचा चक्रवात ने बंगाल की खाड़ी में सिर उठाया तो वर्ल्ड मेटेओरलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन यानी डब्ल्यूएमओ ने "बहुत खतरनाक" आंधी की चेतावनी दी जिसका दुनिया के सबसे गरीब लाखों लोगों पर "भारी असर" हो सकता था. बांग्लादेश और म्यांमार के अधिकारियों और राहत एजेंसियों ने तटवर्ती इलाकों से 4,00,000 लोगों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया. इनमें बड़ी संख्या उन रोहिंग्या लोगों की थी जो सेना की कार्रवाई के बाद बेघर हो गये हैं और तटवर्ती इलाकों में शिविरों में रह रहे हैं.

प्राकृतिक आपदाओं में एक साल में 1997 लोगों की मौत

मौत कम हुई नुकसान बढ़ा

तेजी से गर्म होती धरती पर एक और ताकतवर चक्रवात की खबर ने बहुत से लोगों को हैरान किया लेकिन आपदाओं के विशेषज्ञ इनमें तुलनात्मक रूप से कम लोगों के मौत की ओर ध्यान दिला रहे हैं. इस चक्रवात से म्यांमार में कुछ सौ लोगों की मौत का अंदाजा है जबकि बांग्लादेश में कोई मौत नहीं हुई.

डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास का कहना है कि तूफान की वजह से दोनों देशों में भारी नुकसान हुआ, जिसका असर बेहद गरीब लोगों पर पड़ा है. हालांकि पहले इस तरह के तूफानों में हजारों लोगों की जान जाती थी. 1970 के बाद अब तक की आपदाओं के बारे में आंकड़े जारी करते हुए तालास ने यह भी कहा, "पहले से चेतावनियों और आपदा प्रबंधन के कारण इस तरह की विनाशकारी मृत्यु दर अब इतिहास बन गई हैं. अर्ली वार्निंग जिंदगियां बचा रही हैं."

तूफान की तबाही
बांस और फूस से बने ये घर तूफान का क्या सामना करेंगेतस्वीर: Al-emrun Garjon/AP/picture alliance

पिछले पांच दशकों में आपदा के कारण आर्थिक नुकसान बहुत बढ़ गया है क्योंकि चरम मौसम को ग्लोबल वार्मिंग से भारी ऊर्जा मिल रही है. 2010-19 के दशक में चरम मौसम के कारण हुआ नुकसान, कुल नुकसान 4.3 लाख करोड़ डॉलर का करीब एक तिहाई था. इसमें सबसे ज्यादा तूफानों से हुए नुकसान की हिस्सेदारी थी. इसके उलट प्रति दशक दर्ज की गई मौतों की संख्या में काफी गिरावट आई है. 1970-79 के दशक में जहां 5,56,000 लोगों की मौत हुई थी वहीं पिछले दशक में यह संख्या 1,84,000 थी. इसमें तूफान से होने वाले मौतों की हिस्सेदारी बहुत कम है.

ग्लोबल कमीशन ऑन एडेप्टेशन के मुताबिक चरम मौसम की पहले से चेतावनी देने वाले सिस्टम लोगों की जान बचाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. आयोग का कहना है कि सिर्फ 24 घंटे की नोटिस पर भी अगर चेतावनी मिल जाए तो नुकसान को 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है. डब्ल्यूएमओ का कहना है कि इस तरह के सिस्टम लोगों की जान बचाते हैं और इन पर जितने पैसे का निवेश होता है उसकी तुलना में फायदा 10 गुने से भी ज्यादा है.  हालांकि अभी तक केवल आधे देश ही इन्हें  लगा पाए हैं. खासतौर से द्वीपीय, अविकसित देशों और अफ्रीका में इनकी संख्या काफी कम है.

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सबके लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने पृथ्वी पर मौजूद हर इंसान के लिए 2027 तक अर्ली वार्निंग सिस्टम की सुविधा मुहैया कराने का लक्ष्य  रखा है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों, डेवलपमेंट बैंकों, सरकारों और राष्ट्रीय मौसम सेवाओं के जरिए एक पहल की जा रही है. इस कार्यक्रम के लिए 3 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की जरूरत होगी.

कच्चे घरों को तूफान में सबसे ज्यादा नुकसान होता है
तूफान के बाद बचा खुचा सामान बटोरती तूफान पीड़ित बच्चीतस्वीर: Al-emrun Garjon/AP/picture alliance

मामी मिजुतोरी संयुक्त राष्ट्र के डिजास्टर रिस्क रिडक्शन विभाग की प्रमुख हैं. उनका कहना है कि अर्ली वार्निंग सिस्टमों ने पूरी दुनिया में मौत की संख्या को कम करने में अहम भूमिका निभाई है, यह एक दुर्लभ सफलता है क्योंकि खतरा बढ़ रहा है. मिजुतोरी का कहना है, "अगर हम आपदाओं का प्रबंधन नहीं करेंगे तो हम इसकी भारी बल्कि बहुत भारी कीमत चुकाएंगे."

हर साल आपदाओं की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या, उनके स्वास्थ्य, घर और आमदनी पर असर 2015 के बाद से घट रहा है. हालांकि इसके साथ ही आपदाओं के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान अब  भी काफी ज्यादा है. 2015 से 2021 के बीच औसतन हर साल 330 अरब डॉलर का नुकसान आपदाओं के चलते हुआ. यह सभी देशों की जीडीपी का करीब एक फीसदी है.

डब्ल्यूएमओ के मौसम, जलवायु और पानी से जुड़ी आपदाओं के नए विश्लेषण से पता चला है कि पिछले पांच दशकों में 60 फीसदी से ज्यादा आर्थिक नुकसान विकसित देशों में हुआ. इसके बाद भी गरीब और द्वीपीय देशों को उनकी जीडीपी के हिस्से के लिहाज से देखें तो भारी नुकसान उठाना पड़ा है. मोचा तूफान जैसे कई मामलों में तो नुकसान का बीमा भी नहीं होता और इन्हें डॉलर की कीमत में आंकना भी मुश्किल होता है. हालांकि इसके बाद भी जो लोग उनकी चपेट में आते हैं उनके लिए ये विनाशकारी होते हैं और उनके पास कोई सहारा नहीं होता.

अब हाल के तूफान का ही उदाहरण देखिए. बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के बांस और प्लास्टिक के कमजोर 8000 मकान तूफान तहस नहस कर गया. यह वहां मौजूद झुग्गियों का करीब 20 फीसदी हिस्सा है. ये झुग्गियां तो तेज हवाओं को भी नहीं झेल सकतीं. तूफान से प्रभावित लोगों को मदद देने में जुटे ऑक्सफैम इंटरनेशनल के बांग्लादेश प्रमुख आशीष दामले का कहना है, "वह बांग्लादेश के लिए एक टीजर जैसा है जिसने ध्यान दिलाया है कि हमें भविष्य के लिए तैयार रहना होगा."

जान बची लेकिन बाकी सब कुछ चला गया
तूफान गुजर जाने के बाद म्यांमार की बस्ती का ये हाल हुआ तस्वीर: AP/picture alliance

राहत से बेहतर तैयारी

राहत एजेंसियों की दलील है कि बजट की कमी देखते हुए आर्थिक रूप से यही बेहतर होगा कि खतरे से जूझ रहे समुदायों के लिए खतरा घटाने पर खर्च किया जाए बजाय इसके कि आपदा के बाद उन्हें मदद दी जाए. अगर एक डॉलर की रकम खतरा घटाने और बचाव पर खर्च की जाती है तो यह आपदा के बाद 15 डॉलर का खर्च बचाएगी. यूएनडीआरआर के आंकड़े दिखाते हैं कि 2011-2020 के बीच आपदा से जुड़ी विदेशी मदद में केवल 5 फीसदी रकम ही  तैयारियों और बचाव पर खर्च की गई.

एक दूसरा समाधान है आपदाओं से उबरते समय बेहतर निर्माण करना ताकि भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए कमजोर समुदायों के पास बेहतर संसाधन हो. इस बीच जमीन स्तर पर मुश्किलों से जूझ रहे समुदायों तक मदद पहुंचाने के लिए कुछ नये रास्ते तलाशे जा रहे हैं. बांग्लादेश के डिजास्टर फोरम के संस्थापक और सचिव गौहर नयीम वाहरा कहते हैं, "माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूसंस का ग्रामीण इलाकों में तूफान के चपेट में आए लोगों को मकान बनाने के लिए धन देने में इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे राहत शिविरों का बोझ घटेगा."

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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