भारत में बढ़ती डिजिटल खाई
ऑक्सफैम इंडिया ने एक अध्ययन में पाया है कि भारत में बढ़ते डिजिटलीकरण से विशिष्ट लोगों को फायदा हुआ है लेकिन लोगों के बीच असमानताएं भी बढ़ी हैं. आखिर क्या स्वरूप है इस डिजिटल खाई का?
डिजिटल खाई
असमानता पर ऑक्सफैम इंडिया की 2022 की रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी के बाद से तो डिजिटल दुनिया सबकी जिंदगी का एक अपरिहार्य हिस्सा बन गई है. लेकिन एक डिजिटल खाई भी बनी है जिसकी एक तरफ हैं डिजिटलीकरण का लाभ लेने वाले लोग कुछ विशिष्ट लोग और दूसरी तरफ वो जो इस डिजिटल दुनिया से आज तक जुड़ ही नहीं पाए.
नहीं है इंटरनेट
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में डिजिटल सेवाएं 70 प्रतिशत लोगों के पास या तो नहीं पहुचतीं हैं या खराब रूप में पहुंचती हैं. 2022 में ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 31 प्रतिशत परिवारों के पास इंटरनेट था.
शहर और गांव में फर्क
जहां ग्रामीण भारत की सिर्फ 31 प्रतिशत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है, वहीं शहरों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 67 प्रतिशत है. फर्क दोगुना से भी ज्यादा का है.
सभी के पास नहीं है स्मार्टफोन
रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में देश में 1.2 अरब लोगों के पास मोबाइल फोन थे लेकिन इनमें से करीब 40 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं थे, जिनके जरिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सके.
जाति के आधार पर अंतर
रिपोर्ट के मुताबिक दलितों के मुकाबले सवर्ण लोगों के पास स्मार्टफोन होने की संभावना औसतन सात प्रतिशत ज्यादा है. मोबाइल फोन रिचार्ज पर हर महीने 400 रुपए से ज्यादा खर्च करने की संभावना दलितों के मुकाबले सवर्णों में 10 प्रतिशत ज्यादा है.
लैंगिक भेदभाव
जहां कम से कम 61 प्रतिशत पुरुषों के पास मोबाइल फोन है, वहीं महिलाओं में यह संख्या 31 प्रतिशत पर ही रुक जाती है. यानी पूरे 30 प्रतिशत का अंतर.
शिक्षा भी है एक कारक
जैसे जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है वैसे वैसे मोबाइल फोन होने की गुंजाइश भी बढ़ती जाती है. एक अशिक्षित व्यक्ति के मुकाबले एक पीएचडी हासिल कर चुके व्यक्ति के पास मोबाइल फोन होने की 60 प्रतिशत ज्यादा संभावना है.
इंटरनेट पर खर्च
रिपोर्ट के मुताबिक देश में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग इंटरनेट पर एक महीने में 100 रुपए से कम खर्च करते हैं. महामारी के बाद 100 रुपए से कम खर्च करने वालों की संख्या बढ़ कर 94 प्रतिशत हो गई है.