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क्या अयोध्या की हार वास्तव में अप्रत्याशित है?

समीरात्मज मिश्र
८ जून २०२४

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लगे झटकों के बाद फैजाबाद सीट पर बीजेपी की हार की चर्चा है. इसी सीट के तहत अयोध्या शहर भी आता है. सवाल ये है कि क्या ये हार वास्तव में अप्रत्याशित है या फिर इसके संकेत पहले से ही मिल चुके थे.

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अयोध्या के राम मंदिर में नरेंद्र मोदी
अयोध्या में राम मंदिर के उद्धाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Press Information Bureau/AP Photo/picture alliance

लोकसभा चुनाव के दौरान पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन 14 सीटों पर चुनाव हुए थे, भारतीय जनता पार्टी को उनमें से सिर्फ चार सीटों पर जीत हासिल हो सकी. सात सीटों पर समाजवादी पार्टी को और तीन सीटों पर कांग्रेस पार्टी को जीत मिली. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने इस चरण की 14 में से 13 सीटें जीती थीं. बीजेपी ने सभी 14 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि समाजवादी पार्टी दस और कांग्रेस पार्टी चार सीटों पर लड़ी थी.

यानी, इस बार बीजेपी को पांचवें चरण में नौ सीटें गंवानी पड़ीं लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा फैजाबाद सीट की हो रही हैऔर बीजेपी खेमे में सबसे ज्यादा गम इसी सीट के परिणाम को लेकर है और उसकी वजह ये है कि इसी लोकसभा सीट के तहत अयोध्या शहर भी आता है.

इस साल की शुरुआत में अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन हुआ. देश भर में उस आयोजन से जुड़े इतिहास और वर्तमान को जन-जन तक पहुंचाने की तैयारियां हुईं तो ये साफ लग रहा था कि बीजेपी इस बार अपना चुनाव इसी मुद्दे को केंद्र में रखकर लड़ेगी और जीतेगी. यह मुद्दा अचानक चुनावी मुद्दे से तो दूर हो गया, हालांकि बीजेपी के नेता गाहे-बगाहे इसका श्रेय लेते रहे लेकिन जनता ने इस निर्माण का श्रेय लेने के बीजेपी के तरीके को शायद पसंद नहीं किया.

नतीजा यह हुआ कि न सिर्फ अयोध्या वाली फैजाबाद सीट बीजेपी हार गई बल्कि अवध क्षेत्र की उन तमाम सीटों से उसे हाथ धोना पड़ा, जहां उसने पिछले दो चुनावों में जीत हासिल की थी. फैजाबाद मंडल की तो सभी पांचों लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की हार हुई है.

जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन
जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटनतस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP/dpa/picture alliance

बीजेपी के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार

ऐसा नहीं था कि चुनाव से पहले बीजेपी की हार की आहट नहीं थी. वास्तव में फैजाबाद सीट की बात की जाए तो यहां के सामाजिक समीकरण बीजेपी को इस मायने में कमजोर कर रहे थे कि उसके उम्मीदवार के खिलाफ इंडिया गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी ने अवधेश प्रसाद को खड़ा किया था. अवधेश प्रसाद फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत ही आने वाले मिल्कीपुर विधानसभा से विधायक हैं और नौ बार विधायक रह चुके हैं. मंत्री भी रहे हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट पर अवधेश प्रसाद ने 54 हजार से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की है. इस लोकसभा के तहत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से चार सीट पर सपा को बढ़त मिली. सिर्फ अयोध्या विधानसभा सीट पर ही बीजेपी के लल्लू सिंह बढ़त बना सके. जबकि दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में इनमें से मिल्कीपुर को छोड़कर सभी विधानसभा सीटों को बीजेपी ने जीता था. मिल्कीपुर सुरक्षित सीट से सपा के अवधेश प्रसाद जीते थे जो अब फैजाबाद के सांसद बन गए हैं.

अयोध्या में मतदान
20 मई को पांचवें चरण के मतदान के दौरान अयोध्या में वोटिंगतस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

बीजेपी को ले डूबा लल्लू सिंह का अतिआत्मविश्वास

बीजेपी की इस हार के पीछे यूं तो कई कारण हैं लेकिन सबसे प्रमुख कारणों में से एक खुद निवर्तमान सांसद लल्लू सिंह ही हैं. एक तो ‘चार सौ पार' के नारे को लेकर वो खुद इतने आश्वस्त थे कि जनता तो वोट देगी ही, दूसरे ये कहकर उन्होंने बीजेपी को दूसरी जगहों पर भी नुकसान पहुंचाया कि चार सौ पार का नारा इसलिए दिया गया है ताकि संविधान बदला जा सके. उनके इस बयान को विपक्ष ने लपक लिया (कैच कर लिया) और बीजेपी के खिलाफ एक नैरेटिव ही गढ़ डाला जो काफी असरकारी रहा.

रायबरेली में राहुल गांधी और अखिलेश यादव
अवध में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने सूझबूझ से उतारे प्रत्याशीतस्वीर: PAWAN KUMAR/AFP/Getty Images

दूसरे, अयोध्या के जातीय समीकरणों को समझते हुए समाजवादी पार्टी ने जिस दूरदर्शिता के साथ एक सामान्य सीट पर दलित उम्मीदवार को उतारा, वह रणनीति पूरी तरह से कामयाब रही. अयोध्या में दलित और पिछड़े मतदाताओं की संख्या करीब 45 फीसद है. अवधेश प्रसाद दलित समुदाय की उस पासी जाति से आते हैं जिसकी संख्या यहां सबसे ज्यादा है. बीएसपी ने यहां से ब्राह्मण उम्मीदवार दिया था इसलिए जाटव समाज का भी एक बड़ा हिस्सा ‘संविधान बदलने' की आशंका के कारण गठबंधन की ओर चला गया. अयोध्या सीट से विधायक रह चुके पूर्व मंत्री तेजनारायण पांडेय की वजह से ब्राह्मण मतदाताओं का भी साथ मिला और इन सब वजहों से बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

बीजेपी से नाराज हुए अवध के लोग

तेजनारायण पांडेय कहते हैं, "बीजेपी को किसी और ने नहीं आम जनता ने हराया है, उसके अहंकार ने हराया है. रामनगरी को जिस तरह से विध्वंस करने की कोशिश की गई, आम आदमी को उसके घर-दुकान छोड़ने को मजबूर किया गया, रोजी-रोटी छीनी गई ये उसका असर है. लोग यहां कई पीढ़ियों से रह रहे थे लेकिन उन्हें उजाड़ दिया गया. यह भी नहीं सोचा कि ये लोग कहां जाएंगे.”

हालांकि अयोध्या सीट पर तो बीजेपी को बढ़त जरूर मिली लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो इसका असर अयोध्या ही नहीं, पूरे अवध क्षेत्र पर पड़ा है. कई दुकानदार ऐसे थे जिनका घर आस-पास था लेकिन रोजगार यहां करते थे. लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का असर तो फैजाबाद सीट पर भी नहीं हुआ लेकिन पूरे अवध और पूर्वांचल क्षेत्र की सीटों पर इसका विपरीत असर जबर्दस्त हुआ और बीजेपी को उसका उठाना पड़ा.

वो कहते हैं, "यहां पांच कोसी और पंद्रह कोसी परिक्रमाएं जो होती थीं उनमें ज्यादातर आस-पास के जिलों से लोग आते थे. लेकिन अब इतनी पाबंदियां लगा दी गई हैं कि लोग आ ही नहीं पा रहे हैं. अयोध्या में तो पहले यही लोग आते थे. गरीब श्रद्धालु ही आते थे. वीआईपी तो अब आने लगे हैं. लेकिन अब स्थानीय और गरीब लोगों को ऐसा लग रहा है कि अयोध्या में अब उनके लिए कुछ बचा ही नहीं है. यह सब नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ गई. जिसका बीजेपी को अंदाजा नहीं था.”

अयोध्या का राम मंदिर
राम मंदिर के उद्घाटन में नामचीन लोग पहुंचे लेकिन स्थानीय लोगों का क्या?तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

अयोध्या को एक वैश्विक धार्मिक पर्यटन के केंद्र को रूप में विकसित करने की कोशिश तो की गई लेकिन उसका स्थानीय लोगों पर असर कम हुआ. और ये असर जो हुआ भी, सरकारी नीतियों और प्रशासनिक कार्रवाइयों के चलते बेअसर होता गया. अयोध्या शहर में ही रहने वाले दिनेश पांडेय कहते हैं कि सरकार ने बहुत मनमानी की, लोगों की दुकानें ले लीं लेकिन ठीक से मुआवजा नहीं दिया और कहीं भी इसकी सुनवाई नहीं हुई.

अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी भी कहते हैं कि राम मंदिर बनने के बाद अयोध्या का कायाकल्प जरूर हुआ है लेकिन अयोध्या के स्थानीय लोगों में कई मामलों में गुस्सा भी है. यह बात महेंद्र त्रिपाठी ने चुनाव से पहले कही थी कि राम मंदिर निर्माण और रामपथ बनाए जाने के बाद इस इलाके से बड़े पैमाने पर लोगों को हटाया गया जिससे लोग बहुत नाराज हैं. उनका कहना था, "अयोध्या के मुख्य मार्ग को चौड़ा किया गया जिसकी वजह से छोटे दुकानदारों को बहुत नुकसान हुआ. उनकी शिकायत है कि उन्हें ठीक से मुआवजा भी नहीं मिला. आए दिन वीआईपी मूवमेंट से भी स्थानीय लोग बहुत परेशान हैं क्योंकि कई बार तो लोग अपने घरों से नहीं निकल पाते हैं.”

नतीजों पर क्या कहती है भारत की जनता

मतदान से पहले ही हार की आहट

अयोध्या के ही रहने वाले दुर्गेश प्रताप चुनाव के दौरान हमें कानपुर में मिले तो कहने लगे कि राम मंदिर को लेकर लोगों में खुशी जरूर है और मंदिर भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना है लेकिन इसका श्रेय सभी लोग पीएम मोदी को ही दे रहे हैं लेकिन चुनाव में इसका बहुत असर नहीं होने वाला है. इसका कारण उन्होंने ये बताया था, "ये लोग तो 2014 से ही बीजेपी को वोट दे रहे हैं और शायद इस बार भी दें. सवाल तो ये है कि क्या मंदिर की वजह से बीजेपी के वोटों में बढ़ोत्तरी हुई है? तो ऐसा नहीं दिख रहा है क्योंकि लोगों के सामने बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे भी हैं और इन मुद्दों पर बीजेपी अब कमजोर नजर आने लगी है. बीजेपी के नेता इन मुद्दों पर बात भी नहीं कर रहे हैं.”

दुर्गेश प्रताप की बातें सही साबित हुईं और महंगाई, बेरोजगारी, संविधान जैसे मुद्दों ने अपना असर दिखाया. बीजेपी को या तो इसकी थाह नहीं लग पाई या फिर उसने जानबूझकर लोगों ने इससे इतर मुद्दों पर भटकाए रखा.

वहीं सोशल मीडिया पर फैजाबाद सीट पर बीजेपी की हार के बाद अयोध्या के लोगों को कुछ लोग खरी-खोटी सुना रहे हैं, गालियां दे रहे हैं, अयोध्या के दुकानदारों के बहिष्कार की बात कर रहे हैं. जाहिर सी बात है, अयोध्या के लोग इस बात से आहत हैं और बीजेपी को लेकर उनका गुस्सा और बढ़ रहा है. उन लोगों का भी जो बीजेपी के समर्थक हैं क्योंकि गालियां तो सभी को पड़ रही हैं.

वहीं फैजाबाद सीट से जीत हासिल करने वाले 79 वर्षीय अवधेश प्रसाद कहते हैं, "भगवान राम ने बता दिया है कि उनका आशीर्वाद किसके साथ है. ये बीजेपी के अहंकार की हार है. ये लोग दावा कर रहे थे कि हम राम को लाए हैं. उन राम को जो सदियों से अयोध्या में हैं.”

फैजाबाद सीट समेत अवध क्षेत्र की तमाम सीटें बीजेपी जरूर हार गई है लेकिन अयोध्या विधानसभा सीट पर बीजेपी की बढ़त यह भी बताती है कि अयोध्या के लोगों की नाराजगी भले ही थी लेकिन इतनी भी ज्यादा नहीं कि वो बीजेपी को चुनाव हरा दें. पर हां, अयोध्या के आस-पास तो नाराजगी इस कदर थी कि चुनाव परिणाम देखकर यह लग रहा है कि लोग बीजेपी को हर कीमत पर हराना चाहते थे.