1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

छत्तीसगढ़ के हसदेव में विरोध के बावजूद काटे गए 11 हजार पेड़

१२ सितम्बर २०२४

एक प्रस्तावित कोयला खनन योजना के लिए बीते दिनों हसदेव में करीब 11 हजार पेड़ काटे गए. स्थानीय आदिवासियों ने इसका भारी विरोध किया. कार्यकर्ताओं के मुताबिक, अब तक खनन के लिए यहां एक लाख से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं.

https://p.dw.com/p/4kX3H
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में एक काटे जा चुके पेड़ का बचा हुआ हिस्सा
हसदेव अरण्य पर्यावरण और जैव विविधता के लिहाज से बेहद संवेदनशील और अहम इलाका है तस्वीर: Adarsh Sharma/DW

छत्तीसगढ़ के वन विभाग की वेबसाइट खोलते ही सबसे पहले एक बैनर दिखाई देता है, जिसपर लिखा है- "एक पेड़ मां के नाम." इस बैनर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री केदार कश्यप के मुस्कुराते हुए चेहरे भी नजर आते हैं.

कल हसदेव कैसा वीभत्स होगा, कोरबा में आज दिखता है!

वहीं दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने बीते दिनों 'परसा ईस्ट केते बासेन' खनन परियोजना के दूसरे चरण के लिए हसदेव जंगल में हजारों पेड़ काटने की अनुमति दे दी. स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका जमकर विरोध किया.  

'हसदेव बचाओ' अभियान के धरनास्थल पर बैठे दो स्थानीय मूलनिवासी और हसदेव संरक्षण कार्यकर्ता
छत्तीसगढ़ के हरिहरपुर गांव में यह जगह 'हसदेव बचाओ' अभियान का धरनास्थल हैतस्वीर: Adarsh Sharma/DW

हसदेव में पांच कोयला खदानें आवंटित हो चुकी हैं

हसदेव जंगल, छत्तीसगढ़ के तीन जिलों- सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर में फैला है. करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हसदेव अरण्य जैव विविधता से भरपूर है. प्रकृति और पर्यावरण के लिए इसका महत्व रेखांकित करते हुए अक्सर इसे "मध्य भारत का फेफड़ा" कहा जाता है.

हसदेव जंगल के गर्भ में कोयले का अकूत भंडार भी है. भारतीय खान ब्यूरो के मुताबिक, यहां लगभग 5,500 मिलियन टन कोयले का भंडार होने का अनुमान है. स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ता कहते हैं कि यही कोयला अब हसदेव की सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है. सरकारें और उद्योगपति पेड़ों को काटकर जंगल के नीचे दबे कोयले को निकालना चाहते हैं. वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं. टकराव की यह स्थिति बीते कई सालों से बनी हुई है.

मार्च 2023 में तत्कालीन कोयला एवं खान मंत्री प्रह्लाद जोशी ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि हसदेव जंगल के क्षेत्र में कुल पांच कोयला खदानें आवंटित की गई हैं. इनमें से तीन कोयला खदानें राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड, या कहें कि राजस्थान सरकार को दी गई हैं. ये तीनों कोयला खदानें हैं- परसा ईस्ट एवं केते बासेन (पीईकेबी), परसा और केते एक्सटेंशन. इनमें से फिलहाल पीईकेबी खदान में ही खनन हो रहा है.

ठीक नहीं है भारत में जंगलों की सेहत

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजस्थान सरकार ने पीईकेबी खदान के प्रबंधन और खनन का काम अदाणी समूह को सौंपा है. इस खदान से दो चरणों में कोयले का खनन होना है. छत्तीसगढ़ वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पहले चरण में 762 हेक्टेयर वन भूमि से कोयला निकाला जा चुका है. इस खनन परियोजना के लिए करीब 80 हजार पेड़ काटे गए थे. दूसरे चरण में 1,136 हेक्टेयर भूमि पर खनन होना प्रस्तावित है, जिसके लिए चरणबद्ध तरीके से पेड़ काटे जा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक खुली हुई खदान से कोयला लेकर जा रही गाड़ियां.
भारतीय खान ब्यूरो के मुताबिक, हसदेव अरण्य क्षेत्र में लगभग 550 करोड़ टन कोयले का भंडार होने का अनुमान है. तस्वीर: Adarsh Sharma/DW

स्थानीय आदिवासी जंगल बचाने की मुहिम चला रहे हैं

दूसरे चरण के अंतर्गत सितंबर 2022 में पहली बार करीब 8,000 पेड़ काटे गए थे. फिर दिसंबर 2023 में 12,000 हजार से ज्यादा पेड़ गिराए गए. अब बीते 30 अगस्त को तीसरी बार पेड़ों की कटाई शुरू हुई है. 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' के संयोजक और पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में बताया, "तीन दिन तक चले कटाई अभियान में 74 हेक्टेयर वन भूमि से करीब 11 हजार पेड़ काटे गए. स्थानीय आदिवासियों ने शांतिपूर्वक ढंग से इसका काफी विरोध किया, लेकिन पुलिस बल की भारी मौजूदगी के बीच कटाई पूरी कर ली गई."

भारतीय आदिवासियों के समर्थन में दुनियाभर में लगे ‘हसदेव बचाओ’ के नारे

अब तक हसदेव में हुई कटाई पर आलोक बताते हैं, "दूसरे चरण के लिए लगभग दो लाख 46 हजार पेड़ काटे जाने की योजना है. अब तक तीन चरणों के तहत इनमें से लगभग 30,000 पेड़ काटे जा चुके हैं. इससे 206 हेक्टेयर जंगल साफ हो गया है."

आलोक शुक्ला 'हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति' नाम की एक सामूहिक मुहिम के भी सदस्य हैं. वह लंबे समय से हसदेव जंगल को बचाने के अभियान के साथ जुड़े हुए हैं. इसी साल उन्हें प्रतिष्ठित 'गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार' भी दिया गया है, जो पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे जमीनी कार्यकर्ताओं को मिलता है.

हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे लोग. यह तस्वीर मई 2022 की है.
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कई गांवों की बसाहट है, जहां बड़ी संख्या में मूलनिवासी लंबे समय से कोयला खदान परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं तस्वीर: Hridayesh Joshi

काटे जा चुके एक लाख से ज्यादा पेड़

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हसदेव जंगल में पीईकेबी खनन परियोजना के दोनों चरणों के लिए अब तक एक लाख से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं. पर्यावरण कार्यकर्ताओं को आशंका है कि दूसरे चरण के लिए अभी दो लाख से ज्यादा पेड़ और काटे जाएंगे. वे चिंता जताते हुए कहते हैं कि इस तरह तो धीरे-धीरे पूरा जंगल ही खत्म हो जाएगा.

केरल में क्यों बढ़ रहा इंसान और हाथी के बीच का संघर्ष

आलोक शुक्ला भी ऐसी ही आशंका जताते हैं, "हसदेव में खनन होने पर समृद्ध जैव विविधता और वन्य प्राणियों का रहवास खत्म हो जाएगा. छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं बढ़ जाएंगी. इसके अलावा बांगो बांध के अस्तित्व पर भी संकट आ जाएगा, जिसके पानी से जांजगीर जिले में चार लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है." वह आगे कहते हैं कि स्थानीय लोगों की पहचान और संस्कृति, उनके गांव और जंगल के साथ जुड़ी हुई है. हसदेव के कटने से यह पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

डीडब्ल्यू हिंदी की टीम मई 2024 में ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए हसदेव जंगल गई थी. उस समय स्थानीय आदिवासियों ने हसदेव के प्रति अपनी आस्था जताते हुए बताया था कि वे इस जंगल को अपना देवता मानते हैं. हसदेव अरण्य में बसे एक गांव हरिहरपुर में स्थानीय निवासी और पर्यावरण कार्यकर्ता रामलाल करियाम ने मूलनिवासियों की वन आधारित जीवनशैली को रेखांकित करते हुए कहा था, "हम अपनी आजीविका के लिए जंगल पर ही निर्भर रहते हैं. यह हमारे लिए बैंक की तरह है. जब तक जंगल है, हमारे सामने कभी भी खाने-पीने का संकट नहीं आएगा. जंगल कटने से हम सब खतरे में आ जाएंगे."

जंगल काटकर कोयला निकालने से पर्यावरण को दोहरा नुकसान होता है. जंगल कटने से वन क्षेत्र कम होता है और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है. कार्बन सिंक घटता है और पेड़ों में मौजूद कार्बन, सीओटू के रूप में वायुमंडल में चला जाता है. दूसरा, कोयला एक जीवाश्म ईंधन है जिसका ज्यादातर इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए होता है. जब पावर प्लांट में बिजली उत्पादन के लिए कोयला जलाया जाता है तो बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हसदेव जंगल बचाने के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे पर्यावरण कार्यकर्ता
हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई बंद करने के समर्थन में पहले भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन हुए हैंतस्वीर: Vivek Kumar/DW

नियमों का पालन ना करने के आरोप

हसदेव जंगल के मामले में प्रशासन पर नियमों का पालन नहीं करने के आरोप लगते रहे हैं. आलोक शुक्ला आरोप लगाते हैं कि अदाणी कंपनी के मुनाफे के लिए सारे नियम-कानूनों को ताक पर रखकर हसदेव का विनाश किया जा रहा है. वह बताते हैं, "हसदेव अरण्य का क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आता है. पेसा कानून (1996) और जमीन अधिग्रहण कानून (2013) के अनुसार, इस इलाके में जमीन का अधिग्रहण करने से पहले ग्रामसभा की सहमति लेना जरूरी होता है."

हसदेव जंगल जरूरी है या एयरकंडीशनर के लिए बिजली

आलोक शुक्ला आगे कहते हैं, "इस साल जून में जमीन अधिग्रहण की सहमति लेने के लिए घाटबर्रा गांव में ग्रामसभा हुई थी, लेकिन उसमें प्रक्रिया का ठीक ढंग से पालन नहीं किया गया. लोगों के विरोध को दरकिनार कर खाली रजिस्टर में लोगों के हस्ताक्षर करवा लिए गए. बाद में उसमें प्रस्ताव लिख दिया गया. नियम कहते हैं कि ग्रामसभा में एक भी व्यक्ति के विरोध करने पर वोटिंग करवानी चाहिए, लेकिन प्रशासन ने वोटिंग नहीं करवाई."

हमें जंगलों की क्यों जरूरत है?

राजनीतिक दलों पर भी सवाल

इस मामले में स्थानीय लोग राजनीतिक दलों के रवैये पर भी सवाल उठाते हैं और पार्टियों पर पक्ष-विपक्ष की राजनीति में अलग-अलग रुख अपनाने का आरोप लगाते हैं. पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल के दौरान जुलाई 2022 में सर्वसम्मति से प्रदेश विधानसभा में एक संकल्प पारित हुआ. इसके जरिए केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित सभी कोयला खदानों को निरस्त करने का अनुरोध किया गया. इसके दो महीने बाद ही खनन के लिए 8,000 पेड़ काट दिए गए. तब इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टी बीजेपी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार का विरोध किया था. हालांकि, पिछले साल राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भी स्थिति नहीं बदली.

कॉर्बेट: पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए कटवा दिए गए हजारों पेड़

बीजेपी के आदिवासी नेता विष्णुदेव साय दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने. इसके करीब हफ्ते भर बाद ही हसदेव में फिर पेड़ों की कटाई शुरू हो गई. जब इस पर सवाल उठे, तो मुख्यमंत्री साय ने इसे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का फैसला बताया. उन्होंने कहा कि हसदेव में पेड़ काटने का फैसला कांग्रेस सरकार के दौरान लिया गया था, उसी आधार पर पेड़ों की कटाई की गई है.

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि भाजपा-कांग्रेस में से जो भी पार्टी राज्य में विपक्ष में होती है, वह हसदेव में पेड़ काटे जाने का विरोध करती है. जैसे ही वह पार्टी सत्ता में आती है, उसका रुख बदल जाता है.