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समाज

कोरोना रिपोर्ट नहीं, तो अंतिम संस्कार भी नहीं!

प्रभाकर मणि तिवारी
४ जुलाई २०२०

सरकार का नियम है कि कोरोना रिपोर्ट आने तक अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता. लेकिन रिपोर्ट आने तक शव को रखा कहां जाए? कोलकाता में एक मामले में परिवार को शव फ्रीजर में रखना पड़ा, तो अन्य मामले में शव घंटों दुकान में पड़ा रहा.

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Indien Coronavirus | Ausbruch in Neu Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

कोरोना की वजह से देश में सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है. इसके आतंक के चलते लोगों की सामाजिक संवेदनाएं भी सूखती जा रही हैं. इस महामारी के डर से अपनों के भी मुंह मोड़ने की कई घटनाएं सामने आती रही हैं. अब पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में इस सप्ताह घटी दो घटनाएं इसकी कड़वी मिसाल बन कर उभरी हैं. एक मामले में घरवालों को अपने परिजन का शव दो दिनों तक फ्रीजर में रखना पड़ा, तो दूसरे मामले में मिठाई के एक कारोबारी का शव लगभग 16 घंटे तक उसकी दुकान में ही पड़ा रहा. इसके बाद अब कोरोना से निपटने की राज्य सरकार की नीतियों और सामाजिक संबंधों और आपसी सद्भाव पर सवाल उठने लगे हैं. समाजशास्त्रियों ने इस स्थिति को आने वाले समय के लिए एक खतरनाक बानगी करार दिया है.

शव रखने के लिए परिवार ने किराए पर लिया फ्रीजर

पहले मामले में कोलकाता के एक 71 वर्षीय व्यक्ति को सांस में तकलीफ होने के बाद डॉक्टर को दिखाया गया. वहां उसकी कोराना जांच की गई. लेकिन रिपोर्ट बाद में आने की बात कह कर उसे घर भेज दिया गया. घर लौटने के कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई. इसके बाद घरवालों ने पुलिस, प्रशासन और अस्पताल से संपर्क किया. लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया. उनकी दलील थी कि कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले वे लोग इस मामले में कोई सहायता नहीं कर सकते. उस व्यक्ति का इलाज करने वाले डॉक्टर ने कोरोना से मौत का मामला बता कर मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने से भी इंकार कर दिया. स्वास्थ्य विभाग ने भी इस मामले में कोई सहायता नहीं की. दूसरी ओर, मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना शवदाह गृहों ने अंतिम संस्कार की अनुमति देने से भी इंकार कर दिया. कई अस्तपतालों में संक्रमण के डर से शव को शवगृह में रखने से इंकार कर दिया गया. घर में शव रखने पर उसके खराब होने का खतरा था. नतीजतन घरवालों ने मजबूरन किराए पर फ्रीजर ले कर उसमें शव को रख दिया. दो दिन बाद कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के घंटों बाद शव का अंतिम संस्कार किया जा सका.

मृत व्यक्ति के भतीजे सोमेन बताते हैं, "हमने चाचा की मौत के बाद सरकार की ओर से जारी तमाम हेल्पलाइन नंबरों पर फोन किया था. लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. पुलिस ने भी हमें इंतजार करने को कहा. नतीजतन हमें शव को फ्रीजर में रखना पड़ा. कोरोना की जांच रिपोर्ट आने के बाद भी हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी. उसके बाद ही अंतिम संस्कार संभव हुआ." दूसरी ओर, कोलकाता नगर निगम के प्रशासक बोर्ड के सदस्य अतीन घोष दावा करते हैं, "इस मामले की जानकारी मिलते ही हमने परिवार की सहायता की पहल की."

16 घंटों तक दुकान में पड़ा रहा शव

यह मामला अभी सुर्खियों में ही था कि इसी तरह के एक अन्य मामले में कोलकाता के एक मिठाई दुकान मालिक का शव लगभग 16 घंटे तक उसकी दुकान में ही पड़ा रहा. उसकी मौत भी कोरोना की जांच रिपोर्ट आने से पहले ही हो गई थी. 57 साल का यह व्यक्ति तबियत खराब होने के बाद कलकत्ता मेडिकल कॉलेज अस्पताल जा रहा था. लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. अस्पताल पहुंचने पर वहां मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने से मना कर दिया गया. उसके बाद स्थानीय लोगों ने उसके शव को लाकर दुकान में रख दिया. खुली दुकान में वह शव लगभग सोलह घंटे तक पड़ा रहा. अगले दिन रिपोर्ट पॉजिटिव होने के बाद स्वास्थ्य विभाग को सूचना दी गई. उसके बाद विभागीय कर्मचारी उसके शव को अंतिम संस्कार के लिए ले गए और दुकान के सात कर्मचारियों को होम क्वॉरंटीन में भेज दिया गया है.

स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं, "इन दोनों मामलों में कोविड प्रोटोकॉल के कड़े प्रावधानों की वजह से कुछ समस्या हुई है. किसी न किसी स्तर पर संवादहीनता के चलते ऐसी परिस्थिति सामने आई." फिलहाल इन दोनों मामलों की जांच की जा रही है." इन अधिकारी का कहना है कि बुजुर्ग व्यक्ति को अस्पताल में दाखिल कराना जरूरी था लेकिन घरवालों ने ऐसा नहीं किया. दूसरी ओर, घरवालों का कहना है कि सरकारी अस्पताल में कोरोना की जांच नहीं होने की वजह से एक निजी लैब में जांच कराना पड़ी. कहीं किसी अस्पताल में उनके लिए जगह नहीं मिली. इसी वजह से उन्हें घर लाना पड़ा.

कोरोना रिपोर्ट आने तक अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं

इन दोनों मामलों ने कोविड-19 के बेहतरीन प्रबंधन के सरकारी दावों की तो पोल खोल ही दी है, कोरोना काल में खत्म होती सामाजिक संवेदनाओं को भी उजागर कर दिया है. समाजशास्त्री प्रोफेसर सुरेंद्र पाल कहते हैं, "कोरोना के आतंक ने समाजिक दूरियां बढ़ा दी हैं. अब अपने भी अपनों से बचने लगे हैं. यह दोनों मामले इसकी ज्वलंत मिसाल हैं." वे कहते हैं कि जांच रिपोर्ट नहीं आने तक शवों के अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं होने का नियम बेतुका है, "सरकार को या तो जांच रिपोर्ट शीघ्र देने का इंतजाम करना चाहिए या फिर शवों के अंतिम संस्कार का." वे कहते हैं कि घर में फ्रीजर में बुजुर्ग के शव के साथ दो दिनों तक जीने वाले लोगों की मानसिक स्थिति और खासकर बच्चों के मन पर इसके असर का अनुमान लगाया जा सकता है.

कोलकाता के एक कालेज में समाज विज्ञान पढ़ाने वाले मनोहर लाहिड़ी कहते हैं, "कोरोना काल में सामाजिक सद्भाव सवालों के घेरे में है. साथ ही इन घटनाओं से सरकारी दावों की भी कलई खुल गई है. रोजाना नए नियम और विशेषज्ञ समितियों के गठन की बजाय प्रोटोकॉल में ऐसे मामलों में फौरन अंतिम संस्कार का इंतजानम किया जाना चाहिए. इससे शवों की दुर्गति तो रुकेगी ही, घरवालों की तकलीफों पर भी मरहम लगाया जा सकेगा."

पश्चिम बंगाल ने बीते 24 घंटे के दौरान 10,405 लोगों की जांच के साथ ही पांच लाख लोगों की जांच का आंकड़ा पार कर लिया है. यह ऐसा करने वाला सातवां राज्य है. एक लाख से पांच लाख तक पहुंचने में राज्य को 44 दिनों का समय लगा. स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जुलाई के आखिर तक यह आंकड़ा सात लाख पार हो जाएगा. पहले एक लाख लोगों की जांच में राज्य को सीढ़े तीन महीने से ज्यादा समय लगा था. विभाग की दलील है कि लैब की संख्या कम होने की वजह से शुरुआती दौर में जांच में तेजी नहीं आ सकी थी. फिलहाल 51 लैब काम कर रहे हैं.

दूसरी ओर, बीते 24 घंटे के दौरान 16 लोगों की मौत के साथ ही कोरोना से मरने वालों की तादाद 699 तक पहुंच गई है. इनमें से 394 मौतें अकेले राजधानी कोलकाता में हुई हैं. इस दौरान 649 नए मरीजों के सामने आने से कुल मरीजों की संख्या 19,819 हो गई है. सरकार का कहना है कि कुल मौतों में से 536 लोगों को पहले से दूसरी गंभीर बीमारियां थीं. जून महीने के दौरान 364 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है.

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