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जीरो उत्सर्जन समझौते से पीछे क्यों हट रहे जर्मनी और चीन

१२ नवम्बर २०२१

दुनिया के करीब 30 देश, शहर और कार निर्माताओं ने 2040 तक पूरी तरह उत्सर्जन-मुक्त वाहनों के इस्तेमाल की योजना बनाई है. हालांकि, चीन, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों सहित कई प्रमुख कंपनियां इस समझौते में शामिल नहीं हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat

इस साल स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन कोप26 का आयोजन किया गया. इसकी मेजबानी कर रहे यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मुताबिक, इस सम्मेलन की प्राथमिकताओं में से एक जलवायु अनुकूल वाहनों का इस्तेमाल करना था. उन्होंने कहा कि सम्मेलन में शामिल होने वाले देशों को ‘कोयला, कार, नकदी और पेड़' पर ध्यान देना चाहिए.

कोयले और पेड़ को लेकर पहले से ही बयानबाजी होती रही है. अब कारों के इस्तेमाल को लेकर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. 24 देशों और छह प्रमुख कार निर्माता कंपनियों के साथ कुछ शहरों और निवेशकों ने उत्सर्जन-मुक्त वाहनों को लेकर एक सुर में आवाज उठायी.

ग्लासगो में जारी प्रकाशित बयान में कहा गया, "हम एक साथ मिलकर काम करेंगे, ताकि 2040 तक वैश्विक स्तर पर जीरो उत्सर्जन वाली नई कारें और वैन का इस्तेमाल हो सके. वे सड़क परिवहन में सफलता प्राप्त करने के प्रयासों का समर्थन करना चाहते हैं.

भविष्य के लिए संघर्ष

जिन वाहन निर्माताओं ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं उनमें डेमलर की मर्सिडीज-बेंज, स्वीडिश निर्माता वोल्वो, चीन की बीवाईडी, भारत की टाटा मोटर्स की इकाई जगुआर लैंड रोवर और अमेरिकी वाहन निर्माता फोर्ड और जनरल मोटर्स (जीएम) शामिल हैं.

यूनाइटेड किंगडम के अलावा, डेनमार्क, पोलैंड, ऑस्ट्रिया और क्रोएशिया जैसे यूरोपीय संघ के देशों के साथ-साथ इजराइल और कनाडा सहित कई अन्य औद्योगिक देश समझौते में शामिल हुए. तुर्की, पराग्वे, केन्या और रवांडा जैसे उभरते और विकासशील देश भी इस योजना में शामिल हो रहे हैं.

अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया और बार्सिलोना, फ्लोरेंस और न्यूयॉर्क जैसे शहर भी इसमें शामिल हैं. इसके अलावा, ऐसी कंपनियां जो ऑटो उद्योग में निवेश करती हैं या जिनके पास अपने स्वयं के बड़े वाहन बेड़े हैं, जैसे कि यूटिलिटी कंपनी ई.ओएन, आइकिया और यूनिलीवर ने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए.

यूएस एनजीओ ‘ऐक्शन फॉर द क्लाइमेट इमरजेंसी' की अभियान प्रबंधक जेनिफर ईसन ने घोषणा का स्वागत किया. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे यह सुनकर बहुत अच्छा लगा कि ऐसे लोग हैं जो अंततः जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को समाप्त करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, "हम लंबे समय से जानते हैं कि जीवाश्म ईंधन से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. इसलिए, इतने सारे देशों का इसके लिए प्रतिबद्ध होना साहसिक कार्य है. जिस प्रकार की कार्रवाई की हमें अभी आवश्यकता है उसके लिए यह जरूरी था. हालांकि, ईसन को इस बात का दुख है कि अमेरिका ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये.

जर्मनी और चीन भी शामिल नहीं

अन्य प्रमुख परिवहन बाजार जो इस पहल में शामिल नहीं हुए हैं उनमें चीन और जर्मनी शामिल हैं. इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए, ग्रीनपीस जर्मनी के कार्यकारी निदेशक मार्टिन कैसर ने प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और कार निर्माताओं की अनुपस्थिति को "गंभीर मामला" बताया.

उन्होंने कहा, "जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को रोकने के लिए हमें इस पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी. इसका मतलब है कि हमें बिना किसी देर के जीवाश्म इंजन से चलने वाले वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ना चाहिए.

जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि देश शिखर सम्मेलन में घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं करेगा. उन्होंने इसके लिए ‘सरकार के आंतरिक ऑडिट के नतीजों' का हवाला दिया.

जर्मनी की मौजूदा सरकार के भीतर तथाकथित ई-ईंधन को लेकर अभी भी विवाद है. परिवहन मंत्री आंद्रेयास शोएर ने इस आधार पर इस समझौते को खारिज कर दिया कि इसमें सिंथेटिक ईंधन को ध्यान में नहीं रखा गया है.

उन्होंने कहा, "2035 तक जीवाश्म ईंधन जलाने वाले इंजन का इस्तेमाल बंद हो जाएगा लेकिन ज्वलन वाली तकनीक की जरूरत बनी रहेगी.

हालांकि, इस बात की संभावना बनी हुई है कि ग्लासगों में लिए गए निर्णय पर कई देश बाद में सहमत हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी ने कई दिनों की हिचकिचाहट के बाद विदेशों में तेल और गैस परियोजनाओं के वित्तपोषण को समाप्त करने के लिए एक घोषणा पर हस्ताक्षर किया.

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कई वाहन निर्माता कंपनियां कहीं नहीं दिखीं

मर्सिडीज बेंज ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन बीएमडब्ल्यू जैसी अन्य प्रमुख जर्मन कार निर्माता कंपनियां कहीं नहीं दिखीं. ऑटो उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कुछ निर्माताओं को समझौते पर संदेह है क्योंकि उन्हें महंगी तकनीक पर स्विच करना होगा.

साथ ही, कई और समस्याएं भी हैं. जैसे, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए आवश्यक चार्जिंग पॉइंट और ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने के लिए सरकारों की ओर से प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है.

दुनिया की दो और प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियों फोक्सवागन और टोयोटा ने भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं. दुनिया की चौथी सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल निर्माता कंपनी स्टेलंटिस के साथ-साथ जापान की होंडा और निसान, दक्षिण कोरिया की ह्यूंदै जैसी कंपनियां भी इस समझौते में शामिल नहीं हुईं.

टोयोटा की जेडईवी फैक्ट्री के महाप्रबंधक (जीरो उत्सर्जन डिवीजन) कोही योशिना ने कहा, ‘कार्बन तटस्थता के लिए कई अलग-अलग तरीके हैं.' समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को इलेक्ट्रिक, बैटरी और फ्यूल-सेल वाहनों के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करना होगा. इसमें काफी समय लगेगा. वह कहते हैं, "संयुक्त बयान से ज्यादा महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि सभी लोग कार्बन तटस्थता की दिशा में प्रयास कर रहे हैं.

कुल मिलाकर, परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का काफी ज्यादा उत्सर्जन हो रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु उद्देश्यों को पाने के लिए परिवहन के क्षेत्र में स्वच्छ उर्जा का इस्तेमाल अत्यंत जरूरी है.

रिपोर्टः जेनेट स्विएंक

 

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