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सूखते गांवों में ऐप की मदद से पानी खोजते ग्रामीण

९ नवम्बर २०२१

भारत की फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्यॉरिटी ने एक ऐप बनाई है जिसने ग्रामीण लोगों को बड़ी मदद पहुंचाई है. पानी के संकट से जूझते गांवों में यह ऐप कमाल का काम कर रही है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro

सोशल मीडिया पर इधर उधर भटकने से पहले रिकी एमियो अपने स्मार्टफोन पर एक ऐप खोलकर ये जांचते हैं कि उनके गांव में जल संरक्षण की क्या स्थिति है. सर्दियां आ रही हैं और उनके लिए पानी की स्थिति जांचना ज्यादा जरूरी है. मेघालय के कैरांग गांव में रहने वाले एमियो कहते हैं, "हर साल जब मॉनसून बीत जाता है तो पानी लापता हो जाता है.”

एमियो बताते हैं कि सर्दियों में लोगों को पानी के लिए कई-कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. वह कहते हैं, "हमारे पास पानी को जमा करने लेने की कोई सुविधा नहीं थी. लेकिन इस ऐप ने हमारे लिए चीजें आसान कर दी हैं.”

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जिस ऐप का जिक्र एमियो कर रहे हैं, उसका नाम है CLART. यूं तो यह ऐप 2014 से काम कर रही है लेकिन हाल ही में इसे अपडेट किया गया है जिसके बाद पानी के लिए संघर्ष करते एमियो जैसे हजारों भारतीयों के लिए अपने घरों के पास ही पानी जमा कर लेना आसान हो गया है. यह एक मुफ्त ऐप है जिसने भारत के 19 राज्यों में ग्रामीण समुदायों को अपने यहां बारिश का पानी संचित करने और पीने योग्य पानी का स्तर बढ़ाने में मदद की है.

कैसे काम करती है ऐप?

यह ऐप, क्लार्ट (CLART) जल संरक्षण की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को सौंपती है. इस ऐप को एक गैर सरकारी संस्था फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्यॉरिटी ने बनाया है. संस्था के चिरनजीत गुहा कहते हैं, "यह ऐप ऑनलाइन भी काम करती है और ऑफलाइन भी. इसमें कलर कोडिंग का प्रयोग किया गया है ताकि कम पढ़े लिखे या अनपढ़ ग्रामीणों को दिक्कत ना हो. विचार ये है कि स्थानीय ज्ञान की तकनीक से मदद की जाए.”

क्लार्ट से पहले एमियो का गांव पिछले करीब एक दशक से पानी की भारी कमी से जूझ रहा था. ऐप ने गांव को अपनी स्वायत्तता वापस पाने में मदद की है.

मेघालय बेसिन मैनेजमेंट एजेंसी के जनरल मैनेजर वांकित कुपार स्वेर कहते हैं, "क्लार्ट के रूप में पहली बार ग्रामीण समुदायों को जानकारी भरे फैसले लेने में मदद मिल रही है. अब उन्हें इंजीनियर के आने और उनकी जरूरतों को समझने पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. एक व्यक्ति निश्चित स्थान पर जाता है और ऐप को ऑन करता है. यह ऐप बता देती है कि उस जगह पर क्या किया जा सकता है और क्या नहीं. इस ऐप ने निर्णय लेने की पूरी प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण कर दिया है, जो इन परियोजनाओं की सफलता का राज है.”

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एमियो इस सफलता की ताकीद करते हैं. वह कहते हैं, "हम अब अपने सुझावों पर ज्यादा भरोसा होता है और हम इंजीनियरों से भी सवाल जवाब कर सकते हैं. मेरे गांव में बहुत से लोग हैं जो अब समस्याओं के बारे में ज्यादा जागरूक हैं और साथ मिलकर काम करने व हल खोजने के इच्छुक हैं.”

क्यों चाहिए ऐसी तकनीक?

वर्ल्ड रिसॉर्सेज इंस्टीट्यूट की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया के उन 17 मुल्कों में से है जहां पानी की कमी का दबाव सबसे ज्यादा है. देश की बढ़ती आबादी के साथ खेती से लेकर उद्योगों तक हर जगह पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है. मॉनसून का बदलता स्वभाव इस मांग का दबाव और बढ़ा रहा है. भारत सरकार के नीति आयोग के मुताबिक भारत में 60 करोड़ लोग पानी की भारी से बहुत भारी कमी झेल रहे हैं.

आंकड़े दिखाते हैं कि देश के ज्यादातर हिस्सों में भूमिगत जल जितनी रफ्तार से पुनर्संचित होता है, उससे कहीं ज्यादा तेजी से इस्तेमाल हो रहा है. इसलिए जल स्रोतों को दोबारा भरने यानी रिचार्ज करने का कुदरत का यह फॉर्म्युला अब काम नहीं कर पा रहा है.

आईआईटी गांधीनगर स्थित वॉटर ऐंड क्लाइमेट लैब में एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्रा कहते हैं, "रिचार्ज बहुत सी चीजों की अहम प्रक्रिया है और विज्ञान द्वारा संचालित यह संरक्षण का अहम हिस्सा है. तकनीक इस बात में मदद कर सकती है कि ऐसे ढांचे कहां बनाए जाएं जहां पानी जमा करना और उसे रिचार्ज करना बेहतर होगा. कहीं भी बांध या तालाब बना देने से काम नहीं चलेगा.”

किसानों को सस्टेनेबेल खेती के लिए प्रोत्साहित करने वाली संस्था कॉटन कनेक्ट के विवेक देशमुख कहते हैं कि बारिश की मात्रा में उतार चढ़ाव ने खेती को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. वह कहते हैं, "अमरावती को कपास और संतरे के लिए जाना जाता है. और दोनों ही मामलों में बारिश की मात्रा में बदलाव का अर्थ है किसानों का नुकसान. इसलिए उन्हें पानी के बेहतर स्रोत चाहिए, जिसमें यह ऐप उनकी मदद कर रही है.”

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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