सीधा चुनाव लड़े बिना कौन कौन बना मुख्यमंत्री
भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री विधान सभा की जगह विधान परिषद के सदस्य रहे हैं. एक नजर बिना सीधा चुनाव लड़े सत्ता पाने वाले नेताओं पर.
योगी आदित्यनाथ
बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. 2017 में राज्य के चुनावों में जीत हासिल करने के बाद जब बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था उस समय वो गोरखपुर से लोक सभा के सदस्य थे. मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें लोक सभा से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन उसके बाद वो विधान सभा की किसी सीट से उपचुनाव लड़ने की जगह विधान परिषद के सदस्य बन गए.
अखिलेश यादव
उनसे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मार्च 2012 से मार्च 2017 के बीच जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब वे भी विधान परिषद के ही सदस्य थे. आदित्यनाथ की तरह अखिलेश भी मुख्यमंत्री बनने से पहले लोक सभा के सदस्य थे.
मायावती
अखिलेश से पहले मई 2007 से मार्च 2012 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती भी उस कार्यकाल में विधान परिषद की ही सदस्य थीं. बतौर मुख्यमंत्री यह उनका चौथा कार्यकाल था. इससे पहले के कार्यकालों में वो 2002 और 1997 में विधान सभा की सदस्य रहीं.
नीतीश कुमार
नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बस बीच में मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच नौ महीनों के लिए वो पद पर नहीं थे. अपने पूरे कार्यकाल में वो बिहार विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं.
राबड़ी देवी
नीतीश कुमार के पहले राबड़ी देवी तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. तीन कार्यकालों में से दो बार वो विधान परिषद की सदस्य रहीं और एक बार विधान सभा की.
लालू प्रसाद यादव
राबड़ी देवी से पहले उनके पति लालू प्रसाद यादव दो बार मुख्यमंत्री रहे. वो एक कार्यकाल में विधान परिषद के सदस्य रहे और एक में विधान सभा के.
उद्धव ठाकरे
शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं और विधान परिषद के सदस्य हैं. उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे बीजेपी देवेंद्र फडणवीस तो विधान सभा के सदस्य थे, लेकिन फडणवीस से पहले मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण विधान परिषद के सदस्य थे.
कुछ ही राज्यों में होता है
इस सूची में इतने सारे दिग्गज नेताओं के नाम देख कर आप शायद सोच रहे हों कि यह चलन भारतीय राजनीति में आम हो गया है. हालांकि यह परिपाटी कुछ ही राज्यों तक सीमित है. भारत के 28 राज्यों में से सिर्फ छह में ही विधान सभा के अलावा विधान परिषद भी हैं. इनमें बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक शामिल हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर
प्रधानमंत्री का राज्य सभा का सदस्य होना भी कुछ हद तक मुख्यमंत्री का विधान परिषद का सदस्य होने जैसा है. भारत में चार प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान राज्य सभा के सदस्य रहे हैं. तीन बार प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी अपने पहले कार्यकाल के दौरान राज्य सभा की सदस्य थीं.
एच डी देवगौड़ा
एच डी देवगौड़ा जब जून 1996 में प्रधानमंत्री चुने गए थे उस समय वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. सितंबर में उन्होंने राज्य सभा की सदस्यता ले ली थी. बाद में वो कई बार चुन कर लोक सभा के सदस्य भी बने, लेकिन प्रधानमंत्री के अपने छोटे कार्यकाल के दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य थे.
आइके गुजराल
1990 के राजनीतिक उथल पुथल वाले दशक में देवगौड़ा की तरह आईके गुजराल भी एक छोटे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री चुने गए थे और उस दौरान वो राज्य सभा के सदस्य रहे. वो दो बार लोक सभा के भी सदस्य रहे.
मनमोहन सिंह
राज्य सभा से प्रधानमंत्रियों के बीच सबसे लंबा कार्यकाल मनमोहन सिंह का है. वो मई 2004 से मई 2014 तक प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य रहे. वो कभी लोक सभा के सदस्य नहीं रहे. 1999 में उन्होंने सिर्फ एक बार लोक सभा का चुनाव जरूर लड़ा था लेकिन हार गए थे.